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    तीन पाकिस्तानी फौजी को मार गिराकर बचाई बटालियन, पढ़िए देश के लिए बलिदान हो गए नरेंद्र की कहानी

    Updated: Sat, 26 Jul 2025 01:41 PM (IST)

    Kargil Vijay Diwas 2025 ग्रेटर नोएडा के सैंथली गांव के नरेंद्र भाटी ने कारगिल युद्ध में वीरता का प्रदर्शन किया और 21 जुलाई 1999 को शहीद हो गए। CRPF जवान भाटी ने बारामूला में तैनाती के दौरान दुश्मनों से लोहा लिया और अपनी बटालियन को सुरक्षित रखा। मरणोपरांत उन्हें श्रद्धांजलि दी गई और उनके नाम पर सड़क का नामकरण किया गया।

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    Kargil Diwas: कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लिया था लोहा, 21 जुलाई 1999 में को लड़ते लड़ते दिया बलिदान।

    अर्पित त्रिपाठी, ग्रेटर नोएडा। कारगिल युद्ध देश के सैनिकों की वह वीरता की कहानी है, जिसे याद कर हर भारतीय गर्व महसूस करता है। पाकिस्तान के साथ हुए इस युद्ध में देश के लिए 527 जवानों ने अपना बलिदान देकर पाकिस्तान को युद्ध में पराजित किया। पाकिस्तान की नापाक हरकत को छलनी कर दिया।

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    वीर बलिदानों के किस्से आज भी सुन देशवासियों की छाती चौड़ी हो जाती है। गौतमबुद्ध नगर के ग्रेटर नोएडा स्थित सैंथली गांव में जन्मे नरेंद्र भाटी ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।

    दुश्मनों से लोहा लेते हुए नरेंद्र भाटी 21 जुलाई 1999 को वीरगति को प्राप्त हुए। 21 जुलाई 1999 को दुश्मनों ने नरेंद्र के कैंप पर हमला बोल दिया था। कारगिल के बलिदानियों में नरेंद्र भाटी का नाम भी स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।

    नरेंद्र भाटी के बेटे सुमीर भाटी ने बताया कि पिता का जन्म दो जनवरी 1971 को सैंथली गांव किसान पिता चौधरी महीपाल सिंह भाटी व वीरमाता विशंबरी देवी के घर हुआ। जुलाई 1993 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स में भर्ती हो गए। 1993 से 1999 तक विभिन्न राज्यों में तैनात रहे।

    अप्रैल 1999 में वह असम की सी-130 बटालियन में तैनात थे। अप्रैल में छुट्टी पर गांव आए हुए थे। उसी दौरान जवानों की छुट्टी रद कर दी गई। उन्हें असम से बारामूला भेजा दिया गया। कारगिल की लड़ाई के दौरान सी-130 बटालियन को पेट्रोलिंग के लिए तैनात किया गया था।

    बटालियन के अफसरों ने उनकी बहादुरी को देखते हुए बारामूला डुडा बग और चनडुसा पोस्ट पर तैनात कर दिया। 21 जुलाई 1999 की रात अचानक उनकी बटालियन पर ग्रेनेड से हमला कर दिया गाया। वहां पाकिस्तान सेना के कुछ जवान छिपे हुए थे, जिसकी सूचना शहीद नरेंद्र ने बटालियन के अफसरों को दी।

    उनके साथ बटालियन के जवानों ने मजबूती से मोर्चा संभालते हुए दुश्मनों को पीछे हटाया। दोनों ओर से गोलियों की बौछार शुरू हो गई। नरेंद्र व साथी जवान बिजली की गति से दुश्मनों पर टूट पड़े। इस दौरान एक गोली उनकी छाती में लगी और दूसरी पेट में।

    दिल में देश की रक्षा का जज्बा होने के कारण उनके कदम पीछे नहीं हटे। नरेंद्र भाटी ने तीन पाकिस्तानी फौजी को मौत के घाट उतार दिया। जख्मी होने बावजूद मोर्चे पर डटे रहे। दुश्मन के इरादों को नाकाम कर अपनी पोस्ट की रक्षा कर दुश्मनों से लोहा लेते हुए भारत माता की गोद में सो गए।

    उनके शौर्य के कारण बटालियन महफूज रही। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह (राज्जु भइया), पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव, तत्कालीन कांग्रेस नेता राजेश पायलट ने सैंथली गांव आकर श्रद्धांजलि दी।

    बलिदानी नरेंद्र भाटी के सम्मान में सैंथली से छौलस, नंगला गांव तक जाने वाली लगभग 10 किलोमीटर लंबी सड़क का नाम भी उनके नाम पर रखा गया। उनकी पत्नी सुरेश देवी, बेटा सुमीर भाटी, सुमित भाटी और बेटी संगीता भाटी को उन पर गर्व है।

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