हस्तिनापुर से चुनाव नहीं लड़ेंगे दिनेश खटीक? समझिए पंचायत चुनाव से पहले हुई घोषणा के असल मायने
राज्यमंत्री दिनेश खटीक का हस्तिनापुर सीट छोड़ने का निर्णय राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय है। 2017 से 2022 तक के उनके राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ ...और पढ़ें

प्रदीप द्विवेदी, मेरठ। राज्यमंत्री दिनेश खटीक का यह कहना कि वह अब हस्तिनापुर सीट नहीं चाहते, यह घोषणा राजनीतिक यात्रा का नया पड़ाव है, जिसकी जड़ें अंतर्मन से कहीं ज्यादा सुनियोजित राजनीतिक चयन की ओर ले जा रही हैं। 2017 से पहले के संगठनात्मक संघर्ष, 2021 में मंत्री पद और 2022 के असंतोष से गुजरता हुआ रास्ता अब वोटबैंक समीकरण के कांटे से अवरुद्ध हो रहा है।
महाभारत, पुराण आदि ग्रंथ मन के भीतर चल रहे द्वंद्व को दिशा देते हैं इसलिए दिनेश खटीक अब उस सीट को छोड़ रहे हैं। जैसा कि उन्होंने अपने समर्थकों से पहले ही यह कहना शुरू कर दिया था उसकी अब पुष्टि भी कर दी है। विधानसभा चुनाव से दूर और पंचायत चुनाव से ठीक पहले की इस घोषणा को राजनीतिक जानकार सामान्य नहीं बल्कि जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी की ओर इशारा कर रहे हैं।
वह संघ से निकले, संगठन से बढ़े और भाजपा की उस रणनीति का हिस्सा बने जिसमें पश्चिमी यूपी में दलित नेतृत्व को उभारकर सामाजिक संतुलन साधा गया। 2017 में उनकी जीत केवल एक सीट नहीं थी, वह भाजपा के प्रयोग की सफलता थी। जब 2022 में दिनेश खटीक ने मंत्री पद से इस्तीफे की चिट्ठी लिखी, तब उसे भावनात्मक प्रतिक्रिया मानकर टाल दिया गया।
जानकर कहते हैं हस्तिनापुर छोड़ने का ऐलान उसी अधूरे संवाद की अगली कड़ी है। यानी यह मंत्री बने रहने और कैबिनेट की प्रोन्नति का एक दबाव हो सकता है। मगर इससे बढ़कर हस्तिनापुर को देखें तो सपा वहां पर गुर्जर लाबी को मजबूत करने में पसीना बहा चुकी है। इस सीट पर गुर्जर, दलित और मुस्लिम मतदाता ही हार जीत तय करते हैं।
यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है इसलिए गुर्जर को साधने की कोशिश सबकी रहती है। जानकार मानते हैं कि 2022 के असंतोष के बाद से अब तक तालमेल न बैठा पाने और 2027 की संभावित स्थिति से पार्टी किसी नए चेहरे पर प्रयोग कर सकती है।
ऐसे में यह न तो खुला विद्रोह है न ही पार्टी त्याग बल्कि यह पूर्व निर्धारित मौन सहमति है और भविष्य की घोषणा भी है। हर तरफ सवाल कौंध रहे हैं कि वजह क्या है और हस्तिनापुर में अब कौन। इस पर जानकार इशारा करते हैं कि जिले में मजबूत दलित नेता के रूप स्थापित करते हुए जिला पंचायत में भेजा जा सकता है और हस्तिनापुर में किसी जाटव को उतारा जा सकता है।

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