इंसानों की बस्ती में कुत्तों का भौकाल, साल भर में 12 हजार लोगों को काटा, सामने आई रिपोर्ट
पीलीभीत में कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है, जहाँ एक साल में 12 हजार से अधिक लोगों को कुत्तों ने काटा है। इंसानी बस्तियों में कुत्तों के बढ़ते हमलों से ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, पीलीभीत। शहर हो या देहात वहां की गलियों में अब वो पुरानी बात नहीं रही, जहां वफ़ा का दम भर कर चला करते थे। अब यहां संभलकर कदम रखने पड़ रहे है। क्योंकि सड़कों पर अंधेरों में, इंसानों की बस्ती में कुत्तों का भौकाल बना हुआ है।
शहर से लेकर देहात तक की गलियों और मुहल्लों में इन दिनों दहशत का पहरा है। कल तक इंसान का सबसे वफादार दोस्त माना जाने वाला कुत्ता, आज उसकी जान का दुश्मन बना बैठा है। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि वफादारी का दामन छोड़कर ये बेजुबान अब हिंसक झुंडों में तब्दील हो चुके हैं। पिछले साल की तुलना में इस वर्ष इनके आतंक ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं।
वर्ष 2024 में जहां कुत्तों के हमले में घायल होने वालों की संख्या करीब नौ हजार थी, वहीं इस वर्ष यह आंकड़ा चौंकाने वाली रफ्तार से बढ़कर 12 हजार के पार पहुंच गया है। ये केवल वो संख्या है जो जिला अस्पताल के सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है, असल तस्वीर इससे कहीं अधिक भयावह हो सकती है। इन हमलों का सबसे दुखद पहलू यह है कि इनके शिकार सबसे ज्यादा वो नन्हे मासूम और बुजुर्ग बन रहे हैं, जो खुद का बचाव करने में असमर्थ हैं।
जिला अस्पताल में लग रहे 80 से 90 एंटी रेबीज
जिला अस्पताल का नजारा किसी युद्ध क्षेत्र जैसा प्रतीत होता है। अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 80 से 90 लोग एंटी-रेबीज इंजेक्शन लगवाने पहुंच रहे हैं। इनमें से 65 से 70 लोग सीधे तौर पर कुत्तों के जानलेवा हमले का शिकार होते हैं। जिला अस्पताल के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों की सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी पीड़ितों की लंबी कतारें दावों की पोल खोल रही हैं।
काटने से रेबीज जैसी हो सकती है घातक बीमारी
इन आवारा कुत्तों का आतंक लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहा है, खासकर शाम के समय जब ये कुत्ते अधिक सक्रिय होते हैं। जो सड़कों और पार्क में टहलने वालों को काटकर घायल कर रहे हैं। जिनके काटने से रेबीज जैसी घातक बीमारी हो सकती है, इससे समय पर इलाज न मिलने पर जान का खतरा हो सकता है। सबसे अधिक बच्चे अक्सर इन हमलों के शिकार होते हैं क्योंकि वे कुत्तों के साथ खेलने की कोशिश करते हैं।
नसबंदी और टीकाकरण है समाधान
इनका समाधान नसबंदी और टीकाकरण हैं। आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नसबंदी और टीकाकरण जरूरी है। जिसके साथ लोगों को आवारा कुत्तों से सावधानी बरतने के लिए जागरूक होने की जरुरत हैं। स्थानीय प्रशासन को आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिए ठोस नीतियां बनानी चाहिए। जिससे लोगों को आवारा कुत्ताें से निजात मिल सकें।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नहीं हो रहे इंतजाम
आवारा कुत्तों को सरकारी अस्पताल स्कूल सहित सार्वजनिक स्थानों से पकड़ने के लिए स्थानीय प्रशासन और नगर निकाय को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए थे। साथ ही कुत्तों के लिए शेल्टर होम बनाने के लिए कहा, लेकिन उसके बाद भी जिले में कहीं भी शेल्टर होम नहीं बन सका है और नहीं कही से कुत्तों को पकड़ने का काम किया गया है।
जिला अस्पताल में लगे एंटी रैबीज
- 2024 - 9,132
- 2025 में अब तक 12,418
आवारा कुत्तों के पकड़ने और शेल्टर होम बनाए जाने की तैयारी चल रही है। जल्द ही कुत्तों से निजात दिलाने के लिए नगर पालिका की ओर इंतजाम किए जाएंगे। साथ ही निगरानी के लिए टीम भी बनाई जाएगी।
-संजीव कुमार, ईओ नपा पीलीभीत

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