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    सांझी कला के लिए प्रसिद्ध है शाहजहांपुर मंदिर

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    Updated: Fri, 19 Aug 2016 07:09 PM (IST)

    मथुरा, (वृंदावन): भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली वृंदावन एकबार पूरी तरह विलुप्त प्राय: हो चुका था। मग

    मथुरा, (वृंदावन): भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली वृंदावन एकबार पूरी तरह विलुप्त प्राय: हो चुका था। मगर, पांच सौ साल पहले चैतन्य महाप्रभु वृंदावन आए और उन्हें यहां भगवान की साधना के दौरान श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों का आभास हुआ। इन लीला स्थलियों का प्रकाश करने के लिए उन्होंने अपने षठ्अनुयायी वृंदावन भेजे जिन्होंने भगवान की लीला स्थलियों का पुन: प्रकाश किया। इसके बाद मानो वृंदावन में मंदिरों की श्रृंखला ऐसी शुरू हुई की आज पांच सौ साल बाद भी मंदिरों का निर्माण अनवरत रूप से जारी है। ऐसा ही एक मंदिर है शाहजहांपुर मंदिर। शाहजहांपुर राज्य के दीवान लाला ब्रजकिशोर ने सन 1873 में रेतिया बाजार में राधागोपालजी के एक विशाल मंदिर की स्थापना करवाई। पत्थरों पर हो रही नक्कासी इस मंदिर का आकर्षण बढ़ाती है। आज भी अनवरत रूप से पारंपरिक पूजा-अर्चना होती रहती है। ब्रज की प्राचीन सांझी कला के लिए मंदिर अपनी ख्याति प्राप्त कर चुका है। आज भी मंदिर में विराजमान ठा. राधागोपालजी महाराज की प्रतिदिन मंगला आरती से लेकर रात की शयन आरती तक होती है। मंदिर सेवायत ललित किशोर गोस्वामी कहते हैं शाहजहांपुर रियासत से मंदिर के खर्च की व्यवस्थाएं की जाती रही हैं। मगर, अब कोई जाने वाला नहीं, तो मंदिर की प्रापर्टी में बनी दुकानों का किराया व दान आदि के आधार पर अब व्यवस्थाओं का संचालन किया जाता है। उन्होंने कहा कि हालांकि मंदिर की जमींदारी शाहजहांपुर, बरेली, रामनगर, आंमला आदि में ही है।

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    -उल्लास से मनाए जाते हैं ब्रज के उत्सव

    मंदिर सेवायत बताते हैं सावन के महीने में झूलनोत्सव के अलावा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व राधाष्टमी पर्व मंदिर में उल्लास पूर्वक मनाया जाता है। सांझी कला का ये बड़ा केंद्र भी है।