कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में रहे राजा रामपाल सिंह
कालाकांकर नरेश राजा रामपाल सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में रहे। उनका जन्म 22 अगस्त 1848 को कालाकांकर में हुआ था। वह बचपन से ही तीव्र बुद्धि के थे। देशभक्ति का जज्बा उनमें कूट-कूट कर भरा था। परिवार के विरोध के बावजूद वह इंग्लैंड गए। वहां प्रवास के दौरान उन्होंने दि सेल्फ टीचिग बुक लिखी थी। शिक्षा उद्योग और व्यापार को प्रोत्साहन देने की ²ष्टि से उन्होंने स्कूल कालेज और अस्पताल खोले तथा रेशम के कीड़े पालकर रेशम उद्योग चालू किया। वह शतरंज के बहुत अच्छे खिलाड़ी तथा व्यायाम और शिकार के प्रेमी थे। उनके परिवार के केंद्रीय विदेश मंत्री स्व. राजा दिनेश सिंह की पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह जिले की तीन बार सांसद रह चुकी हैं। महात्मा गांधी ने राजाराम पाल सिंह के नेतृत्व में कालाकांकर में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी।

संसू, प्रतापगढ़ : कालाकांकर नरेश राजा रामपाल सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में रहे। उनका जन्म 22 अगस्त 1848 को कालाकांकर में हुआ था। वह बचपन से ही तीव्र बुद्धि के थे। देशभक्ति का जज्बा उनमें कूट-कूट कर भरा था। परिवार के विरोध के बावजूद वह इंग्लैंड गए। वहां प्रवास के दौरान उन्होंने दि सेल्फ टीचिग बुक लिखी थी। शिक्षा, उद्योग और व्यापार को प्रोत्साहन देने की ²ष्टि से उन्होंने स्कूल, कालेज और अस्पताल खोले तथा रेशम के कीड़े पालकर रेशम उद्योग चालू किया। वह शतरंज के बहुत अच्छे खिलाड़ी तथा व्यायाम और शिकार के प्रेमी थे। उनके परिवार के केंद्रीय विदेश मंत्री स्व. राजा दिनेश सिंह की पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह जिले की तीन बार सांसद रह चुकी हैं। महात्मा गांधी ने राजाराम पाल सिंह के नेतृत्व में कालाकांकर में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी।
कालाकांकर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले राजा रामपाल सिंह के पिता लाल प्रताप सिंह की मृत्यु पितामह राजा हनुमंत सिंह के जीवनकाल में ही हो गई। अत: अपने बाबा के बाद राज्य के उत्तराधिकारी हुए। परिवार के विरोध की उपेक्षा करके वह इंग्लैंड गए और वहां उन्होंने फ्रेंच, जर्मन और लैटिन भाषाएं सीखीं तथा गणित और तर्कशास्त्र का अध्ययन किया। विद्योपार्जन के लिए इंग्लैंड आए हुए भारतीय विद्यार्थियों से संपर्क स्थापित किया और इंडियन एसोसिएशन के उपसभापति बने। भारतीय विद्यार्थियों को धन की सहायता भी देते थे और भारत के पक्ष में सभाओं में व्याख्यान देते थे। भारतवासियों की असुविधाओं को दूर करने के लिए राजा रामपाल सिंह ने 1883 ई. में इंग्लैंड से ही हिदोस्थान नामक त्रैमासिक पत्र निकाली। इसमें अंग्रेजी, हिदी तथा उर्दू तीनों भाषाओं में लेख छपते थे। आठ-नौ वर्ष इंग्लैंड में रहकर वह स्वदेश लौट आए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति में 28 दिसम्बर 1885 को मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी। इसके संस्थापक महासचिव एओ ह्यूम थे। संस्थापक सदस्यों में राजारामपाल सिंह, दादा भाई नौरोजी, सुरेंद्र नाथ बनर्जी आदि रहे। नवंबर, 1885 ई. में उन्होंने कालाकांकर से ही हिदोस्थान हिदी दैनिक निकाला, जिसका साप्ताहिक अंग्रेजी संस्करण भी इसी नाम से निकलता था। इन दोनों पत्रों के संपादक राजा रामपाल सिंह स्वयं ही रहे परंतु संपादन का काम पं. मदनमोहन मालवीय, पं. प्रतापनारायण मिश्र, बाबू बालमुकुंद गुप्त आदि करते थे। उनके परिवार की पूर्व सांसद राजकुमारी रत्ना सिंह बताती हैं कि राजा रामपाल सिंह में देशभक्ति का जज्बा रहा।
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