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    Mathura Lok Sabha Seat: कान्हा की नगरी में दिलचस्प हुआ सियासी रण, जाटलैंड में होगी जयंत की अग्निपरीक्षा

    Updated: Fri, 05 Apr 2024 05:28 PM (IST)

    मथुरा लोकसभा सीट का राजनीतिक घमासान दिलचस्प हो चला है। जयन्त चौधरी के सामने RLD के जाट BJP के पाले में लामबंद करने की चुनौती है। बदले माहौल और समीकरण में अब लामबंदी इतनी आसान भी नहीं है। मथुरा में RLD की पकड़ मजबूत मानी जाती है। पहले चौधरी चरण सिंह अक्सर मथुरा में आते थे। उनकी पत्नी गोकुल से विधायक रहीं। हालांकि लोकसभा चुनाव में वह हार गईं थीं।

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    Mathura Lok Sabha Seat: जाट लैंड में रालोद मुखिया जयन्त की परीक्षा

    विनीत मिश्र, मथुरा। कान्हा की नगरी में राजनीति का रण इस बार दिलचस्प होगा। भाजपा के सामने इतिहास दोहराने की चुनौती है, तो बसपा और कांग्रेस के लड़ाके भी अपने दावों के साथ राजनीति के मैदान में हैं। राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा तो दांव पर है ही, रालोद मुखिया जयन्त चौधरी की परीक्षा भी इस चुनाव में होगी।

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    पहले भाजपा के साथ गठबंधन से सांसद बने जयन्त की रालोद इस बार फिर भाजपा के साथ है। ऐसे में जयन्त के सामने रालोद के जाट भाजपा के पाले में लामबंद करने की चुनौती है। बदले माहौल और समीकरण में अब लामबंदी इतनी आसान भी नहीं है।

    मथुरा में राष्ट्रीय लोकदल की भी मजबूत पकड़ है। पहले चौधरी चरण सिंह अक्सर मथुरा में आते थे। उनकी पत्नी गायत्री देवी गोकुल से विधायक रहीं। हालांकि गायत्री देवी ने जब लोकसभा चुनाव लड़ा तो पराजित हुईं। वर्ष 2004 में चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती ने भी रालोद से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

    जाट बाहुल्य सीट पर वर्ष 2009 में जयन्त चौधरी खुद मैदान में उतरे। इस चुनाव में उन्हें भाजपा का समर्थन मिला था। तब जयन्त चौधरी ने बसपा के कद्दावर नेता और कई बार के विधायक श्याम सुंदर शर्मा को करीब 1.69 लाख मतों से पराजित किया।

    वर्ष 2014 में भाजपा और रालोद ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा ने हेमा मालिनी को मैदान में उतारा और रालोद से जयन्त चौधरी। हेमा के ग्लैमर के आगे जयन्त चौधरी चुनाव हार गए। वह भी 3.30 लाख मतों के भारी अंतर से।

    इस बार रालोद और भाजपा गठबंधन से हैं। एक तरह से 2009 की तरह, अंतर बस इतना है कि इस बार रालोद नहीं भाजपा की प्रत्याशी मैदान में हैं। तब जयन्त और हेमा जाट समाज से थीं। इस बार बसपा ने जाट समाज के पूर्व आइआरएस अधिकारी सुरेश सिंह को मैदान में हैं।

    चार बार विधायक रह चुके पूर्व मंत्री सरदार सिंह कहते हैं कि पहले और अब के समय में अंतर आ गया है। जाट मतदाता सबसे अधिक हैं। लेकिन उनके अलग-अलग क्षेत्र हैं। बसपा प्रत्याशी खूंटेलपट्टी के हैं और ये सरदारी 350 गांवों की है। इसलिए लड़ाई यहां भी खूब होगी।

    अब जाट अलग-अलग दलों से जुड़े हैं। हेमा मालिनी खुद जाट हैं। किसी एक में लामबंदी आसान नहीं। सौंख क्षेत्र के खारी गांव में रहने वाले इंटर कालेज संचालक सतीश मास्टर कहते हैं कि जाट मतों का बिखराव इस बार जरूर होगा। बसपा ने जाट प्रत्याशी उतारा है, इसका उसे फायदा मिलेगा।

    रावत पाल सरदारी के मुखिया पदम सिंह रावत इसे बहुत तरीके से समझाते हैं। वह कहते हैं कि जयन्त चौधरी के मुकाबले हेमा जब मैदान में थीं, तो जीतीं। जाहिर है, जाट उनके साथ था। इस बार बसपा प्रत्याशी भी मैदान में हैं। इसलिए जाट खूब समझकर ही अब मतदान करेगा। किसी भी दल के लिए जातिगत वोटों की लामबंदी बड़ी चुनौती है।

    कोटवन के पूर्व प्रधान जबर सिंह कहते हैं कि कांग्रेस में विजेंदर सिंह के नाम की चर्चा थी, वह लड़ते तो लड़ाई और रोचक होती। अब बंटवारा बहुत हो, इस पर संशय है।

    ये है जातिगत गणित (अनुमानित मतदाता)

    जाट 4.50 लाख
    ब्राह्मण 3.75 लाख
    ठाकुर 3.25 लाख
    जाटव 2.00 लाख
    धनगर 1.00 लाख
    मुस्लिम 1.00 लाख
    यादव 20 हजार
    लोधी 15 हजार
    अन्य पिछड़ा वर्ग 2.50 लाख
    अनुसूचित जाति 1.50 लाख

    किसे कितने वोट मिले

    वर्ष 2009

    जयन्त चौधरी रालोद 3.79 लाख
    मानवेंद्र सिंह कांग्रेस 85418
    श्याम सुंदर शर्मा बसपा 210221

    वर्ष 2014

    जयन्त चौधरी रालोद 243890
    हेमा मालिनी भाजपा 574633
    योगेश द्विवेदी बसपा 173572

    वर्ष 2019

    हेमा मालिनी भाजपा 671293
    कुंवर नरेंद्र सिंह रालोद 377822
    महेश पाठक कांग्रेस 28084