ग्रेटर नोएडा में ट्रांसपोर्टर के हत्यारे को उम्रकैद, नहर में शव फेंककर साक्ष्य मिटाने की कोशिश हो गई थी नाकाम
ग्रेटर नोएडा में ट्रांसपोर्टर की हत्या के मामले में अदालत ने दोषी को उम्रकैद की सजा सुनाई। हत्यारे ने शव को नहर में फेंककर सबूत मिटाने की कोशिश की थी, ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा। अपर जिला एवं सत्र न्यायालय-चतुर्थ अभिषेक पांडेय की अदालत ने ट्रांसपोर्टर अजीत सिंह हत्याकांड में ग्रेटर नोएडा के ज्यू-3 निवासी राघवेन्द्र त्रिपाठी उर्फ राघव को दोषी करार दिया। दोषी को आजीवन कारावास और 30 हजार रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई है। जुर्माना राशि जमा नहीं करने पर दोषी को कारावास में छह माह अतिरिक्त रखा जाएगा।
एडीजीसी क्राइम रतन सिंह भाटी ने बताया कि ट्रांसपोर्टर अजीत सिंह की हत्या 15 मई 2019 में दनकौर कोतवाली क्षेत्र में हुई थी। ग्रेटर नोएडा निवासी अजीत सिंह अपनी स्काॅर्पियो गाड़ी में राघवेन्द्र त्रिपाठी के साथ बुलंदशहर गए थे। अजीत सिंह खेत के ठेके के पैसे लेने के लिए घर से निकले थे। देर शाम राघवेंद्र ने अपने मोबाइल फोन से अजीत के बेटे सोनू के पास काल कर बताया कि उसके पिता नहीं मिल रहे हैं।
पीड़ित स्वजन आनन-फानन मौके पर पहुंचे। उन्हें गढ़ी गांव के गेट के पास नहर की पटरी पर पिता की स्कॉर्पियो खड़ी मिली। कुछ दूरी पर राघवेन्द्र बदहवास स्थिति में खड़ा था। मौके पर पहुंची पुलिस के काफी तलाश करने के बाद भी नहर में अजीत नहीं मिले। अगले दिन 16 मई को पुलिस व एनडीआरएफ की टीमों ने दोबारा नहर में तलाश की, लेकिन अजीत का पता नहीं चला।
दूसरे दिन 17 मई की सुबह स्वजन को पुलिस ने सूचना दी कि अज्ञात युवक का शव अलीगढ़ के शवग्रह में रखा है। मौके पर पहुंचे स्वजन ने शव की पहचान अजीत सिंह के रूप में की। मृतक के पुत्र ने दनकौर कोतवाली में राघवेंद्र के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया था। पुलिस ने विवेचना पूरी कर चार्जशीट अदालत में दाखिल की थी। सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने अदालत के सामने 11 गवाह पेश किए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में में सिर पर ठोस वस्तु (ईंट) से प्रहार से अजीत की मौत होने की पुष्टि हुई थी। न्यायालय ने इस चिकित्सीय साक्ष्य को महत्वपूर्ण माना।
अदालत ने माना कि राघवेंद्र को मृतक के साथ अंतिम बार देखा गया था। इसके बाद उनकी मौत हो गई थी। अदालत ने यह भी नोट किया कि आरोपित का व्यवहार घटना के बाद संदिग्ध था। पुलिस मौके पर पहुंची, तब तक राघवेन्द्र घटनास्थल से जा चुका था। यदि वह निर्दोष होता तो तलाश अभियान में सहयोग करना चाहिए था। आरोपित के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल का पहला अपराध है।
मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है, इसलिए न्यूनतम सजा दी जाए। अभियोजन ने दलील दी कि आरोपित का अपराध जघन्य श्रेणी में आता है। उसे कठोरतम सजा मिलनी चाहिए। कहा कि आरोपित ने न केवल हत्या की बल्कि शव को नहर में फेंककर साक्ष्य मिटाने का भी प्रयास किया। जज ने दोनों पक्षों की दलीलों और साक्ष्यों के आधार पर माना कि अभियोजन ने मामले को संदेह से परे साबित किया है। अभियोजन द्वारा अपराध की पूरी श्रृंखला को कड़ी-दर-कड़ी सिद्ध किया गया है।
आरोपित द्वारा ही मृतक अजीत सिंह की हत्या कर साक्ष्य मिटाने का प्रयास किया गया। फिलहाल, न्यायालय ने यह भी माना कि मामला दुर्लभतम में दुर्लभ श्रेणी में नहीं आता है। आरोपित का पहले से आपराधिक इतिहास नहीं है। यह पहला अपराध है। इसलिए अदालत ने आईपीसी की धारा-302 (हत्या) के तहत आजीवन कारावास और धारा-201 (साक्ष्य मिटाने) का दोषी करार देते हुए सात वर्ष की सजा सुनाई। दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। अर्थदंड की 50 प्रतिशत राशि पीड़ित स्वजन को दी जाएगी।

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