नोएडा-ग्रेटर नोएडा में 500 ई बस चलाने की योजना अटकी, 180 दिन पूरे होने पर दोनों कंपनियों के टेंडर निरस्त
गौतमबुद्ध नगर में ई बस सेवा शुरू करने की योजना में देरी हो रही है। एसपीवी नहीं बनने और 180 दिन से ज्यादा होने पर शासन ने टेंडर निरस्त कर दिया है। पहले ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, नोएडा। गौतमबुद्ध नगर में ई बस सेवा अभी नहीं मिल सकेगी। एसपीवी नहीं बनने और 180 दिन से ज्यादा होने पर शासन ने टेंडर निरस्त कर दिया है। टेंडर के जरिए दो कंपनियों का चयन करीब छह महीने पहले किया गया था। इन कंपनियों को बसों का संचालन करना था। शासन स्तर पर अब दोबारा से प्रोसेस किया जाएगा। हालांकि इस बार काफी बदलाव होने की उम्मीद है।
प्राधिकरण सीईओ डा लोकेश एम ने बताया कि कंपनी की ईएमडी को वापस किया जाएगा। दोबारा से बसों के संचालन के लिए टेंडर जारी किया जाएगा। एसपीवी भी शासन स्तर पर बनेगी। संभवता इस बार यूपीएसआरटीसी को इसमें शामिल किया जा सकता है। बसों के इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे बस डीपो, चार्जिंग पाइंट, सर्विस सेंटर प्राधिकरण बनाकर देगा।
इस पूरी प्रक्रिया में 30 दिन का समय लग सकता है। ऐसे में फरवरी में नोएडा , ग्रेटरनोएडा और यमुना विकास में ई सिटी बस सर्विस चलते दिख सकती है। दरअसल, प्लान था कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे क्षेत्र में 500 इलेक्ट्रिक बस चलेंगी। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इसे महत्वपूर्ण माना जा रहा था। ये योजना करीब 675 करोड़ रुपए की है।
नोएडा प्राधिकरण के इसका नोडल बनाया गया। एसपीवी का गठन करने की जिम्मेदारी नोएडा की थी। हालांकि अन्य प्राधिकरण की ओर से रिस्पांस नहीं मिलने से एसपीवी का गठन नहीं किया जा सका।
तीनों ही प्राधिकरण ऑन डिमांड बसों की मांग करेंगे। मतलब जितनी जरूरत होगी उतनी ही। ऐसा करने से तीनों प्राधिकरण पर वायबिलिटी गैप फंडिंग (VGF) का बोझ भी कम होगा और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जा सकेगा। रुटों को डिफाइन किया जाएगा कि कहा कहा पर बसें चलनी है। एसपीपी शासन स्तर पर बने और इंफ्रास्ट्रक्चर तीनों प्राधिकरण देंगी।
छह महीने पहले दो कंपनी चुनी गई थी
करीब 6 महीने पहले ट्रैवल टाइम मोबिलिटी इंडिया और डेलबस मोबिलिटी को 12 साल के ग्रॉस कॉस्ट मॉडल पर बसें सप्लाई, ऑपरेट और मेंटेन करने के लिए चयनित किया गया था। लेकिन जीबीएन ग्रीन ट्रांसपोर्ट लिमिटेड नाम की जिस संयुक्त एसपीवी के जरिए सेवा चलाई जानी है, वह गठित नहीं हो सकी। एसपीवी न बनने के कारण कंपनी के साथ अंतिम समझौता नहीं हुआ और टेंडर को निरस्त कर दिया गया।
आर्थिक बोझ को करना होगा कम
बसों के माडल पर सालाना 225 करोड़ रुपये वीजीएफ की जरूरत होगी, जिसमें अकेले नोएडा प्राधिकरण को 107 करोड़ रुपए से अधिक वहन करने होंगे। बिना मांग और सिस्टम तैयार हुए इतनी बड़ी वित्तीय जिम्मेदारी लेना जोखिम भरा होगा। इस तरह, पूरी परियोजना का भविष्य अब राज्य सरकार के फैसले पर टिका है कि वह इसे चरणबद्ध रूप में आगे बढ़ाएगी या पूरे मॉडल को फिर से डिजाइन किया जाएगा।

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