Sambhal Riots 1978: लोकसभा और विधानसभा में गूंजा था संभल दंगा, कांग्रेस ने बताया था अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश
Sambhal Riots | 1978 में संभल में हुए दंगे आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं। इस दंगे की गूंज विधानसभा और लोकसभा में भी सुनाई दी थी। दंगे के बाद हिंदुओं ने मुस्लिम बहुल मोहल्लों से पलायन किया था। हिंदुओं के पलायन से खग्गू सराय के शिव मंदिर (Shiv Mandir) और सरायतरीन के राधाकृष्ण मंदिर में ताला पड़ गया।

संजय रुस्तगी, मुरादाबाद। 47 वर्ष बाद भी संभल का दंगा लोगों के जेहन में ताजा है। विधानसभा और लोकसभा में भी दंगे की गूंज सुनाई दी थी। 29 मार्च, 1978 को संभल में हिंसा हुई, उस दिन विधानसभा सत्र चल रहा था। अगले ही दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री रामनरेश यादव में विधानसभा में जानकारी दी।
उन्होंने बताया था कि हिंसा को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को तीन स्थानों से 19 राउंड फायरिंग करनी पड़ी। उन्होंने मृतकों के आश्रितों को पांच-पांच हजार और घायलों को दो-दो हजार रुपये मदद की भी घोषणा की थी। कांग्रेस ने भी अध्ययन दल भेजकर हिंसा की जांच कराई थी।
1978 का दंगा सुर्खियों में है
पार्टी के तत्कालीन महासचिव शफी मोहम्मद कुरैशी और उन्नीकृष्णन ने दंगे को अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश करार दिया था। तत्कालीन सांसद शांति देवी ने लोकसभा में भी यह मुद्दा उठाया था। जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर संभल में 24 नवंबर को हिंसा होने के बाद अब 1978 का दंगा भी सुर्खियों में है।
दंगे के बाद हिंदुओं ने मुस्लिम बहुल मोहल्लों से पलायन किया था। हिंदुओं के पलायन से खग्गू सराय के शिव मंदिर और सरायतरीन के राधाकृष्ण मंदिर में ताला पड़ गया। इनके भूमि पर आसपास के लोगों ने अतिक्रमण कर लिया। दंगे के दौरान कई लोगों को जिंदा जला दिया गया। कई के हाथ-पैर काट दिए गए। करीब दो माह संभल में कर्फ्यू रहा था। दो अप्रैल को कर्फ्यू में छूट मिलने पर छूरेबाजी से कई लोगों को मरणासन्न किया गया।
लोकसभा और विधानसभा में उठा था संभल दंगे का मुद्दा
तत्कालीन सांसद शांति देवी ने भी पत्रकार वार्ता में इसे दोहराया था। विधान परिषद में दंगे का मामला उठने के बाद शासन ने संभल के जिला प्रशासन से इसके बारे में रिपोर्ट तलब की है। पुलिस अधिकारियों के साथ अधिवक्ता भी इसका रिकॉर्ड खंगालने में जुटे हैं। हालांकि, गवाहों के मुकरने की वजह से कई मुकदमे खत्म माने जा रहे हैं।
भाजपा के एमएलसी डॉ. जयपाल सिंह व्यस्त बताते हैं कि वह खुद बिजनौर में रहते थे, लेकिन दंगे की यादें ताजा हैं। दंगे के बाद संभल के पलायन करने वाले सतीश मदान बताते हैं कि कांग्रेस के अध्ययन दल ने एक पक्ष की बातों को ही सुना था। हमारे पास कोई आया तक नहीं था।
दंगे में हिंदुओं को जिंदा जलाया गया, लेकिन कांग्रेस नेताओं ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश करार दिया। कांग्रेस नेता एडवोकेट आनंद मोहन बताते है कि 1978 में वह एनएसयूआई के शहर अध्यक्ष थे। पार्टी नेताओं के संपर्क में थे। विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने दंगे के मुद्दे को बढ़चढ़कर उठाया था।
तीन स्थानों से की फायरिंग
संभल की स्थिति नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने भी तीन स्थानों से फायरिंग की। इसमें भी कई लोगों के हताहत होने का आरोप लगा था। पुलिस की चौकसी के बाद भी हालात बेकाबू रहने के कारण ही करीब दो माह कर्फ्यू लगा था।
खांडसारी कारखाने की टांड में छिपकर बचाई जान
संभल के ओम प्रकाश गर्ग के खांडसारी कारखाने पर उपद्रवियों ने धावा बोला था। कई लोगों को भट्टी में डाल दिया। बताया जाता है कि कई पर केरोसीन डालकर आग लगा दी। बताया जाता है कि छिपने की वजह से छह लोगों की जान बच सकी थी। बाकी कारखाने में मौजूद सभी लोगों की हत्या कर दी गई।
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