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    'नोटिस या आदेश का पोर्टल पर अपलोड होना ही वास्तविक सूचना नहीं' हाई कोर्ट ने GST विभाग का दावा वसूली आदेश किया रद

    Updated: Tue, 30 Dec 2025 02:00 AM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि जीएसटी विभाग द्वारा केवल ऑनलाइन पोर्टल पर नोटिस या आदेश अपलोड करना ‘सूचना’ नहीं माना जाएगा। इसके आधार पर दावे वसूल ...और पढ़ें

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    विधि संवाददाता, इलाहाबाद। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जीएसटी विभाग द्वारा सिर्फ आनलाइन पोर्टल पर नोटिस या आदेश अपलोड करने को ‘सूचना’ नहीं मानते हुए अर्जियां खारिज कर दावा वसूली करने की कार्यवाही रद कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ला की खंडपीठ ने दर्जनों याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिया है।

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    कोर्ट का कहना है कि नोटिस या आदेश का सिर्फ सामान्य पोर्टल पर अपलोड हो जाना, करदाता तक उसकी वास्तविक सूचना नहीं माना जा सकता, जब तक कि उसे वास्तविक या रचनात्मक रूप से तामील न किया गया हो।कोर्ट ने कहा, जीएसटी लागू होने के बाद से राज्य कर अधिकारियों ने नोटिस और आदेशों की फिजिकल डिलीवरी (डाक या हाथ से) का चलन लगभग पूरी तरह बंद कर दिया, जबकि केंद्रीय कर अधिकारी अब भी आफलाइन मोड का इस्तेमाल कर रहे हैं।

    इस बदलाव से छोटे और मध्यम स्तर के व्यवसायी, जो पहले व्यापार कर/वैट कर व्यवस्था में फिजिकल नोटिस के अभ्यस्त थे, परेशानी में पड़ गए। उन्हें नोटिस या आदेश की जानकारी ही नहीं मिल पाती और अपील दाखिल करने की समय सीमा समाप्त हो जाती है। ऐसे में उनके खिलाफ एकतरफा वसूली आदेश पारित हो जाते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जीएसटी अधिनियम की धारा 169(1) के खंड (क) से (ङ) तक के सभी मोड (हाथ से देना, स्पीड पोस्ट, ई-मेल, पोर्टल पर उपलब्ध कराना, अखबार में प्रकाशन) वैकल्पिक हैं।

    किसी का भी चुनाव कर सकते हैं कर अधिकारी

    कर अधिकारी किसी का भी चुनाव कर सकते हैं। केवल अंतिम मोड चस्पा करने का उपयोग तभी हो सकता है जब पहले के पांचों मोड व्यावहारिक न हो सके हों। सिर्फ पोर्टल पर सूचना डाल देने से यह नहीं माना जाएगा कि नोटिस/आदेश करदाता को प्राप्त हो गया है। अपील की मियाद तभी शुरू होगी जब आदेश करदाता को वास्तविक रूप से या रचनात्मक रूप से तामील किया गया हो, न कि सिर्फ अपलोड होने की तारीख से। कोर्ट ने जीएसटी नेटवर्क जीएसटीएन द्वारा संचालित कामन पोर्टल की खामियां भी बताईं। कहा हिंदी इंटरफेस का अभाव है।

    यह भी ट्रैक करने का साधन नहीं है कि करदाता ने नोटिस देखा या डाउनलोड किया। नोटिस/आदेश को आसानी से देख पाने के लिए उपयोगकर्ता-अनुकूल टैब्स भी नहीं हैं। एक ही करदाता वर्ग के लिए, एक ही जीएसटी कानून के तहत, राज्य और केंद्रीय अधिकारी सेवा के अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं जो भ्रम और अनावश्यक मुकदमेबाजी पैदा कर रहा है।

    कोर्ट ने विवादित कर मांग का 10 प्रतिशत जमा करने की शर्त पर सभी याचीगण के खिलाफ पारित एकतरफा आदेशों को रद कर दिया। संबंधित अधिकारी के पास पुनर्विचार के लिए भेजते हुए निर्देश दिए कि करदाता को शो-काज नोटिस और सभी दस्तावेज दिए जाएं, जवाब दाखिल करने और सुनवाई का उचित मौका दिया जाए और छह माह में निर्णय हो।