'वसीयत के आधार पर राजस्व अदालत प्रकृति नहीं कर सकती तय', हाई कोर्ट ने दावा खारिज कर बंटवारे का आदेश रखा बरकरार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भूमि विवाद के पुराने मामले में वसीयत के आधार पर किए गए दावे को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने राजस्व बोर्ड के आ ...और पढ़ें

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भूमि विवाद से जुड़े पुराने मामले में वसीयत के आधार पर किया गया दावा खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की एकलपीठ ने राजस्व बोर्ड के उस आदेश को सही माना, जिसमें विधवा को संयुक्त भूमि में आधे हिस्से का अधिकार दिया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समेकन कानून के अनुसार जमीन के अधिकार उसी प्रक्रिया में तय होते हैं। यदि कोई व्यक्ति उस समय अपना दावा नहीं उठाता, तो बाद में वसीयत के आधार पर अधिकार नहीं जता सकता।
साथ ही राजस्व अदालत विभाजन तो कर सकती है, लेकिन वसीयत के आधार पर अधिकार की प्रकृति तय नहीं कर सकती। मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार कानपुर नगर निवासी राम नारायण की मृत्यु उपरांत उनकी पत्नी पार्वती ने देवर रामगोपाल के खिलाफ आधी जमीन के बंटवारे और कब्जे की मांग की थी। उनका कहना था कि पति के निधन के बाद उन्हें जमीन पर पूरा अधिकार मिला है।
1961 की वसीयत की पेश
रामगोपाल ने इसके विरोध में 1961 की वसीयत पेश की। कहा कि पार्वती को जमीन पर केवल जीवन भर रहने का अधिकार (लाइफ एस्टेट) है, इसलिए वह बंटवारे की मांग नहीं कर सकतीं। तहसीलदार ने 1994 में पर्वती के पक्ष में फैसला दिया। हालांकि अपील में एडिशनल कमिश्नर ने 1995 में वाद खारिज कर दिया, लेकिन राजस्व बोर्ड ने 2016 में तहसीलदार का आदेश फिर बहाल कर दिया।
इसके बाद रामगोपाल व अन्य की ओर से हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने कहा कि जब गांव में भूमि समेकन (चकबंदी) की कार्यवाही चल रही थी, उस समय रामगोपाल ने पार्वती के अधिकार पर कोई आपत्ति नहीं की। समेकन रिकार्ड में दोनों को आधा-आधा हिस्सेदार दर्ज किया गया था। हाई कोर्ट ने रामगोपाल व अन्य की याचिका खारिज कर दी और राजस्व बोर्ड का आदेश बरकरार रखा।

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