ठाकुरजी की पोशाक देने लगी हुनरमंदों का रोजगार
कोरोना काल में बंद हुई मशीनें पकड़ रही रफ्तार

जागरण संवाददाता, मथुरा: कोरोना काल में धड़ाम हुआ ठाकुरजी की पोशाक का कारोबार अब फिर से उठने लगा है। कारोबारियों को आर्डर मिलने लगे हैं। दूसरे धंधों की तरफ रुख कर चुके कारीगर अपने पुराने धंधे में लौटने लगे हैं। महीनों तक घरों में खामोश रही सिलाई मशीनें गति पकड़ने लगी हैं। हुनरमंद हाथों को रोजगार मिलने लगा है।
वृंदावन, छटीकरा, गोपालगढ़, धौरेरा, कस्बा महावन, गोपालपुर और शहर के डीग अड्डा क्षेत्र में आर्डर पर कारीगर ठाकुर जी की पोशाक बनाने का कार्य करते हैं। स्वयं सहायता समूह पोशाक बनाते हैं। छह-सात हजार कारीगर परिवार ठाकुरजी की पोशाक बनाने का कार्य जिले भर में कर रहे हैं। कोरोना काल में ठाकुरजी की पोशाक का कारोबार ने बताया, जीरे नंबर से लेकर छह नंबर तक की पोशाक बनाई जाती है। जीरो नंबर की एक दर्जन पोशाक बनाने पर 24 रुपये की मजदूरी मिलती है। एक लगभग ठप हो गया था, लेकिन अब धीरे-धीरे कारोबार उठने लगा है। ठाकुरजी की पोशाक की मांग के आर्डर मिलने लगे हैं। मथुरा के थोक व्यापारियों से पोशाक मंगाकर अहमदाबाद में बिक्री कर रहे मनुभाई दामोदरदास शोरूम के संचालक केतन भाई रसाणिया ने बताया, कोरोना काल में ठाकुरजी की पोशाक के ग्राहक नहीं थे, लेकिन अब बाजार में मांग बढ़ गई है। कोरोना से पहले के मुकाबले पचास फीसद आर्डर देकर ठाकुरजी की पोशाक मंगाई है। पोशाक कारोबारी राजकुमार चतुर्वेदी ने बताया, अलीगढ़, कानुपर, जयपुर, मुंबई समेत दूसरे शहरों आर्डर मिलने लगे हैं। गांव गोपालगढ़ के कारीगर रोहताश, नीरज और बाबी ने बताया, अब छह-सात गड्डी (एक गड्डी में एक दर्जन पोशाक) के आर्डर मिल रहे हैं। पहले दस-बीस गड्डियों के आर्डर प्रतिदिन मिलते थे। रोहताश ने बताया, जितना आर्डर मिल रहा है, उतनी पोशाक तैयार की जा रही है। इस समय आर्डर मिलने लगे हैं। - ये मिलती है मजदूरी : कारीगरों ने बताया, जीरो नंबर से लेकर छह नंबर तक की पोशाक बनाई जाती है। जीरो नंबर की एक दर्जन पोशाक बनाने पर 24 रुपये की मजदूरी मिलती है। एक नंबर की 30, दो नंबर की 36 और छह नंबर की एक दर्जन पोशाक की मजदूरी 72 रुपये मिलती है। कारीगरों का कहना है, एक दिन में वह आठ-दस गड्डी पोशाक तैयार कर लेते हैं, लेकिन आजकल आर्डर कम मिलने से चार-पांच गड्डी ही पोशाक बनाकर गुजर-बसर कर रहे हैं। - दो महीने में खत्म हो जाता था स्टाक: आठ महीने तक पोशाक बनाने का कार्य होता था और दो महीने सावन-भादों में स्टाक खाली हो जाता था। इन दोनों ही महीनों में ब्रज में करोड़ों यात्री आते हैं। उसी समय स्टाक खाली हो जाता था। वृंदावन स्थित बिहारीजी गली स्थित कान्हा श्रृंगार पोशाक के संचालक पुरुषोत्तम कहते हैं, पोशाक के कारोबार के टर्नओवर का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन फिलहाल कारोबार गति पकड़ने लगा है।
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