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    ₹20 लाख का 'सफेद हाथी': बजट डकार गया प्रशासन, जनता के नसीब में सिर्फ सड़ांध और बीमारी!

    Updated: Wed, 17 Dec 2025 09:57 PM (IST)

    पीलीभीत में ₹20 लाख की लागत से बना एक प्रोजेक्ट 'सफेद हाथी' साबित हुआ है। प्रशासन ने बजट का सही इस्तेमाल नहीं किया, जिसके कारण जनता को गंदगी और बीमारि ...और पढ़ें

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    जिला अस्पताल परिसर में आयुष विंग के पास कूड़े के ढेर में पड़ी खून के नमूनों की शीशियां, इस्तेमाल किए गए ग्लब्स

    जागरण संवाददाता, पीलीभीत। दोनों तस्वीरें जिला अस्पताल परिसर की हैं। जिला अस्पताल परिसर के आयुष विंग के पास बिखरा पड़ा बायो मेडिकल वेस्ट बीमारियां बांट रहा है। हालांकि, मरीज तो इलाज कराने के लिए आए, लेकिन उनके वह और उनके तीमारदार यहां से नई बीमारियों को लेकर जा रहे हैं। संक्रमित रक्त के नमूनों की शीशियां, प्रयोग किए गए ग्लब्स, पट्टियां और संक्रमित बायोमेडिकल वेस्ट पड़ा है।

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    सरकार से इसके लिए नामित कंपनी ग्रीन स्टार को नामित किया, लेकिन न तो वह यहां से कचरा उठाने में रुचि दिखाते हैं और न ही उसके निस्तारण में। यहां से जाने वाला पानी तालाब में जाता है, जिसका जल भी दूषित हो रहा है। जिला अस्पताल प्रशासन की घोर लापरवाही आम जनता के स्वास्थ्य पर भारी पड़ती दिखाई दे रही है।

    अस्पताल से निकलने वाला घातक बायो-मेडिकल वेस्ट (जैविक कूड़ा) सुरक्षित निस्तारण के बजाय खुले में सड़क किनारे फेंका जा रहा है। विडंबना यह है कि कूड़े के निस्तारण के नाम पर प्रतिवर्ष करीब 20 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन धरातल पर संक्रमण का ढेर लगा हुआ है। जिला अस्पताल की आयुष विंग के पास खुले में जैविक कूड़ा फेंका जा रहा है।

    गौर करने वाली बात यह है कि इसी स्थान से चंद कदमों की दूरी पर अस्पताल की नई इमरजेंसी संचालित हो रही है। यहां 24 घंटे मरीजों और तीमारदारों का जमावड़ा रहता है। कूड़े में खून के नमूनों की शीशियां, इस्तेमाल किए गए ग्लब्स, पट्टियां और अन्य संक्रमित वस्तुएं खुलेआम पड़ी देखी जा सकती हैं। इससे निकलने वाली तीखी दुर्गंध ने वहां से गुजरने वाले लोगों, विशेषकर सोमवार को आयुष विंग आने वाले दिव्यांगों का जीना मुहाल कर दिया है।

    तालाब का पानी हो रहा जहरीला, सेहत से खिलवाड़

    अस्पताल के पास ही एक तालाब स्थित है, जहां मत्स्य पालन किया जाता है। कूड़े से निकलने वाला संक्रमित तरल पदार्थ रिसकर सीधे इस तालाब के पानी में मिल रहा है। इस दूषित पानी में पलने वाली मछलियों को खाने से लोगों में गंभीर बीमारियां फैल सकती हैं। यह न केवल जल प्रदूषण है, बल्कि एक बड़े खाद्य चक्र को संक्रमित करने की साजिश भी है।

    क्या कहता है नियम

    जैविक कूड़े का इस तरह निस्तारण बायो-मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 का सीधा उल्लंघन है। अस्पताल के कचरे को लाल, पीली, नीली और सफेद श्रेणियों में अलग-अलग कर सीलबंद तरीके से निस्तारित करना अनिवार्य है। इसे खुले में फेंकना दंडनीय अपराध है, जिसके लिए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत भारी जुर्माना और जेल की सजा का प्रावधान है।

    नगर पालिका और अस्पताल प्रशासन की संयुक्त जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि यह कचरा सामान्य कूड़ेदानों या सड़क किनारे न पहुंचे। लाखों के बजट का बंदरबांट इस कदर है कि सफाई के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति हो रही है।

    कूड़ा सड़क पर फेंके जाने से यह स्पष्ट है कि न तो अस्पताल प्रशासन गंभीर है और न ही नगर पालिका परिषद अपनी जिम्मेदारी निभा रही है। खुले में पड़ा यह मेडिकल वेस्ट ''सुपरबग'' और संक्रामक रोगों की नर्सरी बन रहा है, जो किसी भी वक्त महामारी का रूप ले सकता है।

     

    अस्पताल से निकलने वाले कूड़े के लिए स्थान चिंहित कर दिया गया है। उसके लिए कार्य चल रहा है। हालांकि, नगर पालिका के द्वारा कूड़े को उठाने का कार्य किया जाता है। कूड़े को डालने का स्थान जल्द बदल दिया जाएगा।

    - अरुण सिंह, उप प्राचार्य मेडिकल कालेज


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