Updated: Thu, 28 Dec 2023 08:56 PM (IST)
वर्तमान में काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रमुख अर्चक पं.श्रीकांत मिश्र उस समय मात्र 15 वर्ष के थे। वह स्थानीय स्तर पर बजरंग दल के संयोजक थे। 1990 में विहिप व संतों के मार्गदर्शन में प्रारंभ हुआ आंदोलन जनांदोलन में परिणित हो चुका था। 30 अक्टूबर को कारसेवा के लिए अयोध्या जाते समय पंडित मिश्र को स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ प्रतापगढ़ में पुलिस ने लाठियां बरसाते हुए गिरफ्तार कर लिया था।
संवाद सहयोगी, चुनार (मीरजापुर)। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के दौर में 33 वर्ष पूर्व चुनार नगर के रामभक्तों का जोश उफान पर था। वर्तमान में काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रमुख अर्चक पं.श्रीकांत मिश्र उस समय मात्र 15 वर्ष के थे। वह स्थानीय स्तर पर बजरंग दल के संयोजक थे। 1990 में विहिप व संतों के मार्गदर्शन में प्रारंभ हुआ आंदोलन जनांदोलन में परिणित हो चुका था।
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ऐसे में 30 अक्टूबर को कारसेवा के लिए अयोध्या जाते समय पंडित श्रीकांत मिश्र को स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ प्रतापगढ़ में पुलिस ने लाठियां बरसाते हुए गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद जिला कारागार प्रतापगढ़ में बंद कर दिया गया।
सोलह दिन जेल में काटने के दौरान चुनार के समूह में सबसे कम उम्र के वही थे। उस समय प्रभु श्रीराम के लिए मर मिटने का जुनून था। जेल का समय भी काफी कठिन था। जेल में भजन कीर्तन के दौरान एक बार बंदियों पर लाठियां भांजी गईं थीं।
इन कष्टों के बाद आज जब प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण पूर्ण हो चुका है तो देश और पूरी दुनिया के राम भक्त अपने आराध्य को प्रणाम करने और उनसे आशीर्वाद लेने को आतुर हैं। उस दौर को याद करते हुए पं.श्रीकांत मिश्र कहते हैं कि आज जब राम मंदिर के निर्माण का कार्य पूर्ण हो चुका है और 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अयोध्या जाना है तो मन पुलकित और प्रफुल्लित है।
अब रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजेंगे। अब लगता है कि उस समय लाखों रामभक्तों के जनांदोलन का सुखद परिणाम आज सबके सामने है। 1990 में प्रभु श्रीराम मंदिर आंदोलन को लेकर मन में जो भावनाएं थी उसे शब्दों में बताना मुश्किल है। जेल में उनके साथ चुनार के स्थानीय भाजपा नेता भी थे।
जेल में मिलने आए माता -पिता की आंखें रहीं नम
पंडित श्रीकांत मिश्र के पिता पंडित गणेश प्रसाद मिश्र चुनार के श्रीमती भागीरथी ट्रस्ट आदर्श संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य थे। नैनी जेल में रहने के दौरान माता-पिता जब मिलने पहुंचे तो दोनों की आंखों से अश्रुधार बहने लगी लेकिन राम मंदिर के लिए जेल जाने की एक सुखद अनुभूति भी थी।
मेरा परिवार शास्त्रीय परंपराओं व मान्यताओं को मानने वाला था, ऐसे में जेल से आने के बाद पवित्र करने के लिए मुंडन, पंचगव्य, पंचामृत प्राशन कराया गया।
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