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    Allahabad High Court का महत्वपूर्ण निर्णय, एफआइआर दर्ज करने के आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका पोषणीय नहीं

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Thu, 25 Dec 2025 07:55 PM (IST)

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 156 (3) के तहत एफआइआर दर्ज करने के मजिस्ट्रेट के आदेश को तब तक चुनौती नहीं दी जा सकती जब तक समन जारी न हो। न्याय ...और पढ़ें

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    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एसीजेएम हाथरस के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। 

    विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक निर्णय में कहा है 'अगर किसी मजिस्ट्रेट ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156(3) के तहत एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया है तो संभावित आरोपित उस आदेश को तब तक चुनौती नहीं दे सकता, जब तक उसके खिलाफ समन जारी नहीं हो जाता। कोर्ट ने कहा, यह अंतर्वर्ती आदेश है इसके खिलाफ पुनरीक्षण याचिका पोषणीय नहीं है।’

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    न्यायमूर्ति चवन प्रकाश की एकलपीठ ने हाथरस की नाहनी व अन्य की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि धारा 156 (3) के तहत पारित आदेश इंटरलोक्यूटरी आदेश (ऐसा आदेश या निर्णय जो प्रकरण में अंतिम निर्णय से पहले लिया जाता है और इसका उद्देश्य मामला आगे बढ़ाने में मदद हो) है तथा इसे सीआरपीसी की धारा 397(2) के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती।

    याचीगण ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) हाथरस द्वारा उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने वाले आदेश को रद करने की मांग की थी। राज्य सरकार के वकील ने याचिका पर यह कहते हुए आपत्ति उठाई कि विवादित आदेश प्रस्तावित याचीगण के अधिकारों को नुकसान नहीं पहुंचाता। सुधा मटनहेलिया बनाम यूपी राज्य केस का हवाला भी कोर्ट ने दिया।

    मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि धारा 153 (3) के तहत मंजू की अर्जी पर एसीजेएम ने 30 अक्टूबर 2023 को याचीगण नाहनी, कपिल, महेंद्र , रोहतास,साधना व सत्तो के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर जांच का आदेश दिया था। साथ ही इसके खिलाफ दायर याचीगण की अर्जी तीन नवंबर 2023 को खारिज कर दी थी।

    अदालत के समक्ष तीन सवाल थे। पहला, क्या मजिस्ट्रेट का धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत पुलिस को एफआइआर दर्ज करने और जांच करने का निर्देश देने वाला आदेश, उस व्यक्ति द्वारा रिवीजन के लिए खुला है, जिसके खिलाफ संज्ञान नहीं लिया गया है और न ही कोई प्रक्रिया जारी की गई है? दूसरा - क्या धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत पारित आदेश अंतरिम आदेश है और इस तरह के आदेश के खिलाफ रिवीजन का उपाय सीआरपीसी की धारा 397 (2) के तहत प्रतिबंधित है?

    तीसरा- क्या खंडपीठ द्वारा अजय मलवीया बनाम यूपी राज्य और अन्य में व्यक्त की गई राय कि धारा 156 (3) के तहत पारित आदेश रिवीजन के लिए खुला है और इस आदेश के आधार पर दर्ज एफआइआर को रद करने के लिए कोई रिट याचिका स्वीकार्य नहीं होगी, सही है? कोर्ट ने निर्णय में तीनों सवालों का जवाब दे दिया।