जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने की थी रामानंद संप्रदाय की स्थापना
सनातन धर्म पर जब भी कोई संकट आया तो संतों ने आगे बढ़कर समाज की सुरक्षा और एकजुटता की दिशा में कार्य किया।

फोटो नं. -57--
संवाद सहयोगी, वृंदावन: सनातन धर्म पर जब भी कोई संकट आया तो संतों ने आगे बढ़कर समाज की सुरक्षा और एकजुटता की दिशा में कार्य किया। सनातन संस्कृति और धर्म की स्थापना और संगठन को ध्यान में रखते हुए ही वैष्णव संप्रदाय की स्थापना जगद्गुरु रामानंदाचार्य के चतुर्थ श्रेणी के आचार्य बालानंदाचार्य ने 16वीं सदी में अखाड़ों की संरचना की। ताकि हिदू धर्म संरक्षित तथा सुरक्षित हो सके। इसके लिए वैष्णव अखाड़ों की तीन शाखाएं बनाई गईं। इनमें निर्मोही अनी, दिगंबर अनी तथा निर्वाणी अनी तय की गईं। इसके अलावा वैष्णव संप्रदाय के चार संप्रदाय गठित हुए। जिनमें निबार्क संप्रदाय, रामानंद संप्रदाय, माध्वगौड़ेश्वर गौड़ीय संप्रदाय तथा विष्णुस्वामी संप्रदाय। वृंदावन में आयोजित होने वाले कुंभ का आयोजन वैष्णव संप्रदाय द्वारा किया जा सकता है।
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रविवार को निबार्क संप्रदाय के बारे में कुछ जानकारी दी। आज बात करते हैं रामानंद संप्रदाय की-
चतु:संप्रदाय व अनी अखाड़ों के तीर्थ पुरोहित शरद बिहारी गौड़ सरदार बताते हैं वैष्णव संप्रदाय की चतु:संप्रदाय में रामानंद संप्रदाय भी प्रमुख है। रामानंद संप्रदाय का प्रधान केंद्र काशी को माना गया है। रामानंद संप्रदाय की स्थापना 13वीं शताब्दी में श्रीरामानंदाचार्य महाराज ने देशभर में अपने शिष्यों द्वारा भक्ति का प्रचार-प्रसार तथा संप्रदाय को सुंदर रूप देने के लिए किया था। रामानंदाचार्य संप्रदाय में गुरु परंपरा में नाम आनंदपरक रहे हैं। जैसे श्रीरामानंदाचार्य महाराज के गुरु राघवानंद और उनके गुरु हर्यानंद, श्रियानंद, अनंतानंद जैसे महापुरुषों का वर्णन है। पहले आनंदपरक नाम चलता था बाद में दीनता युक्त भक्तों ने अपने नाम को दास पदवी से विभूषित किया। जैसे तुलसीदास, अग्रदास जैसे महापुरुष भी हुए। -रामानंद संप्रदाय के तहत भी होते हैं 36 द्वारे-
1- अग्रावत-श्री अग्रदेवाचार्य।
2-अनंतानंदी-श्रीअनंताचार्य।
3-अनुभवानंदी-श्री अनुभवानंदाचार्य।
4-अलखानंदी-श्री अलख रामाचार्य।
5-कर्मचंदी-श्री कर्मचंद्राचार्य।
6-कालूजी-श्री कालू रामाचार्य।
7-कीलावत-श्री कील देवाचार्य।
8-कुबावत-श्री केवल रामाचार्य।
9-खोजीजी-श्री राघवेंद्राचार्य।
10-छठीनारायणी-श्री हठीनारायणाचार्य।
11-जंगीजी-श्री अर्जुन देवाचार्य।
12-टीलावत-श्री साकेत निवासाचार्य।
13-तनतुलसी-श्री तनतुलसीदासाचार्य।
14-दिवाकर-श्री दिवाकाराचार्य।
15-देवमुरारी-श्रीमुरारी देवाचार्य।
16-धूंध्यानंदी-श्री दामोदराचार्य।
17-नरहयनिदी-श्री नरहयर्यानंदाचार्य।
18-लाहारामी-श्री लाहा रामाचार्य।
19-पीपावत-श्री पीपाचार्य।
20-पूर्ण बैराठी-श्री परमानंदाचार्य।
21-नाभाजी-श्री नारायणाचार्य।
22-भगवन्ननारायणी-श्री भगवानाचार्य।
23-भंडगी-श्री भृंगी देवाचार्य।
24-भावानंदी-श्री भावानंदाचार्य।
25-मलूकिया-श्री मलूकदासाचार्य।
26-योगानंदी-श्री योगानंदाचार्य।
27-रामकबीर-श्रीराम कबीराचार्य।
28-राघव चेतनी-श्री राघवचेतनाचार्य।
29-रामथंभणा-श्रीरामस्तंभनाचार्य।
30-रामरमाणी-श्री रामरमायणी देवाचार्य।
31-रामरावली-श्री विजय रामाचार्य।
32-रामरंगी-श्री रामरंगी देवाचार्य।
33-लालतुरंगी-श्री लाल तुरंगी देवाचार्य।
34-सुखानंदी-श्री सुखानंदाचार्य।
35-सुरसुरानंदी-श्री सुरसुरानंदाचार्य।
36-हनुमानी-श्री हनुमदाचार्य।
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