Mathura News: श्रीकृष्ण के परम भक्त रसखान की समाधि देखने पहुंच रहे सैलानी, दिलचस्प है महाकवि से जुड़ा इतिहास
Mathura News रसखान समाधि पर पहुंच रहे प्रतिदिन 500-600 पर्यटक प्रवेश द्वार का किया जाएगा निर्माण लगाए जाएंगे झूले। रसखान की समाधि के आसपास सुगंधित फूलों को भी लगाया गया है। महाकवि रसखान का समाधि स्थल रमणरेती आश्रम के सामने है जहां हिदू धर्म के लोग भी पहुंचते हैं।

मथुरा, जागरण टीम। मथुरा जनपद के महावन में रसखान समाधि के सुंदरीकरण के बाद पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी है। पहले यहां प्रतिदिन बीस से तीस पर्यटक ही पहुंचते थे, अब इनकी संख्या प्रतिदिन पांच सौ से अधिक हो गई है। पर्यटकों की संख्या बढ़ने पर अब उप्र. ब्रज तीर्थ विकास परिषद बच्चों के लिए झूले भी लगाएगा। प्रवेश द्वार का निर्माण कराएगा। साथ ही अन्य मनोरंजन के साधन भी होंगे।
गोकुल महावन के बीच है रसखान की समाधि
गोकुल-महावन के मध्य भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त रसखान की समाधि है। सरकार द्वारा महत्वपूर्ण स्थलों का विकास कराया जा रहा है। परिषद द्वारा रसखान समाधि का सुंदरीकरण कराया गया है। समाधि पर कभी झाड़ियां थीं। विश्राम गृह, शौचालय, पेयजल आदि की सुविधाएं विकसित की हैं। लाइटिंग की गई है। प्राकृतिक वातावरण आनंदित करता है। रसखान समाधि स्थल पर लोग भक्ति भाव में खो जाते हैं। सुंदरीकरण के बाद रसखान समाधि स्थल पर पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी है।
कभी चंद पर्यटक ही आते थे यहां
कभी यहां दिन में 20-30 पर्यटक ही पहुंचते थे, अब प्रतिदिन यह संख्या 500-600 तक हो गई है। ब्रज में हाेने वाले विशेष आयोजनों के दौरान यह संख्या दो-ढाई हजार तक पहुंच जाती है। आटो, कार वाले भी यात्रियों को यहां लेकर पहुंच रहे हैं। पर्यटकों की संख्या में हो रही वृद्धि को लेकर ब्रज तीर्थ विकास परिषद भी सुविधा और बढ़ाने की तैयारी कर रही है।
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रसखान समाधि पर प्रवेश द्वार का निर्माण कराया जाएगा। यहां झूले भी लगवाए जाएंगे। इसके अलावा भी बेहतर सुविधा विकसित की जाएंगी, ताकि यह स्थल पर्यटन के नक्शे पर चमक सके। परिषद के डिप्टी सीईओ पंकज वर्मा ने बताया कि रसखान समाधि पर झूले, और प्रवेश द्वार का निर्माण कराया जाएगा। रसखान समाधि पर पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
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महाकवि रसखान का इतिहास
रसखान का जन्म दिल्ली में वर्ष 1533 में एक शाही पठान परिवार में हुआ था। मुगल शासक हुमायूं के अंतिम दिनों में दिल्ली की भीषण कलह की वजह से परेशान रसखान बृज क्षेत्र पहुंचे, जहां वे भक्तों के बीच रहे। रसखान गोस्वामी विट्ठलनाथजी के कृपा पात्र सेवक हुए। रसखान ने वर्ष 1570 में गोकुल में विट्ठलनाथ जी से वैष्णो धर्म की दीक्षा ग्रहण की, जहां उन्होंने तीन वर्ष तक भगवान श्री कृष्ण की कथा सुनी।
रसखान की रचनाओं में सरसता और प्रेमोत्कर्ष का मूर्त रूप हैं। वर्ष 1614 में प्रेम वाटिका ग्रंथ की रचना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने स्फुट सवैया कविता पद आदि भी लिखे। अब तक की खोज में महाकवि रसखान द्वारा 66 दोहे 4 सौरठा 225 सवैया 20 कविता और पांच पद सहित कुल 310 छंद प्राप्त हुए। भक्त रसखान का स्वर्गवास 85 वर्ष की आयु में हुआ। इनका समाधि स्थल गोकुल और महावन के मध्य रमणरेती आश्रम के सामने है।
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