जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं में क्या है अंतर, जानें जनऔषधि केंद्र पर दवा लेने के क्या हैं नियम
Difference in Generic and Branded Medicines जेनरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं से कैसे सस्ती पड़ती हैं। जेनरिक दवा और ब्रांडेड दवा क्या है? दोनों में अंतर क्या है? दाम में कितना अंतर है? जिले में कितने जन औषधि केंद्र हैं? वहां दवा लेने का नियम क्या है?

जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। Difference in Generic and Branded Medicines : जेनेरिक दवा ... साल्ट के आधार पर मिलने वाली दवा भी वही काम करती है जो ब्रांडेड करती है। फर्क सिर्फ इतना है कि ब्रांडेड दवा का प्रचार होता है और जेनेरिक का नहीं। इसलिए दवा खरीदते समय आपको साल्ट का नाम मालूम होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर हम बात करें तो ब्रांडेड में पेट के कीड़े मारने की 10 टेबलेट 80 रुपये में मिलेगी और जेनेरिक में यह दवा छह रुपये की है।
यही हाल मलेरिया किट की बात करें तो ब्रांडेड में यह दवा तकरीबन 100 रुपये की है। इसी साल्ट में जेनेरिक मलेरिया किट 29.30 रुपये की है। इससे आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि जेनेरिक दवा कितनी सस्ती है और ब्रांडेड कितनी महंगी है। इसी मंशा के तहत सरकार ने जेनेरिक दवा के लिए 20 जन औषधिक केंद्र जिले में खुलवाए हैं। जिससे गरीब व्यक्ति को दवा खरीदने में आसानी हो सके।
ब्रांडेड-जेनेरिक में फर्कः चीफ फार्मासिस्ट शिशुपाल सिंह ने बताया कि सभी दवाएं केमिकल साल्ट होती हैं। इन्हें शोध के बाद अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाते हैं। जेनेरिक दवा जिस साल्ट से बनाई जाती है। उसी साल्ट से उसे जाना जाता है। उदाहरण के तौर पर बुखार और दर्द में काम आने वाला पैरासिटामाल साल्ट कंपनी इसी नाम से बेचेगी तो उसे जेनेरिक दवा ही कहेंगे। इसके अलावा जब कंपनी उस दवा का नाम बदलकर रख दे तो उसे ब्रांडेड के नाम से बेचा जाता है।
नाम बदलते ही हो जाती है ब्रांडेड दवाः बुखार और दर्द की दवा जेनेरिक अगर आप खरीदेंगे तो वह 10 पैसे प्रति टेबलेट से डेढ़ रुपये तक स्टोर पर मिल जाएगी। यही साल्ट होने पर सिर्फ नाम बदला गया तो दवा ब्रांडेड हो जाएगी। ब्रांडेड दवा डेढ़ रुपये से लेकर 38 रुपये तक मिल जाती है।
दवा लेने का यह है नियमः मेडिकल स्टोर से आप दवा खरीदने गए हैं तो आपको डाक्टर का पर्चा दिखाना होगा। चिकित्सक पर्चे पर दवा लिखेंगे। मेडिकल स्टोर पर जाने के बाद दवा का बिल लेना चाहिए। उस पर्चे में दवा के रेट पड़े होंगे। कुछ दवाइयां ऐसी भी होती हैं जिनका रिकार्ड रखना अनिवार्य है।
दवा खरीदते समय यह रखें ध्यानः मेडिकल स्टोर से दवा खरीदते समय उसके साल्ट पर ध्यान देना जरूरी है। कंपनी के नाम पर नहीं। ब्रांडेड दवा की बिक्री बढ़ाने के लिए उनकी मार्केटिंग होती है। कंपनियां अपने प्रोडक्ट बनाकर उनका प्रचार कराती हैं। जेनेरिक दवा का कोई प्रचार नहीं होता है। दवा कंपनियों ने जेनेरिक दवाओं के बेहतर विकल्प के तौर पर ब्रांडेड दवाओं का खूब प्रचार करते हैं।
कैसे होती है सस्ती दवाः जेनेरिक दवाएं सस्ती होने की सबसे बड़ी वजह से है कि उनका कोई प्रचार नहीं होता है। मार्केटिंग के प्रचार पर पैसा खर्च नहीं होता है। प्रचार में कंपनियों का काफी पैसा खर्च होता है। पहले डेवलपर्स के पेटेंट की अवधि समाप्त होने के बाद उनके फार्मूलों और साल्ट का उपयोग करके बनाई जाती हैं।
गरीबों को मिले आसानी से दवाः औषधि निरीक्षक मुकेश कुमार जैन ने बताया कि दवाओं को लेकर सरकारी की सीधी मंशा यह है कि गरीब व्यक्ति भी आसानी से अपनी बीमारी का उपचार कम दाम में करा सके। इसको लेकर सरकार ने जन औषधि केंद्र खुलवाए हैं। जिले में 20 जन औषधि केंद्र हैं। जिसमें दो सरकारी अस्पताल में और 18 मेडिकल स्टोर पर हैं। मेडिकल स्टोर पर जेनेरिक और ब्रांडेड दोनों तरह की दवाएं बेची जा रहीं हैं। जबकि इसके पीछे सरकार की मंशा थी कि सिर्फ जेनेरिक दवाएं ही जन औषधि केंद्रों पर बेची जाएं।
देखें दवाओं के दाम में अंतर
दवा, जेनेरिक रुपये, ब्रांडेड,
मलेरिया किट, 29.30, 50 रुपये,
ग्लूकोज, 10 रुपये पाउच, 20 रुपये,
बुखार, 6 रुपये 10 टेबलेट, 18 रुपये,
पेट के कीड़े मारने की दवा, 6 रुपये 10 टेबलेट, 90 रुपये,
गैस के लिए, 5 रुपये 10 टेबलेट, 23 रुपये,
ब्लड प्रेशर, 7 रुपये 10 टेबलेट, 20 रुपये,
मल्टीविटामिन, 46 रुपये 20 टेबलेट, 70 रुपये,
डायजीन, 6 रुपये 10 टेबलेट, 20 रुपये,
दर्द निवारक जेल, 22 रुपये 30 ग्राम, 29 रुपये
दर्द निवारक स्प्रे, 48 रुपये, 60 रुपये,
सेनेट्री पेड, 10 रुपये 10 पीस, 30 रुपये,
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