Mahoba पहुंचे शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती, बोले - 15 देशों को हिंदू राष्ट्र घोषित होने का हैं इंतजार
महोबा के कबरई में दो दिवसीय प्रवास पर महोबा पहुंचे श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती ने पहले दिन सभा में सभी को राष्ट्रप्रेमी बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आगे कहा कि विश्व के 15 देश भारत के हिंदु राष्ट्र घोषित होने का इंतजार कर रहे है।

महोबा, जागरण संवाददाता। महोबा के कबरई में श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती का आगमन हुआ। अपने दो दिवसीय प्रवास के पहले दिन उन्होंने शाम को दिव्य धर्म सभा को संबोधित किया।
उन्होंने सभा में कहा कि देव दुर्लभ भारत विश्व का हृदय है । विश्व के 15 देश भारत के हिंदू राष्ट्र घोषित होने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि वे भी स्वयं को हिंदू राष्ट्र घोषित कर सकें। उससे पहले महोबा आगमन पर उनका भव्य तरीके से स्वागत किया गया।
बुधवार को ट्रेन से महोबा पहुंचे पुरीपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती का भक्तों ने स्वागत किया। दोपहर को गुरु दीक्षा कार्यक्रम के दौरान अनेक शिष्यों ने गुरु दीक्षा ली। इसके बाद शाम करीब पांच बजे श्री पीठाधीश्वर स्वामी के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में भक्त पहुंचे।
कबरई के विवेक नगर में दिव्य धर्म सभा को संबोधित करते हुए शंकराचार्य जी ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को अपने घर , आस पास स्थित मंदिर मठ आदि को केंद्र बनाकर तथा प्रत्येक व्यक्ति को नौ अन्य व्यक्तियों को जोड़कर शसक्त समाज का निर्माण करना है। अपनी समस्याओं के लिए शासन तंत्र व नेताओं पर निर्भर न रहते हुए स्वयं समाधान ढूंढना चाहिए।
शंकराचार्य ने क्षिति ,जल,पावक, गगन, समीर की मीमांशा करते हुए बताया कि पृथ्वी पांच गुणों से संपन्न है, जबकि क्रमशः जल चार गुणों से, अग्नि तीन गुणों से, आकाश दो गुणों से व वायु एक गुण से संपन्न है। नीति व आध्यात्म की शिक्षा को अनिवार्य बताते हुए आधुनिक शिक्षा पद्धति को नौकर बनाने वाली कहा।
बताया कि यदि माता चाहे तो बालक या बालिका को गोद में ही राष्ट्र भक्त, ईश्वर भक्त बना सकती है, क्योंकि संतान पर पिता की अपेक्षा मां का प्रभाव अधिक होता है। भक्त प्रह्लाद व अभिमन्यु इसके उदाहरण हैं। मुस्लिम समाज हिंदूओं से ही प्रेरणा प्राप्त कर पांच पहर नमाज के रूप में ईश्वर को याद करता है।
प्रत्येक सनातनी हिंदू को भी तो में कम से कम पांच बार पंद्रह-पंद्रह मिनट तक ईश्वर की आराधना व स्मरण करना चाहिए। भौगोलिक व्याख्या के दौरान बताया कि विष्णु पुराण में वर्णित सप्त द्वीपों वाली पृथ्वी आज हमें प्राप्त नहीं है। वैदिक ऋषियों ने कभी भी विद्या व कला की उपेक्षा नहीं की।
भगवान को भक्त वत्सल बताते हुए बताया कि भीष्म पितामह को देह त्याग के समय स्वयं वासुदेव कृष्ण ने नेत्रों के समक्ष उपस्थित रहकर उनकी इच्छा पूरी की थी। यदि देह त्याग के समय भगवान के नाम का स्मरण, उनकी छवि का ध्यान हो जाए तो फिर व्यक्ति को पाप करने का मौका ही नहीं मिलता है।
जीव ही अपने अन्तःकरण को शुद्ध कर देवता का स्थान पाता है। इसलिए जीव का स्थान देवता से बड़ा है। श्री पीठाधीश्वर ने बताया कि भारत का व्यक्ति किसी भी देश में जाता है तो वहां के लोग उससे नीति व आध्यात्म का ज्ञान होने की आशा रखते हैं। भा का अर्थ ज्ञान व रत का अर्थ निरंतर बताते हुए कहा कि पूरा विश्व चाहता है कि भारत भारत ही बना रहे। प्रत्येक बालक व बालिका के लिए स्वास्थ्य व सैनिक प्रशिक्षण आवश्यक है। माताओं को अपने बच्चों को मिट्टी से जोड़ने व राष्ट्र भक्त बनाने के लिए प्रेरित किया।
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