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    CCSU की बड़ी उपलब्धि, DRDO का मेगा रिसर्च प्रोजेक्ट मिला, इससे रक्षा क्षेत्र में विदेशी तकनीक पर निर्भरता होगी कम 

    By Amit Tiwari Edited By: Praveen Vashishtha
    Updated: Tue, 30 Dec 2025 02:32 PM (IST)

    चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (CCSU) के भौतिकी विभाग को DRDO से 45 लाख रुपये से अधिक का महत्वपूर्ण शोध प्रोजेक्ट मिला है। प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा के ...और पढ़ें

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    यह है ब्लाइंड फोटोडिटेक्टर का डिजाइन। सौ. सीसीएसयू

    जागरण संवाददाता, मेरठ। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (CCSU) के भौतिकी विभाग ने राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। विभाग के प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की ओर से 45 लाख रुपये से अधिक का अत्यंत महत्वपूर्ण शोध प्रोजेक्ट दिया गया है। तीन वर्ष के प्रोजेक्ट का उद्देश्य रक्षा एवं वैज्ञानिक जरूरतों के अनुरूप अत्याधुनिक तकनीक विकसित करना है।

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    प्रोजेक्ट का विषय

    प्रोजेक्ट का विषय ‘डिजाइन एंड फेब्रिकेशन आफ गैलियम आक्साइड (GAO) और मोलिब्डेनम डाइसल्फाइड (MOS) हेटरोजंक्शन फार सेल्फ पावर्ड सोलर-ब्लाइंड फोटोडिटेक्टर्स’ है। इसका मुख्य लक्ष्य पराबैंगनी (UV) किरणों की पहचान के लिए एक ऐसा सेल्फ-पावर्ड सोलर-ब्लाइंड फोटोडिटेक्टर विकसित करना है, जो बिना किसी बाहरी ऊर्जा स्रोत के काम कर सके और अधिक सटीक, टिकाऊ व पर्यावरण अनुकूल भी हो।

    प्रोजेक्ट के मुख्य इन्वेस्टिगेटर प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा के अनुसार यूवी डिटेक्शन तकनीक का उपयोग रक्षा प्रणालियों, मिसाइल चेतावनी सिस्टम, अंतरिक्ष अनुसंधान, औद्योगिक सुरक्षा और संवेदनशील निगरानी तंत्र में किया जाता है। इस शोध से भारत को स्वदेशी और भरोसेमंद सेंसर तकनीक प्राप्त होगी, जिससे रक्षा क्षेत्र में विदेशी तकनीक पर निर्भरता कम होगी।

    इस परियोजना के अंतर्गत थिन फिल्म डिपोजिशन यानी ऊर्जा संरक्षण के लिए दो अत्याधुनिक उपकरण खरीदे जाएंगे। इनमें केमिकल वेपर डिपोजिशन (CVD) और वैक्यूम थर्मल इवेपोरेटर है। इन उपकरणों के जरिए सोलर-ब्लाइंड फोटोडिटेक्टर का निर्माण किया जाएगा। जिससे विभाग के शोध अवसंरचना क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

    ऐसे काम करती है यह तकनीक

    यह शोध एक विशेष प्रकार के अत्याधुनिक यूवी (पराबैंगनी) सेंसर के निर्माण से जुड़ा है। यह केवल हानिकारक या महत्वपूर्ण यूवी किरणों को पहचानता है। सूर्य के सामान्य प्रकाश से प्रभावित नहीं होता। बिना बैट्री या बाहरी बिजली के स्वयं काम करता है। सोलर ब्लाइंड का मतलब है कि यह डिवाइस 280 नैनोमीटर से कम तरंगदैर्ध्य वाली यूवी किरणों को पहचानती है।

    इस रेंज की किरणें पृथ्वी की सतह तक सामान्यतः सूर्य से नहीं पहुंचतीं, क्योंकि ओजोन परत इन्हें रोक लेती है। इसका फायदा यह है कि दिन के उजाले में भी बिना शोर के काम करता है। फर्जी सिग्नल नहीं देता, जो रक्षा और सुरक्षा सिस्टम के लिए बेहद जरूरी है।
    फोटोडिटेक्टर प्रकाश को इलेक्ट्रिक सिग्नल में बदल देता है। जैसे ही यूवी किरणें पड़ती हैं, करंट उत्पन्न होता है। उसी करंट से खतरे या घटना का पता चलता है। सेल्फ पावर्ड यानी बिना बैट्री के काम करना इसकी सबसे बड़ी खासियत है।
    यह आने वाली यूवी किरणों की ऊर्जा से खुद बिजली बनाता है। यह दूरदराज या युद्ध क्षेत्र में बेहद उपयोगी होगा, न्यूनतम रखरखाव, लंबी अवधि तक कार्य और पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल होगा।

    सीसीएसयू, शोधार्थी व विद्यार्थियों को मिलेगा लाभ

    सीसीएसयू के इतिहास में यह पहली बार है जब किसी डिफेंस एजेंसी ने विश्वविद्यालय को इतनी बड़ी शोध जिम्मेदारी सौंपी है। प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने बताया कि प्रोजेक्ट की स्वीकृति से पहले तीन बार प्रेजेंटेशन दिया गया और डीआरडीओ की वास्तविक जरूरतों के अनुरूप कई संशोधन किए गए, ताकि शोध सीधे तौर पर व्यावहारिक समस्याओं का समाधान कर सके।

    इस प्रोजेक्ट से बीएससी, एमएससी और पीएचडी शोधार्थियों को एडवांस्ड इलेक्ट्रानिक सिस्टम डेवलपमेंट में व्यावहारिक प्रशिक्षण मिलेगा। इससे छात्रों को डिफेंस-ओरिएंटेड रिसर्च का अनुभव प्राप्त होगा और उन्हें भविष्य में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर अवसर मिल सकेंगे। इसके अंतर्गत एक जूनियर रिसर्च फेलो (जेआरएफ) की तीन साल के लिए नियुक्ति होगी। जेआरएफ को पहले और दूसरे वर्ष में 37,000 रुपये प्रतिमाह (एचआरए अतिरिक्त) और तीसरे वर्ष में 42,000 रुपये प्रतिमाह (एचआरए अतिरिक्त) मानदेय मिलेगा।