दुष्कर्म और डकैती मामले में 42 साल अपील लंबित रहने पर कोर्ट ने जताया खेद, सजा को रखा बरकरार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ललितपुर में हत्या की कोशिश डकैती और दुष्कर्म के मामले में 42 साल पुराने अपील पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने सत्र अदालत द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। साथ ही आरोपी के जमानत पर रहने और अपील की सुनवाई में हुई देरी पर खेद जताया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में न्याय मिलने में हुई देरी बेहद दुखद है।

विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ललितपुर में हत्या की कोशिश व डकैती तथा दुष्कर्म के आरोपित को सत्र अदालत से दी गई उम्र कैद की सजा बरकरार रखी है। साथ ही आरोपित के जमानत पर रहने और अपील की सुनवाई में 42 साल की देरी के लिए खेद जताया है।
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डा. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने कहा, ‘न्यायालय विशेष रूप से पक्षकारों और सामान्य रूप से समाज के समक्ष खेद व्यक्त करता है कि इस अपील को तय करने में 42 वर्ष लग गए। चार दशकों की इस लंबी अवधि में पक्षकारों को न्याय नहीं मिला है। चार अभियुक्तों वीर सिंह, गंगाधर, धर्मलाल और बंधु की मृत्यु हो चुकी है। पीड़ित भी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
कोर्ट का कहना था कि ऐसे मामलों में न्यायालयों को वास्तविक समय में न्याय प्रदान करना चाहिए। ट्रायल कोर्ट ने चार साल के भीतर 1982 में निर्णय दिया था और फिर जिम्मेदारी उच्च न्यायालय पर आ गई थी। कोर्ट ने इकलौते बचे अभियुक्त बाबूलाल की दोषसिद्धि की पुष्टि की। उसे आत्मसमर्पण के लिए निर्देशित किया गया है।
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कोर्ट ने कहा है कि यदि ऐसा नहीं होता है तो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उसे शेष सजा काटने के लिए गिरफ्तार करवाकर जेल भिजवाएं। कोर्ट ने घटनाक्रम पर टिप्पणी की कि जो कुछ भी हुआ, उससे अधिक जघन्य और बर्बर कुछ भी नहीं हो सकता। इस बात की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं कि जीवित बचे दोषी बाबूलाल ने एक महिला के साथ दुष्कर्म के साथ ही मारपीट भी की थी।
हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला। जागरण
खंडपीठ ने कहा, ‘यह ध्यान में रखते हुए कि अपराध की जघन्य प्रकृति मुकदमे में विधिवत साबित हो चुकी है, आरोपित अपीलकर्ता को सजा के सवाल पर कोई दया या नरमी नहीं मिलनी चाहिए। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि वह मुश्किल से चार साल तक ही जेल में रहा और उसे इस अपील के लंबित रहने के दौरान जमानत पर रिहा कर दिया गया। उसे शेष सजा काटनी होगी। यह जघन्य घटना 5/6 अप्रैल 1979 को बार थाना क्षेत्र में हुई थी।
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वर्तमान अपील अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश की तरफ से 23 अप्रैल, 1983 को पारित निर्णय एवं दोषसिद्धि आदेश के विरुद्ध दायर की गई थी। दो महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ था। एक महिला की बाद में चोटों की वजह से मौत हो गई थी। खंडपीठ ने इस मामले में अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित अधिवक्ता (न्यायमित्र) सत्य प्रकाश को बहुमूल्य सहयोग देने के लिए उन्हें नियमानुसार 25 हजार रुपये भुगतान का भी आदेश दिया है।
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