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    डंडों के साए में 'असुरक्षित शिक्षा'! मुरादाबाद के स्कूलों में बंदरों का कहर; कक्षाएं बंद, लंच चोरी

    Updated: Tue, 16 Dec 2025 04:15 PM (IST)

    मुरादाबाद के स्कूलों में बंदरों के आतंक से कक्षाएं बंद हो गई हैं, जिससे छात्रों की शिक्षा बाधित हो रही है। बंदरों के डर से बच्चे और शिक्षक डरे हुए हैं ...और पढ़ें

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    स्‍कूल की दीवार पर बैठे बंदर

    जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। शहर के स्कूलों और कालेजों में बंदरों की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। हालत यह है कि बंदर न सिर्फ स्कूल परिसरों में घूम रहे हैं, बल्कि कक्षाओं तक में घुस जा रहे हैं। कई बार बच्चों का लंच तक छीनकर ले जाते हैं, जिससे छात्र-छात्राओं में डर का माहौल बना रहता है। शिक्षक और स्कूल प्रशासन इस स्थिति से परेशान हैं। कक्षाएं बंद करके बच्चों को पढ़ाया जा रहा है।

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    लेकिन, नगर निगम का सीधा जवाब है कि बंदरों का कुछ नहीं कर सकते। अगर, यही हाल रहा तो स्कूलों में बच्चों का पढ़ना मुश्किल हो जाएगा। नगर निगम में शिकायतें पहुंचने पर भी कोई संज्ञान बंदर को पकड़ने को नहीं लिया जा रहा है। स्कूल संचालक उम्मीद लगाए हैं कि निगम बंदरों को पकड़कर दूर जंगलों में छोड़े तो बंदरों के आतंक का डर कम हो ओर बच्चों की पढ़ाई ठीक से हो सके।

    दयानंद डिग्री कालेज, एसएस गर्ल्स कन्या इंटर कालेज, टाइनी टाट्स स्कूल, रानी प्रीतम कुंवर स्कूल, बल्देव आर्य कन्या इंटर कालेज समेत दर्जनों शिक्षण संस्थानों में बंदरों का आतंक है। कई स्कूलों में बंदों से बचाव के लिए लंगूर के कटआउट लगाए गए हैं। इसके बावजूद बंदरों का आतंक कम नहीं हुआ है।

    स्कूलों के मैदान में स्थिति और भी चिंताजनक है। छात्राओं के पास सुरक्षा के लिहाज से डंडा लेकर चपरासी को खड़ा किया जाता है, ताकि अचानक बंदर आ जाएं तो उन्हें भगाया जा सके। कहीं-कहीं गुलेल से बंदरों को डराने की कोशिश की जा रही है, लेकिन यह उपाय भी कारगर साबित नहीं हो रहे।

    स्कूलों ने कई बार नगर निगम को पत्र लिखकर बंदरों को पकड़ने की मांग की, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। नगर निगम के स्तर पर बंदर पकड़ने की व्यवस्था न होने से समस्या जस की तस बनी हुई है। अभिभावकों में भी इसे लेकर चिंता बढ़ती जा रही है, क्योंकि बच्चों की सुरक्षा और पढ़ाई दोनों प्रभावित हो रही हैं।

    एक स्कूल के प्रिंसिपल ने बताया कि बंदरों की वजह से कई बार कक्षाओं में पढ़ाई रोकनी पड़ती है। बच्चों में डर बना रहता है और शिक्षक भी असहज महसूस करते हैं। उन्होंने नगर निगम से जल्द से जल्द प्रभावी कदम उठाने की मांग की है, ताकि स्कूलों में सुरक्षित वातावरण बनाया जा सके।

    एसएस गर्ल्स अकादमी सिविल लाइंस में चपरासी व बच्चे को काट चुके बंद

    एसएस गर्ल्स अकादमी सिविल लाइंस के स्कूल में बंदरों से सुरक्षा के लिए दो चपरासी खड़े होते हैं। इसके बाद भी बंदरों का आतंक इस कदर है कि एक महीना पहले एक चपरासी व एक छात्रा को बंदर काट चुके हैं। छुट्टी के बाद भी गंदगी करते हैं। तब स्कूल की ओर से नगर निगम को पत्र भेजकर बंदर पकड़ने को पत्राचार किया था। लेकिन, नगर निगम ने इस पत्राचार का संज्ञान नहीं लिया। यही हाल अन्य स्कूलों का भी है। लेकिन, फिर भी स्कूल और बच्चों की समस्या नगर निगम को नजर नहीं आ रही है।

    दो साल पहले पकड़े थे मात्र 2500 बंदर

    शहर में बंदरों की संख्या करीब 60000 है। कुत्तों से भी ज्यादा बंदरों की संख्या हो गई है। जबकि कुत्तों की संख्या 50000 है। दो साल पहले एक महीने में मात्र 2500 बंदर पकड़े गए थे। मथुरा से बंदर पकड़ने को पिंजरा लेकर टीम आई थी। एक महीना तक अभियान चलाकर बंदर पकड़वाने के बाद नगर निगम ने हाथ खड़े कर दिए थे और जनवरी 2024 में यह टीम बिना भुगतान के वापस लौट गई थी।

    नगर निगम बोर्ड व कार्यकारिणी की बैठक में बंदरों का मुद्दा हर बार उठता है। लेकिन, बंदरों को नहीं पकड़ा जा रहा है। नगर निगम प्रति बंदर 300 रुपये में मथुरा से टीम को बुलाया था। तब उम्मीद थी कि शहर से बंदर कम हो जाएंगे। लेकिन, बंदरों से नगर निगम ने किनारा कर रखा है।

     

    बंदर कई बार छात्राओं पर हमला कर चुके हैं। चपरासी डंडा लेकर फील्ड में घूमता रहता है। कक्षाओं के दरवाजे पढ़ाते समय बंद रखे जाते हैं। लंगूर का कटआउट भी बंदर भगाने को लगा रखा है। लेकिन, फिर भी नहीं भागते। नगर निगम को इस समस्या का समाधान करना चाहिए।

    - प्रो. सीमा रानी, दयानंद आर्य कन्या डिग्री कालेज

     

     

    बंदरों के डर से दरवाजे बंद करके पढ़ाते हैं। बच्चों का लंच भी बंदर छीन कर ले जाते हैं। एक महीना पहले चपरासी व बच्चे को काट चुके हैं। नगर निगम से बंदर पकड़ने को पत्राचार भी किया। लेकिन, कोई राहत नहीं मिली।

    - मृदुला अग्रवाल, प्रधानाचार्य, एसएस गर्ल्स अकादमी, सिविल लाइंस

     

     

    बंदरों को पकड़ने के लिए दो साल पहले टीम बुलाई गई थी। लेकिन, तब कुछ लोगों ने इसका विरोध किया था। दूसरा, पिंजरा लगाने के बाद भी अपेक्षाकृत बंदर नहीं पकड़े जा रहे थे।

    - अजीत कुमार सिंह, अपर नगर आयुक्त


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