Ranganath Mandir Vrindavan: दिव्य रथ में सवार होकर भगवान रंगनाथ ने दिए दर्शन, मेला के दीवाने थे अंग्रेज अफसर
Ranganath Mandir Vrindavan वृंदावन के रंगजी मंदिर में चल रहे ब्रह्मोत्सव में भगवान रंगनाथ ने दिव्य रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण किया। वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच भक्तों ने जयकारे लगाए। करीब पचास फीट ऊंचे रथ को खींचने के लिए सैकड़ों भक्तों ने जोर लगाया। रंगनाथ भगवान के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। इस दौरान पेठे की बलि दी।

संवाद सहयोगी, जागरण, वृंदावन। रंगजी मंदिर में चल रहे ब्रह्मोत्सव में रविवार को भगवान गोदारंगमन्नार विशालकाय रथ में विराजमान होकर नगर भ्रमण को निकले। वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य आराध्य रथ में विराजमान हुए तो भक्तों के जयकारों से वातावरण गुंजायमान हो उठा। करीब पचास फीट ऊंचे इस रथ को खींचने के लिए सैकड़ों भक्तों ने जोर लगाया। रथ खींचने की भक्तों में होड़ लगी रही।
दक्षिण भारतीय परंपरा के रंगजी मंदिर में मंगलवार सुबह वैदिक परंपरा के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में भगवान रंगनाथ, श्रीदेवी, भूदेवी के साथ निज गर्भगृह से पालकी में विराजमान होकर ज्योतिष गणनानुसार मीन लग्न में दिव्याकर्षक रथ में विराजित हुए।
रंगनाथ भगवान के जय जयकार से वातावरण गूंज उठा। इसके बाद वैदिक रीतिरिवाज से मंदिर पुरोहित विजय किशोर मिश्र ने वेद मंत्रों का उच्चारण कर देव आह्वान, नवग्रह स्थापन, गणपति आह्वान आदि देवो का पूजन वंदन कर दसों दिशाओं को सुरक्षित कराया और पेठे की बलि दी।
स्वामी गोवर्धन रंगाचार्य को रक्षा सूत्र बांधा
इस दौरान रंग मंदिर के पुरोहित विजय मिश्र ने स्वामी गोवर्धन रंगाचार्य को रक्षा सूत्र बांधा। करीब एक घंटे की पूजा प्रक्रिया के बाद जैसे ही सात कूपे का धमाका व काली के स्वर ने रथ के चलने का संकेत किया। भक्तों का उत्साह दोगुना हो गया। रंगनाथ भगवान के जयकारे लगा विशालकाय रथ को खीचने की होड़ सी लग गई।
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रंगजी के रथ मेला के दीवाने थे अंग्रेज अफसर
दक्षिण भारतीय परंपरा के रंगजी मंदिर में आयोजित होने वाले ब्रह्मोत्सव का मुख्य आकर्षण रथ का मेला है। अंग्रेजी शासन में यह उत्तर भारत का बड़ा मेला था। भरतपुर महाराज का सैनिक दस्ता बैंड के साथ इस मेला का हिस्सा होता था। अंग्रेज अफसर भी इस मेले के दीवाने हो गए। अंग्रेजों के शासन के समय जिला मजिट्रेट रहे एफएम ग्राउस ने अपनी पुस्तक में रथ मेला का विशेष रूप से उल्लेख किया है रंगजी मंदिर का रथ का मेला (ब्रह्मोत्सव) मंदिर निर्माण के समय से ही लोकप्रिय रहा है। मेले की रौनक जितनी प्राचीनकाल में थी, आज भी इसी प्रकार की है। इसे उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला आज भी माना जाता है।
यूरापियन-श्रद्धालु पर्यटक भी आते थे
रथ के मेले ने स्थानीय लोगों के साथ आसपास के जिलों के लोगों को ही नहीं बल्कि यूरोपियन श्रद्धालु-पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किया है। विक्रम संवत् 1981, सन् 1924 में अशोथर जिला फुलेपुर रियासत के राजा अपने बिल्लेदार सहित ब्रह्मोत्सव देखने आते थे। 20वीं शताब्दी में बुंदेलखंड के प्रतापी राजा छत्रसाल बुंदेला की परिवर्ती पीढ़ी में रानी कुंवरि ने भी इसका उल्लेख वृंदावन यात्रा के दौरान किए गए विवरण में किया है।
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