Happy Birthday Noida: डेवलपमेंट में आसमान की ऊंचाईयां छू रहा नोएडा, कैसे तय किया बैलगाड़ी से फ्लाइट तक का सफर?
Noida Foundation Day नोएडा की स्थापना को 49 साल पूरे हो चुके हैं। इन सालों में नोएडा ने डेवलपमेंट में आसमान की ऊंचाईयों को छुआ है। 17 अप्रैल 1976 को न ...और पढ़ें

कुंदन तिवारी, नोएडा। एक पौधा, जो इस समय दरख्त (पेड़ या वृक्ष) के रूप में आसमान की ऊंचाईयों को छूने के साथ अपने साये में लाखों लोगों को आश्रय दे रहा है, वह विकास के नए आयाम और नई इबारतें भी लिख रहा है। हम नोएडा की बात कर रहे है।
नोएडा आज अपनी 50वीं वर्षगांठ मना रहा है। स्थापना (17 अप्रैल 1976) की परिकल्पना को नोएडा शहर के रूप में धरातल दिया गया। जो धरती कभी सिर्फ खेत-खलिहान और कांटों के जंगल का रूप हुआ करता था। दूर-दूर तक धूल उड़ती नजर आती थी।

कैसे विकास ने पकड़ी रफ्तार?
कहीं कोई पक्का रास्ता या ऐसी सड़क नहीं थी, जहां वाहनों को या लोगों को सरपट दौड़ते हुए देखा जा सके। यहां विकास के साथ हजारों लाखों परिवार के सबल होने का सपना देखा गया था।
खट-खट और धड़ाक-धड़ाक की आवाज करने वाले कलपुर्जों के बीच इस पौधे ने अपनी जड़े जमानी शुरू की। एक-एक करके कच्चे मकानों के बजाय यहां पक्के मकान बनने शुरू हुए। एक-एक मोहल्ला बदलने लगा। कुछ नए मकान बनने शुरू हुए।
विदेशों में भी नोएडा का नाम जानते हैं लोग
नए कारखानों के खुलने से लोगों की आवाजाही भी बढ़ी और नोएडा के आंगन में चहल-पहल बढ़ने लगी। जिस उद्देश्य के लिए नोएडा नाम के पौधे को रोपा गया था, वह साकार होता नजर आ रहा है।
आज नोएडा का नाम विदेश में भी कोने-कोने में लोग जानते हैं। यादें पुरानी जरूर हुई हैं, लेकिन धुंधली नहीं हैं। अतीत के साये में झांकने पर नजर आता है, जब लोग खेतों में जाते थे तो पैदल जाते थे या बैलगाड़ी का प्रयोग करते थे।
दिल्ली जाने के लिए तय करना पड़ता था मीलों का पैदल सफर
देश की राजधानी नोएडा से कुछ ही दूरी पर थी, लेकिन इस दूरी को तय करने के साधनों की बेइंतहा कमी थी। मीलों का पैदल सफर करने के बाद बस मिलती थी। इसमें भी बदलाव आया और गाजियाबाद व दिल्ली के लिए सुबह और शाम एक-एक बस की सेवा शुरू हुई। इससे उन लोगों को खासा आराम मिला, जिन्हें रोज लंबा सफर तय करना पड़ता था।

अब नोएडा से घंटों में पहुंचेंगे विदेश
जितना समय कभी यहां से दिल्ली तक के सफर में लगता था। आज यहां वह हर संसाधन मौजूद हैं, जो देश के किसी भी हिस्से में सबसे बेहतर माना जाता है। आज यहां से विदेश तक पहुंचने में भी उतना समय नहीं लगेगा। जल्द ही जेवर एयरपोर्ट से इंटरनेशनल फ्लाइट्स का संचालन शुरू होगा।
जहां धूल करती थी परेशान, आज वहां चमचमाती सड़कें
जिन कच्चे रास्तों पर कभी धूल लोगों को परेशान करती थी, आज वहां लंबी चौड़ी सड़कें नजर आती हैं। जहां कभी रिश्तेदारों के घर जाने से पहले फल और मिठाई की दुकानों की तलाश में आंखें बहुत दूर तक के नजारे देखती थी, अब वातानुकूलित माहौल में खरीदारी करने का सुकून भी मिल रहा है।
स्कूल में जाने के लिए बच्चों को कच्चे रास्तों से होकर जाना पड़ता था, आज यहां स्कूल बसों की लाइन लगती है। कभी सरकारी स्कूलों में क, ख, ग सुनाई देती थी, अब ए, बी, सी, डी सुनाई देती है। सिनेमा के नाम पर मात्र एक-दो पर्दे होते थे, आज अपनी मर्जी से जब चाहो किसी भी मल्टीप्लेक्स में जाकर अपने पसंदीदा किरदारों की अदाकारी को देखा जा सकता है। स्टाप पर बस का हार्न बजता था।

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