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    'चार्जशीट की धाराओं में बदलाव नहीं कर सकते मजिस्ट्रेट', हाई कोर्ट ने कहा- धारा को जोड़ना-घटाना आरोप में परिवर्तन के बराबर

    Updated: Fri, 26 Dec 2025 12:41 AM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने छेड़छाड़ के मामले में याचिका खारिज कर दिया, जिसमें समन आदेश रद्द करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मजिस्ट्रे ...और पढ़ें

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    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने छेड़छाड़ के एक मामले में समन आदेश को रद करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि मजिस्ट्रेट संज्ञान लेते समय चार्जशीट में उल्लेखित आइपीसी की धाराओं में बदलाव नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा कि धाराओं को जोड़ने या हटाने की प्रक्रिया केवल आरोप तय करने के स्तर पर ही की जा सकती है।

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    कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री के आधार पर समन आदेश और आपराधिक कार्यवाही की जा सकती है या ऐसे तर्कों को डिस्चार्ज के स्तर के लिए सुरक्षित रखा जाना चाहिए। न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर अर्जी को खारिज करते हुए कहा कि धाराओं को शामिल करने या बाहर करने का मजिस्ट्रेट का अधिकार आरोप तय करते समय उत्पन्न होता है, न कि संज्ञान लेते समय।पवन कुमार सिंह व तीन अन्य ने मीरजापुर के सिविल जज जूनियर डिवीजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट/महिला अपराध) के 28 मई 2024 के समन आदेश को चुनौती दी थी।

    छेड़छाड़ और अभद्र टिप्पणी के आरोप में दर्ज कराई थी एफआइआर

    चुनार कोतवाली में पीड़िता ने छेड़छाड़ और अभद्र टिप्पणी का आरोप हुए एफआइआर दर्ज कराई थी। विवेचना के बाद पुलिस ने याचियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न, शांति भंग करने के इरादे से अपमान और आपराधिक धमकी के तहत चार्जशीट दाखिल की थी। याचिका में तर्क दिया गया कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 161 (पुलिस के समक्ष बयान) और धारा 164 (मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान) के तहत दर्ज अपने बयानों में एफआइआर के तथ्यों का समर्थन नहीं किया है।

    दलील दी गई कि यह मामला एक प्रतिशोध का है, क्योंकि एफआइआर दर्ज होने से पहले विभाग द्वारा पीड़िता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई थी। कोर्ट ने आरोपों के परिवर्तन और ट्रायल के चरणों के संबंध में प्रक्रियात्मक कानून की जांच के बाद पाया कि संज्ञान आदेश को रद करना वास्तव में आरोपित को समय से पहले आरोप मुक्त करने जैसा है। पीठ ने उल्लेख किया कि किसी भी धारा को जोड़ना, घटाना, बाहर करना या शामिल करना आरोप में परिवर्तन के समान है।