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    1951 से चली आ रही है वेस्ट यूपी में HC बेंच की मांग, कई CM ने जताई थी सहमति; पिछले सात दशक में कब-कब क्या-क्या हुआ

    By Jagran News Edited By: Praveen Vashishtha
    Updated: Wed, 17 Dec 2025 04:43 PM (IST)

    पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच की मांग 1951 से चली आ रही है, जिस पर कई मुख्यमंत्रियों ने सहमति भी जताई थी। पिछले सात दशकों में इस मांग को लेक ...और पढ़ें

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    प्रतीकात्मक फोटो

    जागरण संवाददाता, मेरठ। सुलभ व सस्ते न्याय के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच की स्थापना जरूरी है। विभिन्न प्रांतों में हाईकोर्ट की दो-दो बेंच है। बड़ी संख्या में इलाहाबाद हाईकोर्ट में यहां के मुकदमे लंबित है। इतनी दूरी तय करने में लोगों को बहुत परेशानी होती है। अतिरिक्त समय और धन भी खर्च होता है। दशकों से आंदोलन के बाद भी मांग पूरी नहीं हुई है।

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    बुधवार को भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट बेंच की स्थापना की मांग को लेकर केंद्रीय संघर्ष समिति के आह्वान पर ऐतिहासिक बंद रहा। मेरठ में बंद को लगभग 1200 संगठनों का समर्थन मिला। पश्चिम के 22 जनपदों में से 20 में अधिवक्ताओं ने काम बंद करके पूर्ण रूप से बंद रखा, जबकि शामली और बिजनौर में केवल कार्य बहिष्कार किया।

    आइए वेस्ट यूपी में हाई कोर्ट बेंच की मांग को लेकर कब-कब क्या-क्या हुआ? इस पर संक्षेप में एक नजर डालें।

    इस मांग को सबसे पहले 1951 में प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे संर्पूणानंद ने उठाया था। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, रामनरेश यादव, बाबू बनारसी दास, मायावती ने भी इस पर सहमति जताई थी।
    संजय शर्मा, चेयरमैन, केंद्रीय संघर्ष समिति हाई कोर्ट बेंच  

    यह भी पढ़ें- PHOTOS: हाई कोर्ट बेंच की मांग को लेकर वेस्ट यूपी में बंद, मेरठ समेत इन 7 जिलों में कितना असर ? अलर्ट पर पुलिस

    कब-कब क्या हुआ

    • 1951 में पूर्व मुख्यमंत्री संर्पूणानंद ने इस मांग को उठाया।
    • 1981 में केंद्रीय संघर्ष समिति का गठन हुआ।
    • 1981 में केंद्रीय संघर्ष समिति ने मसूरी से दिल्ली तक पैदल मार्च किया।
    • 1983 में जसवंत सिंह आयोग बना, फिर आंदोलन हुआ।
    • 1987 में जेल भरो आंदोलन हुआ।
    • 2001 में छह माह तक वकीलों ने काम नहीं किया।
    • 2009 में फिर लंबे समय तक वकीलों ने काम बंद रखा।
    • 2015 में करीब तीन माह तक वकीलों ने काम नहीं किया।

    इसके बाद के वर्षों में भी लगातार आंदोलन जारी है, लेकिन यह वाजिब मांग पूरी नहीं हो सकी है।