मेरठ में किसान के बेटे ने भरी ऊंची उड़ान
पांचवीं तक गांव के सरकारी प्राथमिक स्कूल में पढ़ाई करने वाले निश्चल पर अब पूरे गांव को गर्व है।
मेरठ (विवेक राव)। मेरठ जिले के नेक गांव में रहने वाले लघु किसान पवन भारद्वाज की सालाना कमाई एक लाख का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाती। कुल तीन बीघा जमीन है। किसानी से घर का खर्चा भी मुश्किल से चलता है। अतिरिक्त आय के लिए पवन एक मेडिकल स्टोर पर नौकरी करते हैं। परिवार में पत्नी अभिलाषा के अलावा बेटा निश्चल, दो बेटियां श्रद्धा और सृष्टि हैं। श्रद्धा ने स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली है। सृष्टि स्नातक कर रही है।
निश्चल ने इसी साल 12वीं पास की। पिछले दिनों वह अमेरिका चला गया। जहां उसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कॉलेजों में शुमार वेलस्ले कॉलेज में दाखिला मिला है। चार साल की पढ़ाई पर करीब दो करोड़ रुपये का खर्च आएगा। जिसे वेलेस्ले कॉलेज स्वयं वहन करेगा।
दादा-पिता की सोच को सच साबित किया: पांचवीं तक गांव के सरकारी प्राथमिक स्कूल में पढ़ाई करने वाले निश्चल पर अब पूरे गांव को गर्व है। पवन कहते हैं, उनके गांव क्या आस-पास के दस गांवों से भी कोई अमेरिका नहीं गया था। पवन जब निश्चल को हवाई अड्डा तक छोड़ने को गए तो उन्होंने खुद पहली बार हवाई अड्डा देखा। पवन बताते हैं कि शिक्षा का महत्व उन्हें पता है। बच्चों ही नहीं, बच्चों की मां अभिलाषा ने भी इसी साल बेटे के साथ 12 वीं की परीक्षा पास की है।
शिक्षा की उड़ान: पिछले दिनों दैनिक जागरण में आपने अमरोहा की बिटिया मानवी चौधरी की कहानी पढ़ी थी। वह भी एक गरीब किसान की बिटियां हैं, जो अमेरिका के इसी वेलेस्ली कॉलेज में पहुंच चुकी हैं। दरअसल इनकी सफलता के पीछे शिव नाडर फाउंडेशन द्वारा उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर और सीतापुर में संचालित विद्या ज्ञान स्कूल का भी अहम योगदान है। इन दोनों बोर्डिंग स्कूलों में राज्य भर से उन मेधावी बच्चों को प्रवेश परीक्षा के माध्यम से चुना जाता है, जिनके परिवार की सालाना आय एक लाख रुपये से कम हो।
200 बच्चों का होता है चयन: प्रवेश परीक्षा के जरिये हर साल करीब 200 का चयन किया जाता है। जो कक्षा छह से 12वीं तक की पढ़ाई इस उच्च स्तरीय इंग्लिश मीडियम स्कूल में रह कर करते हैं।
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किसे दिया जाए श्रेय: चार साल बाद एक सुनहरा भविष्य निश्चल की प्रतीक्षा में होगा। तब पिता पवन के सामने मेडिकल स्टोर पर नौकरी करने की मजबूरी भी नहीं रहेगी। आने वाला समय एक युगांतकारी परिवर्तन का साक्षी बनेगा। जिसकी कल्पना भी शायद पीढ़ियों ने नहीं की होगी। इस परिवार को यह युगांतकारी उपलब्धि किसी करिश्मे के चलते या दान में नहीं मिली। इसका श्रेय निश्चल को नहीं, पवन को भी नहीं, बल्कि निश्चल के दादाजी को दिया जाना चाहिए।
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