वो धोखे से खा रहे टीबी की दवा
मेरठ : टीबी यानि तपेदिक के साथ समान लक्षणों वाली एक अन्य बीमारी जानलेवा साबित हो रही है। सारकोइडोसिस रोग में भ्रमवश मरीजों को टीबी की दवा दी जा रही है, जिससे तमाम मरीज असाध्य हो चुके हैं। मेडिकल साइंस सटीक कारणों का पता नहीं लगा सका है, लेकिन मेरठ में वायु प्रदूषण, कैंची उद्योग व खराद के काम में निकलने वाले सूक्ष्म कण कहर ढा रहे हैं।
फेफड़ों में गांठ पर भ्रम
सारकोइडोसिस बीमारी में सभी अंगों पर प्रभाव पड़ता है। जांच कराने पर फेफड़े में गांठ और धब्बा भी नजर आ सकता है। बुखार, खांसी, सांस फूलना, जोड़ों में दर्द व थकान से तपेदिक संक्रमण का शक गहरा जाता है। ऐसे में मरीजों को टीबी की दवा शुरू कर दी जाती है, जबकि उनमें सारकोइडोसिस का खतरा गहराता जाता है।
कई बार मरीज की आंखों में लालिमा, चेहरे पर निशान व सूजन उभर आती है। सटीक व समय पर उपचार नहीं मिलने पर मरीज के फेफड़ों की कार्यक्षमता महज दस फीसद तक सिमट जाती है। शरीर में आक्सीजन की कमी से मरीज का उठना-बैठना भी दूभर हो जाता है।
वेस्ट में बढ़ा खतरा
मेरठ समेत वेस्ट यूपी में प्रदूषित रसायनों वाले धूलकण, कैंची उद्योग, पत्थरों की कटाई, आटो पार्ट्स कारोबार व फाउंड्री उद्योग से निकलने वाले सूक्ष्म कण फेफड़ों में जमा होकर सिलकोसिस बना सकते हैं, इससे सारकोइडोसिस का खतरा हो सकता है।
नई दिल्ली में गत माह आयोजित ब्रांकोकॉन में सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ डा. वीरोत्तम तोमर ने इस बीमारी पर प्रकाश डालते हुए करीब 70 मरीजों पर स्टडी रिपोर्ट पेश की।
ऐसे होगी सटीक जांच
टीबी के लक्षण उभरने के साथ फेफड़ों की जांच की जाती है। इसमें गांठ या दाग नजर आने पर सीटी स्कैन कराया जाता है। दूरबीन ब्रंकोस्कोपी तकनीक से फेफड़े की गांठ से पानी व टुकड़ा निकालकर कैंसर की भी जांच की जाती है। अगर कैंसर या टीबी की पुष्टि नहीं हुई, तो सारकोइडोसिस बीमारी मान ली जाती है।
इनका कहना है ..
टीबी से पूरी तरह मिलने वाले लक्षणों की वजह से कई मरीजों को सही उपचार नहीं मिल पाता है, जिससे फेफड़े की क्षमता पूरी तरह जवाब दे जाती है। ऐसे 75 मरीजों की केस स्टडी की, जो भ्रमवश टीबी की दवा खा रहे थे।
- डा. वीरोत्तम तोमर, सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ।
सारकोइडोसिस खतरनाक बीमारी है, जिसको लेकर मरीजों के साथ चिकित्सकों में भी जागरूकता की जरूरत है। इस रोग पीड़ित रोगी को बलगम नहीं आता और फेफड़े में अपेक्षाकृत बड़ी गांठें मिलती हैं।
- डा. अमित अग्रवाल, सांस एवं छाती रोग विशेषज्ञ।
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