यूपी के इस जिले से निकला 'जय हिंद' का नारा, 1940 में मेरठ के घंटाघर का सायरन सुन नेताजी ने कह दी थी बड़ी बात
मेरठ में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का 1940 में हुआ ऐतिहासिक भाषण याद किया जाता है जब उन्होंने घंटाघर से बजते सायरन को ब्रिटिश शासन के खात्मे का संकेत बताया था। नेताजी ने स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित करते हुए भारत भ्रमण के दौरान मेरठ में सभा की थी। उनकी प्रेरणा से मेरठ में जय हिंद का नारा गूंजा और अब हर वर्ष उनके जन्मदिन को मेरठ में मनाया जाता है।

जागरण संवाददाता, मेरठ। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने वर्ष 1940 में मेरठ के टाउनहाल में भाषण के दौरान घंटाघर से बजे सायरन को सुनते ही कहा था कि यह महज एक सायरन नहीं है, यह भारत में अंग्रेजी शासन के खात्मे का संकेत है, जिसकी शुरुआत हो चुकी है।
नेताजी देश भर के लोगों में स्वतंत्रता की अलख जगाने के लिए भारत भ्रमण के दौरान मेरठ आए थे। उस समय बहुत अधिक व्यस्त रहा करते थे और मेरठ में कुछ समय कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद वह उसी दिन यहां से निकल गए थे।
जाने-माने इतिहासकार डा. केडी शर्मा के अनुसार वर्ष 1937 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में ही महात्मा गांधी से हुए मतभेद के बाद नेताजी ने कांग्रेस छोड़कर फारवर्ड ब्लाक का गठन किया था। उसके बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वह भारत भ्रमण के लिए निकले और देश के प्रमुख शहरों में सभाएं करते हुए मेरठ पहुंचे थे। अंतिम बार जर्मनी जाने से करीब दो महीने पहले नेताजी के मेरठ आगमन पर आयोजित इस सभा का आयोजन फारवर्ड ब्लाक की मेरठ शाखा के पदाधिकारियों ने की थी।
डा. केडी शर्मा ने क्या बताया?
डा. केडी शर्मा के अनुसार मेरठ में नेताजी से प्रभावित लोगों में उनके विश्वस्त हरमिंदर सिंह सोधी, अतर जैन, भरत सिंह, राजेंद्र पाल सिंह आदि फारवर्ड ब्लाक से जुड़े और आजाद हिंद फौज के संदेशों को विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए लोगों तक पहुंचाने में अग्रणी भूमिका निभाई।
नेताजी के मेरठ आगमन का रिकार्ड व भाषण का प्रमुख अंश ब्रिटिश रिकार्ड के तात्कालीन आयुक्त की रिपोर्ट में मिलता है। उस भाषण में नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन और गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए क्रांतिकारियों को प्रेरित कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि अब ब्रिटेन से लड़ने का समय आ गया है। स्वतंत्रता और गुलामी के बीच कोई समझौता नहीं हो सकता है।
मेरठ से निकला जय हिंद का नारा
पाकिस्तानी साहित्यकार नूर अहमद मेरठी की वर्ष 2003 में आई किताब शख्सियत-ए-मेरठ में उन्होंने लिखा है कि नेताजी ने आजाद हिंद फौज बनाकर स्वतंत्रता के संघर्ष की अगुवाई कर रहे थे उसी समय जर्मनी में हुई बैठक में एक ऐसा नारा तैयार करने की बात उठी जो प्रेरणा बन सके।
सभी सुझावों में एक सुझाव मेरठ के ही आबिद हुसैन सफरानी का था जिन्होंने जय हिंद का नारा सुझाया था। वह सुझाव नेताजी को पसंद और वहीं उनकी फौज और मिशन का जय घोष भी बन गया। तब से आज तक जय हिंद का नारा बुलंद है।
मेरठ में हर वर्ष मनाते हैं जन्मदिन
नेताजी का जन्मदिन हर वर्ष मेरठ में भी मनाया जाता है। नेताजी सुभाष जन्म दिवस समारोह समिति की ओर से इसकी शुरुआत दिसंबर 1968 में हुई। टाउनहाल में आयोजित सम्मेलन में नेताजी के भतीजे हविंद्र नाथ बोस की अध्यक्षता में आजाद हिंद संघ का गठन हुआ। इस कार्यक्रम में जर्मनी और जापान से भी नेताजी के समर्थक व प्रशंसकों ने हिस्सा लिया था। उस वर्ष से जन्मदिन मनाना शुरू हुआ और अब तक मनाया जाता है।
नेताजी के सैनिकों की मदद से हुआ कांग्रेस का अंतिम अधिवेशन
इतिहासकार डा. केडी शर्मा के अनुसार स्वतंत्रता से पहले मेरठ के विक्टोरिया पार्क में 23 से 25 नवंबर 1946 में आयोजित कांग्रेस का अंतिम अधिवेशन नेताजी के सैनिकों के कारण ही संभव हो सका था। इस भव्य आयोजन के लिए बने पंडालों में अधिवेशन से दो दिन पहले आग लग गई थी।
आयोजकों के हाथ-पैर फूलने लगे कि महज दो दिन में तैयारी पूरी नहीं हो सकेगी। तब आजाद हिंद फौज के कर्नल नागर की अगुवाई में सैनिकों ने व्यवस्था संभाली और युद्ध स्तर पूरे आयोजन स्थल को दुरुस्त किया। इस अधिवेशन में नेताजी की सेना के जनरल शाहनवाज खान भी शामिल हुए थे।
ऐसे जुड़ी हैं मेरठ से नेताजी की यादें
- 1940 में जर्मनी जाने से करीब दो महीने पहले घंटाघर के निकट टाउनहाल में हुआ था नेताजी का भाषण।
- 1957 में घंटाघर का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर रखा गया।
- 1988 में आजाद हिंद संघ ने घंटाघर द्वार पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम लिखवाया।
- 1988 में ही कमिश्नरी चौक पर नेताजी की प्रतिमा स्थापित की गई।
- 2002 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय सभागार का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रेक्षागृह रखा गया।
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