इलाहाबाद हाई कोर्ट ने करार के आधार पर अधिग्रहीत भूमि के मुआवजे की मांग खारिज की, मेरठ में भूमि अधिग्रहण का मामला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि विक्रय करार से किसी को जमीन का स्वामित्व नहीं मिलता। न्यायालय ने मेरठ के भूमि अधिग्रहण मामले में मुआवजे के दावे को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विक्रय करार संपत्ति में अधिकार या हित सृजित नहीं करता बल्कि यह केवल व्यक्तिगत अधिकार बनाता है। भूमि अधिग्रहण के मामले में मुआवजा केवल भूमिधारक को ही मिलेगा।

विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि विक्रय करार के आधार पर ही कोई भी व्यक्ति अधिग्रहीत भूमि के मुआवजे में हिस्सेदारी का दावा नहीं कर सकता। विक्रय करार किसी का संपत्ति में कोई अधिकार या हित सृजित नहीं करता। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की एकल पीठ ने हामिद और नौ अन्य की याचिका खारिज करते हुए की है।
याचीगण ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण, मेरठ के पांच जुलाई 2025 को पारित आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में प्राधिकरण ने याचियों को जमीन का मुआवजा देने से इन्कार कर दिया है।
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मेरठ के बिजौली गांव में खसरा संख्या 346 और 426 को उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने गंगा एक्सप्रेस-वे निर्माण के लिए अधिग्रहीत किया था। भू-स्वामियों ने मुआवजे का दावा किया। याचियों ने यह कहते हुए आपत्ति की कि जमीन का विक्रय करार उनके पक्ष में है, इसलिए उन्हें मुआवजा दिया जाय।
बिक्री अनुबंध का पालन न किए जाने पर सिविल वाद दायर किया था। अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट मेरठ ने 10 जनवरी 2023 को विवाद 'भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013' की धारा 76 के तहत मामला मान कर प्राधिकरण को भेज दिया। प्राधिकरण ने पांच जुलाई, 2025 को याचियों की आपत्तियों को यह कहते हुए खारिज कर दी कि वे भूमि के मालिक नहीं हैं, इसलिए मुआवजे के हकदार नहीं हैं।
प्राधिकरण की दलील थी कि मात्र बिक्री अनुबंध से जमीन का स्वामित्व हस्तांतरित नहीं होता। कोर्ट ने कहा, यह स्थापित है कि बिक्री अनुबंध जमीन पर कोई अधिकार, स्वामित्व या हित प्रदान नहीं करता है। एक अनुबंध क्रेता को संपत्ति का स्वामी नहीं बनाता। बिक्री अनुबंध केवल एक व्यक्तिगत अधिकार बनाता है, संपत्ति पर अधिकार नहीं बनाता।
कोर्ट ने माना कि चूंकि याचियों के पक्ष में कोई बिक्री विलेख निष्पादित नहीं किया गया है, इसलिए वे भूमि के मालिक नहीं हैं। उनके पास केवल कुछ विशिष्ट लाभ के लिए मुकदमा दायर करने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा, भूमि अधिग्रहण जैसे मामलों में न्यायालय मुआवजे के रूप में हर्जाना दे सकता है, यह हर्जाना केवल सिविल कोर्ट से मुकदमे का फैसला करते समय दिया जाएगा, जब यह निष्कर्ष निकाला जाएगा कि प्रतिवादी की गलती के कारण अनुबंध टूट गया है।
हाई कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण के आदेश में कोई अवैधता नहीं पाई और यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि दर्ज किए गए भूमिधारक ही मुआवजे के हकदार हैं।
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