हाईवे पर उस रात पार हुई थी हैवानियत की हद, मां-बेटी से सामूहिक दुष्कर्म, पुरुषों को बंधक बनाकर लूट...
29 जुलाई 2016 की रात बुलंदशहर में हाईवे पर मां-बेटी के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म मामले में नौ साल बाद पॉक्सो कोर्ट ने पांच आरोपितों को दोषी ठहराया। उस ...और पढ़ें

दोस्तपुर गांव के पास इसी जगह हुई थी दरिंदगी। जागरण आकाईव
सुशील कुमार मिश्र, जागरण, मेरठ। 29 जुलाई 2016 की रात के अंधेरे में बुलंदशहर में हाईवे की सुनसान सड़क। वहां पड़ी लोहे की राडें। कार की गति जैसे ही धीमे हुई आठ-दस हथियारबंद बदमाश सामने आ खड़े हुए। आतंकित कर परिवार को कार से बाहर उतारा और फिर शुरू होता है वीभत्स कांड।
मां-बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म, परिवार के पुरुषों को बंधक बनाकर लूटपाट, यह सिर्फ एक अपराध नहीं था, बल्कि प्रदेश में सत्ताधीन सपा सरकार की कानून-व्यवस्था का एक आईना था, जिसे पूरे देश ने देखा। नौ साल, चार महीने और 21 दिन बाद पाक्सो कोर्ट ने पांच आरोपितों को दोषी तो ठहरा दिया, लेकिन सवाल अभी भी कायम है कि क्या इन्साफ पूरा हो चुका है?
गाजियाबाद-अलीगढ़ हाईवे पर दोस्तपुर गांव के पास खेत में ले जाकर परिवार के पुरुषों को रस्सियों से बांधा जाता है, महिलाओं को खेतों में घसीटा जाता है। मां और नाबालिग बेटी के साथ बदमाश बारी-बारी से दुष्कर्म करते हैं। इसके बाद उनकी नकदी और गहने सब लूट ले जाते हैं। परिवार पुलिस थाने पहुंचता है, लेकिन शुरुआती प्रतिक्रिया बेहद सुस्त।
यही वो पल था जब दिखा कि तत्कालीन सरकार में कानून व्यवस्था किस तरह से काम काम कर रही थी। अगले दिन जब दैनिक जागरण में यह खबर पूरे प्रदेश में प्रमुखता से छपी तो अखिलेश यादव सरकार की नींद टूटी। मुख्यमंत्री ने 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया। डीजीपी जावीद अहमद और मुख्य सचिव गृह देवाशीष पांडा बुलंदशहर पहुंच गए। शाम होते-होते एसएसपी वैभव कृष्ण, एसी सिटी राम मोहन, सीओ हिमांशु गौरव समेत दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया। डीजीपी ने माना कि मां-बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना हुई।
जांच में जुटे थे 15 टीमों में 350 अधिकारी और पुलिसकर्मी
लखनऊ से लेकर मेरठ तक अधिकारियों की भारी-भरकम टीम बनाई गई। 15 टीमों में 350 अधिकारी और पुलिसकर्मी जांच में जुटे। इसके बावजूद हाई कोर्ट से लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग तक से पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठते रहे। इसके बाद मामला सीबीआइ के हवाले करना पड़ा। सीबीआई ने 11 में से आठ आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट पेश की। दो एनकाउंटर में मार दिए गए, तीन को क्लीन चिट मिल गई।
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बाकी पांच पर ट्रायल शुरू हुआ। 25 गवाह पेश हुए। पीड़ित मां-बेटी की प्रत्यक्ष गवाही, मेडिकल रिपोर्ट्स, फोरेंसिक साक्ष्य, सब कोर्ट में मजबूत साबित हुए। विशेष पॉक्सो कोर्ट ने इसी के आधार पर आरोपितों को दोषी माना। अदालत के फैसले के बाद पीड़ित परिवार ने विशेष लोक अभियोजक से बातचीत में अपना दर्द बांटते हुए कहा कि दोषियों को फांसी की सजा तो मिलनी ही चाहिए।
मच गया था सियासी भूचाल
घटना के सामने आने के बाद सियासी भूचाल मच गया था। बसपा प्रमुख मायावती से लेकर कांग्रेस और भाजपा तक ने प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा किया था। सोशल मीडिया पर भी घटना कई दिनों तक ट्रेंड करती रही। यह घटना प्रदेश में जंगलराज का प्रतीक बन गई थी। राष्ट्रीय पटल पर प्रदेश की कानून व्यवथा बेनकाब हुई थी। सवाल उठ रहे थे अगर हाईवे पर इस तरह का भयावह घटना हो सकती है तो दूरस्त क्षेत्रों का क्या हाल होगा। दिल्ली से लेकर लखनऊ तक राजनीतिक धरना-प्रदर्शन और रैलियों में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित राज्य का नारा बुलंद हो रहा था।
शुरू हुआ था डैमेज कंट्रोल
अखिलेश सरकार ने तत्काल डैमेज कंट्रोल शुरू किया। पीड़ित मां-बेटी को 10-10 लाख के मुआवजे की घोषणा हुई। गाजियाबाद के अर्थला में दो फ्लैट भी दिए गए। परिवार को सुरक्षा भी दी गई लेकिन परिवार चीखता रहा कि हमें इससे अधिक न्याय की जरूरत है। सवाल उठाते रहे कि क्या हमारी जिंदगियां पहले की तरह कभी सामान्य हो पाएगी।
अब घटनास्थल पर निकट रहती है चहल-पहल
घटनास्थल के निकट मैरिज होम व मार्केट खुल चुकी है। इससे अब यहां पर चहल-पहल रहती है। पुलिस का डायल 112 वाहन भी रात में खड़े रहने के साथ पुलिस की गश्त भी रहती है। सुरक्षा का माहौल है। हालांकि आसपास रहने वाले लोग आज भी घटना को याद करते हैं तो सहम जाते हैं।

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