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    'घरेलू हिंसा में रिश्तेदारों को लपेटना कानून का दुरुपयोग', ननद के खिलाफ केस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी

    Updated: Tue, 04 Feb 2025 08:11 AM (IST)

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले में पति और सास को छोड़कर शेष पारिवारिक सदस्यों के खिलाफ दर्ज केस को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि ठोस सबूतों के बिना दूर के रिश्तेदारों को घरेलू हिंसा के मामले में फंसाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। मुकदमा उन्हीं लोगों पर दर्ज किया जा सकता है जो पीड़िता के साथ साझा घर में रह रहे हों।

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    'घरेलू हिंसा में रिश्तेदारों को लपेटना कानून का दुरुपयोग': इलाहाबाद हाई कोर्ट

    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा मामले में पति व सास को छोड़ कर शेष पारिवारिक सदस्यों के खिलाफ केस कार्रवाई रद कर दी है। कहा कि है ठोस साक्ष्य के बिना दूर के रिश्तेदारों को घरेलू हिंसा मामले में फंसाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने सोनभद्र की कृष्णा देवी और छह अन्य की याचिका पर दिया है।

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    वैवाहिक कलह के चलते पीड़िता ने पति और उसकी मां तथा विवाहित ननदों के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस दर्ज कराया। सास और पांच अन्य रिश्तेदारों ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोनभद्र के समक्ष लंबित मामले में कार्यवाही को रद करने की मांग करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की।

    पीड़िता के साथ घर साझा करने वालों पर केवल दर्ज कर सकते हैं केस

    कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा का मुकदमा उन्हीं लोगों पर दर्ज किया जा सकता है जो पीड़िता के साथ साझा घर में रह रहे हों। इस न्यायालय को ऐसे कई मामले मिले, जहां पति या घरेलू संबंध में रहने वाले व्यक्ति के परिवार को परेशान करने के लिए, पीड़ित पक्ष दूसरे पक्ष के उन रिश्तेदारों को फंसाता था, जो पीड़ित व्यक्ति के साथ साझा घर में नहीं रहते या रह चुके हैं।

    कोर्ट ने कहा, विवाहित बहनें और उनके पति अलग-अलग रहने के कारण अधिनियम के तहत आरोपित नहीं माने जा सकते। वैसे कोर्ट ने कहा है कि सास और पति के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी, क्योंकि दहेज से संबंधित उत्पीड़न सहित घरेलू हिंसा के इन पर विशिष्ट आरोप है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को 60 दिनों के भीतर केस की सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया है।

    जिला अदालतों में सीसीटीवी के लिए जारी किए 82 करोड़

    वहीं सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी एक खबर है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसने राज्य में जिला अदालत परिसरों में नए सीसीटीवी लगाने के लिए लगभग 82 करोड़ रुपये जारी कर दिए हैं। प्रदेश सरकार ने यह बात जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष रखी जो ‘गौतम बुद्ध नगर के जिला अदालत परिसर में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) को दो सदस्यों पर हमला’ शीर्षक वाले स्वत: संज्ञान मामले पर सुनवाई कर रही थी।

    शीर्ष अदालत ने गौतम बुद्ध नगर की जनपद दीवानी एवं फौजदारी बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट एवं सेकेट्री नया नोटिस भी जारी किया। पीठ ने यह आदेश तब पारित किया जब बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों की वकील ने कहा कि उन्हें वकालतनामा वापस लेने के निर्देश मिले थे।

    शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट एवं सेकेट्री 17 फरवरी को पेश होने में विफल रहे तो पीठ मामले पर आगे की सुनवाई करेगी और उचित आदेश जारी करेगी। पिछले वर्ष एक अप्रैल को मामले पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने गौतम बुद्ध नगर के जिला न्यायाधीश की रिपोर्ट पर संज्ञान लेकर सरकार से जवाब तलब किया था।

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