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    Raksha Bandhan: लेफ्टिनेंट तरुण हुए बलिदान, उनके बाद रक्षा बंधन मनाने का बहन शालू का तरीका आपको कर देगा भावुक

    Updated: Wed, 06 Aug 2025 05:09 PM (IST)

    Raksha Bandhan साढ़े तेइस वर्ष की उम्र में बलिदान हुए लेफ्टिनेंट तरुण नैय्यर की बहन शालू को यूं तो भाई की याद हर पल बनी रहती है लेकिन रक्षा बंधन पर यह और अधिक आने लगती है। वह हर सैनिक में अपने भाई की छवि देखती हैं। इस कारण इस पर्व पर मेरठ छावनी में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में सैनिकों को राखी बांधती हैं।

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    बलिदानी लेफ्टिनेंट तरुण नैय्यर का फाइल फोटो। उनकी बहन शालू।

    जागरण संवाददाता, मेरठ। वैसे तो भारतीय सेना से जुड़ने वाले सैनिक और उनका पूरा परिवार ही सैन्य परिवार बन जाता है, लेकिन रक्षाबंधन ऐसा पर्व है जिस दिन बलिदानी वीरों की बहनों को भाईयों की याद अधिक आती है। इसीलिए वह बहनें अन्य सैनिकों में अपने बलिदानी भाई को देखती हैं और हर रक्षाबंधन पर राखियां भेजती और बांधती हैं। हर वर्ष रक्षा पर्व पर बलिदानी लेफ्टिनेंट तरुण नैय्यर की बहन शालू नैय्यर भी यही करती हैं।

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    लेफ्टिनेंट तरुण नैय्यर और उनकी बहन शालू। (फाइल फोटो)

    बेहद जिंदादिल और मिलनसार थे तरुण नैय्यर

    30 जून 2000 को कुपवाड़ा में आतंकियों के खिलाफ एक आपरेशन में बलिदान हुए ले. तरुण को बहन शालू बेहद जिंदादिल, मिलनसार और घर के साथ ही मोहल्ले भर के परिवारों के चहेते के रूप में याद करती हैं। उन्होंने बताया कि ले. तरुण 30 दिसंबर 1999 को सेना के ईएमई कोर में नियुक्त हुए थे और उन्हें जाट रेजिमेंट की आठवीं बटालियन के साथ एक कुपवाड़ा में तैनाती मिली थी।

    ले. तरुण ने मार गिराए थे दो आतंकी

    एक जुलाई 2000 को उनकी यूनिट नीचे की ओर आने वाली थी। एक दिन पहले 30 जून को गांव के एक घर में आतंकियों के छिपे होने की सूचना पर ले. तरुण ने साथियों संग घेराबंदी की। चारों ओर से घिरे आतंकियों ने घेरा तोड़कर भागने की कोशिश की जब ले. तरुण ने उनका पीछा करते हुए दो आतंकी को मार गिराया और तीसरे को पैर में गोली मारी जिससे उसे जिंदा पकड़ा जा सका। इस दौरान उन्हें दो गोलियां लगी जिससे वह बलिदान हो गए।

    छह महीने के सेवाकाल में हुए बलिदान

    करीब साढ़े 23 वर्ष की आयु में महज छह महीने के सेवाकाल में भाई के बलिदानी होने पर शालू बताती हैं कि छावनी क्षेत्र में परेड या अभ्यास करते हर सैनिक में उनकी माता शशि नैय्यर को आज भी बलिदानी तरुण ही दिखते हैं। परिजन तरुण को काकू कहकर बुलाते थे। उनके बलिदान होने के दिन माता दिन भर विचलित रहीं लेकिन बात नहीं हो सकी। सुबह 10 बजे की घटना की जानकारी जब रात करीब साढ़े आठ बजे आई तो परिवार के हर सदस्य का जीवन ठहर गया।

    परिवार के साथ लेफ्टिनेंट तरुण नैय्यर (फाइल फोटो)

    बड़े भाई को राखी बांधने के साथ छावनी में आयोजित कार्यक्रमों में लेती हैं हिस्सा

    शालू के बड़े भाई विवेक नैय्यर हैं। वह उन्हें राखी बांधने के साथ ही इस अवसर पर छावनी में आयोजित कार्यक्रमों में हिस्सा लेने जाती हैं। वहां सैनिकों को राखी बांधती हैं। साथ ही बलिदानी तरुण की यूनिट के स्थापना दिवस समारोहों में जाना होता रहता है। आज भी शालू ईश्वर से यह प्रार्थना करती हैं कि उनके बलिदानी भाई को दोबारा जन्म मिले और वह पूरा जीवन जीते हुए भरा-पुरा परिवार देख सकें।