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    बार एसोसिएशन सदस्य के निष्कासन के खिलाफ बार काउंसिल को सुनवाई का अधिकार नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया आदेश

    Updated: Mon, 06 Oct 2025 08:43 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि बार एसोसिएशन सदस्यों के निष्कासन के खिलाफ राज्य बार काउंसिल में याचिका विचारणीय नहीं है। कोर्ट ने कानपुर के नरेश कुमार मिश्रा और तीन अन्य की याचिका खारिज करते हुए बार काउंसिल के आदेश को रद कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने एकीकृत बार एसोसिएशन (माटी) कानपुर देहात द्वारा सदस्यता रद्द करने के खिलाफ शिकायत की थी।

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    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कानपुर के तीन अधिवक्ताओं की याचिका खारिज कर दी है।

    विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी भी बार एसोसिएशन के सदस्यों की ओर से अपने तथाकथित ‘अवैध’ निष्कासन के खिलाफ उत्तर प्रदेश राज्य बार काउंसिल के समक्ष दायर याचिका विचारणीय नहीं है। कोर्ट ने बार काउंसिल के आदेश व उसके समक्ष दाखिल याची की अर्जी निरस्त कर दी है।

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    न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ ने कानपुर के नरेश कुमार मिश्रा और तीन अन्य क्रमश: शिव प्रताप सिंह, ज्योति सिंह तथा आशुतोष द्विवेदी की तरफ से दायर याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है।

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    संक्षेप में मामला यह है कि याचीगण, एकीकृत बार एसोसिएशन (माटी) कानपुर देहात की आम सभा सदस्य थे। उन पर लगे आरोप की जांच के बाद एसोसिएशन ने उनकी सदस्यता खत्म कर दी। इस कार्रवाई को अवैध बताते हुए उन्होंने उप्र बार काउंसिल से शिकायत की।

    सुनवाई के लिए उप्र बार काउंसिल ने समिति गठित की। इस समिति ने याचीगण को निष्कासित किए जाने संबंधी बार एसोसिएशन के आदेश पर रोक लगा दी। हालांकि अगले ही दिन यानी 27 अगस्त को 2025 समिति का स्थगन आदेश काउंसिल ने नए आदेश द्वारा रद कर दिया। इसे चुनौती दी गई थी।

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    कोर्ट ने पूछा कि क्या ऐसा कोई कानूनी प्रावधान है जो उन्हें राज्य बार काउंसिल के समक्ष आवेदन करने की अनुमति देता है? इस पर याचीगण के वकील ने खंडपीठ को बताया कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। याचीगण ने गलत उपाय अपनाया। इस स्वीकारोक्ति पर गौर करते हुए अदालत ने माना कि राज्य बार काउंसिल के समक्ष आवेदन दायर करना गलत था और विचारणीय नहीं था।

    न्यायालय ने कहा कि इस आधार पर शुरू की गई कोई भी कार्यवाही अमान्य है। ऐसे में काउंसिल द्वारा शुरू की गई कोई भी कार्यवाही भी शून्य है। पीठ ने याचिका इस छूट के साथ खारिज दी कि बार एसोसिएशन द्वारा पारित निष्कासन आदेश के विरुद्ध वह कानून के तहत उपलब्ध उचित उपाय अपना सकते हैं।