Noida Good News: लोकल फॉर वोकल, हुनर से हथेली पर खींच ली तरक्की की लकीर
‘लोकल फार वोकल’ के मंत्र को सार्थक करते हुए गांव की दूसरी महिलाओं को रोजगार दे रही हैं सरमी। मध्यप्रदेश के धार जिले के आगर गांव की रहने वाली सरमी डोडवे ने महिला सशक्तीकरण की एक मिसाल पेश कर दी है। सरमी बताती हैं कि अबतरक्की राह निकल पड़ी।
नोएडा [पारुल रांझा]। कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों.. भले ही यह शायर की पंक्तियां हों, लेकिन इन्हीं पंक्तियों के सहारे मध्यप्रदेश के धार जिले के आगर गांव की रहने वाली सरमी डोडवे ने महिला सशक्तीकरण की एक मिसाल पेश कर दी है। सरमी बताती हैं कि जब अपने हुनर के शौक को कमाई का जरिया बनाया, तो तरक्की राह निकल पड़ी।
बाग पिंट्र की साड़ियों की हस्तकला को रोजगार में बदला। कड़ी मेहनत के दम पर अपने राज्य में अलग पहचान बनाई। फिलहाल सरमी आज ‘लोकल फार वोकल’ के मंत्र को सार्थक करते हुए गांव की दूसरी महिलाओं को रोजगार दे रही हैं।
दुनियाभर में बाग पिंट्र की साड़ियों को नई पहचान देने में जुटी सरमी
नोएडा सेक्टर-33 स्थित शिल्प हाट में आयोजित सरस आजीविका मेले में 39 वर्षीय सरमी डोडवे बाग ¨पट्र की कॉटन व सिल्क की साड़ियों व बेडशीट को लेकर पहुंची हैं। वह पिछले 10 वर्षों से अपने हुनर के जरिये इस कला को न केवल आगे बढ़ा रही हैं, बल्कि दुनियाभर में नई पहचान देने की कोशिश में जुटी हैं। सरमी बताती हैं कि बाग पिंट्र का नाम जिला धार के एक छोटे से कस्बे बाग पर आधारित है।
बाग छपाई की प्रक्रिया बहुत पेचीदा और थका देने वाली होती है। इसमें केवल प्राकृतिक सामग्री का उपयोग होता है। वर्तमान में अपने गांव में वन वासी समूह के जरिये एक केंद्र का संचालन कर रही हैं, जिसमें गांव की करीब 60 महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। उनके द्वारा तैयार की गई साड़ियां आज एक ब्रांड बन गई हैं। उनके पास विभिन्न राज्यों के व्यापारियों के भी आर्डर आते हैं।
एक साड़ी तैयार करने में लगते है 29 दिन
सरमी बताती है कि हर माह बाग पिंट्र की कला से करीब एक लाख रुपये की आय हो जाती है। एक बाग पिंट्र साड़ी को तैयार करने में 29 दिन लग जाते हैं। इसे गोंद, अनार के छिलके, हरड़-बहेड़ा आदि का प्रयोग कर तैयार किया जाता है। मध्य प्रदेश की गुफाओं पर की गई चित्रकारी की छाप इन साड़ियों में देखने को मिलती है। इन्हीं विशेषताओं के चलते यह कपड़ा लोगों में खासा पसंद किया जाता है।
और ऐसे बनीं आत्मनिर्भर
सरमी डोडवे गांव अगर से करीब तीन किमी दूर गांव बाग जाकर इस कला को सीखती थीं। वे बताती है कि एक बार उन्हें मानदेय बढ़ाने के मामले में बुरे व्यवहार से गुजरना पड़ा। यह मेरे आत्म सम्मान के लिए ठीक नहीं था। मैंने तभी ठान लिया था कि अब नौकरी नहीं करूंगी। मुङो लगा कि लंबे समय तक मजदूरी करने से अच्छा है कि मैं खुद अपने पैर पर खड़ी होकर कार्य करूं। इसके चलते सरमी ने तत्काल इस दिशा में कदम बढ़ाए। जब खुद का काम शुरू किया तो चुनौती भी आई।
परिवार के लोगों ने कहा कि कमाई नहीं हो रही है तो नौकरी कर लो, पर ऐसा नहीं किया। रमी का कहना है कि कोरोनाकाल में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, लेकिन अब जबकि इस तरह के हाट बाजार और अन्य मेले लगना शुरू हो गए तो हमारी आजीविका फिर पटरी पर आ जाएगी।