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    Hariyali Teej 2025: ठाकुर बांकेबिहारी स्वर्ण-रजत हिंडोला में देंगे विशेष दर्शन, विश्व में इकलौता है भव्य झूला

    Updated: Wed, 23 Jul 2025 07:25 AM (IST)

    Hariyali Teej 2025 हरियाली तीज 27 जुलाई को ठाकुर बांकेबिहारी जी स्वर्ण-रजत से बने हिंडोले में दर्शन देंगे। इस विशेष अवसर पर लाखों भक्त उनकी एक झलक पाने के लिए उत्सुक हैं। यह झूलनोत्सव की परम्परा स्वामी हरिदास ने शुरू की थी। हिंडोला 1942 में बनना शुरू हुआ और 1947 में पूरा हुआ जिसमे एक लाख तोला चांदी और दो हजार तोला सोना लगा है।

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    Hariyali Teej 2025: हरियाली तीज के दिन स्वर्ण-रजत हिंडोले में झूलेंगे बांकेबिहारी।

    संवाद सहयोगी, जागरण, वृंदावन। Hariyali Teejअद्भुत, अद्वितीय, कलात्मक स्वर्ण-रजत जड़ित हिंडोले में विराजमान ठाकुर बांकेबिहारी को भक्त आस्था की डोर से झोटे देंगे। हरियाली तीज पर देश-दुनिया के लाखों भक्त आराध्य बांकेबिहारी की एक झलक पाने को उतावले दिखाई देंगे। साल में एक बार होने वाले इस आयोजन का गवाह बनने के लिए श्रद्धालु इंतजार कर रहे हैं।

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    श्रावण मास शुक्लपक्ष की तृतीया (हरियाली तीज) 27 जुलाई को है। इस दिन आराध्य ठाकुर बांकेबिहारी जी का स्वर्ण-रजत निर्मित हिंडोले की चमक श्रद्धालुओं को आकर्षित करेगी। विश्व प्रसिद्ध ठाकुर बांकेबिहारी जी मंदिर में झूलनोत्सव की परंपरा संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास ने शुरू की थी।

    27 जुलाई को हिरयाली तीज पर हिंडोला में दर्शन देंगे ठाकुर बांकेबिहारी

    उस दौर में स्वामीजी लता-पताओं के बने हिंडोले में लाडले बांके बिहारीजी को प्रेम की डोर से झूला झुलाते थे। समय बदला और आराध्य के भक्तों की आस्था जागी तो उन्हें स्वर्ण-रजत तैयार करवाने का संकल्प लिया। इसी के साथ ठाकुरजी के लिए दिव्य और भव्य हिंडोला बनवाने के लिए बनारस के कारीगर लल्लन व बाबूलाल को लगाया गया। जिन्होंने पांच साल की कड़ी मेहनत के बाद ठाकुरजी के अद्भुत हिंडोला को तैयार कर मंदिर को समर्पित कर दिया।

    पांच साल में बना था हिडोला

    कोलकाता के उद्यमी बेरीवाला परिवार ने स्वर्ण-रजत निर्मित भव्य हिंडोले का निर्माण वर्ष 1942 में शुरू कराया। वाराणसी के कारीगर लल्लन व बाबूलाल ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर पांच वर्षों के अथक परिश्रम से 1947 में इसे पूरा किया। झूले निर्माण को वाराणसी के कनकपुर के जंगल से शीशम की लकड़ी मंगाई गई।

    दो वर्ष तक लकड़ियों के सूखने के बाद वाराणसी के ही कारीगर छोटेलाल ने अपनी अद्भुत कारीगरी से इस झूले का ढांचा तैयार किया। इस परिवार के कुछ सदस्य वृंदावन में मंदिर के पास रहते हैं। राजभोग की सेवा इन्हीं की ओर से होती है।

    विश्व में इकलौता है भव्य झूला, करोड़ों में कीमत

    शीशम की लकड़ी के बने इस झूले में एक लाख तोले चांदी व दो हजार तोले सोने लगा है। झूले में सोने की आठ परतें चढ़ाई गई है। विशाल झूले के समान कोई अन्य झूला संपूर्ण विश्व में कहीं नहीं है। इसकी कारीगरी नक्काशीदार पच्चीकारी अद्भुत है।

    स्वर्ण हिंडोले के 130 भाग हैं। इनको अलग-अलग करके जोड़ा जाता है। झूले के सभी भागों के रखरखाव के लिए उनमें स्टैंड बने हैं। इन भागों को रुई से भरे कपड़े में संभाल कर रखा जाता है। इस झूले में आकर्षक फूल-पत्तियों के बेल-बूटे, हाथी, मोर आदि बने हुए हैं। वर्तमान में हिंडोले की कीमत करोड़ों रुपये आंकी जा रही है।

    11 वर्ष पहले कराई गई थी सफाई

    वर्ष में सिर्फ एक दिन ही हरियाली तीज पर झूले में ठाकुरजी दर्शन देते हैं। समय के साथ-साथ अलौकिक हिंडोले की चमक भी फीकी पड़ी तो मंदिर सेवायत गोस्वामी समाज एवं श्रद्धालु बेरीवाला परिवार ने 11 वर्ष पूर्व दिल्ली के विशेषज्ञों के एक दल से हिंडोले की विभिन्न रासायनिक पदार्थों से सफाई करवाई।

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