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    शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा- ब्राह्मण को पथभ्रष्ट करने के हो रहे प्रयास, बचाएं ब्राह्मणत्व

    By Jagran NewsEdited By: Abhishek Agnihotri
    Updated: Thu, 13 Oct 2022 04:17 PM (IST)

    महोबा के कबरई में दो दिवसीय प्रवास पर दूसरे दिन शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने सभा में संबोधित करते हुए कहा कि युवाओं और पत्रकारों को सनातन शिक्षा के लिए आगे आना होगा। उन्होंने आगे कहा कि धर्म सदैव सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय की ही प्रेरणा देता है

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    महोबा के कबरई कस्बे में संबोधित करते हुए शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती।

    महोबा, जागरण संवाददाता। श्री गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्यस्वामी निश्चलानन्द सरस्वती ने सनातन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए युवाओं से आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि देश की युवा पीढ़ी और पत्रकार अखंड भारत के निर्माण में बड़ी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। सनातन धर्म , दर्शन, ज्ञान, विज्ञान से भोग की प्राप्ति नहीं होगी यह भ्रम युवा पीढ़ी में गलत घर कर गया है। धर्म सदैव सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय की ही प्रेरणा देता है, जिसमें सभी प्राणी मात्र का कल्याण छुपा होता है। इसी सर्वजन हिताय धर्म का पालन करते हुए ही भारत अखंड हिंदू राष्ट्र बनेगा।

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    महोबा कबरई में दो दिवसीय प्रवास पर दूसरे दिन विवेकनगर स्थित पाठक बंधु पार्क में आयोजित संगोष्ठी में शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती ने कहा कि युवाओं और पत्रकारों को सनातन शिक्षा की रक्षा को आगे आना होगा। विदेशी आक्रांताओं व सत्तालोलुप नेताओं को ब्राह्मण से ही सबसे अधिक खतरा रहा है। देश के सुप्रसिद्ध गुरुकुलों को नष्ट कर सनातन शिक्षा पद्धति पर कुठाराघात किया गया है। लगातार ब्राह्मण को पथभ्रष्ट करने के प्रयास किए जा रहे हैं। ब्राह्मण को कलियुग के समाप्ति तक अपने ब्राम्हणत्व को बचाए रखना चाहिए तभी समाज विकासोंन्मुख होगा।

    पत्रकारों से वार्ता में नेपाल के एकमात्र हिन्दू राष्ट्र होने के बावजूद खतरे में होने का कारण पूछने पर श्री सरस्वती स्वामी जी ने कहा कि नेपाल का चीन के प्रभाव में आना ही उसके संकट का कारण है। बताया कि वह स्वयं नेपाल गए थे, वहां के नेताओं को आगामी खतरे से आगाह किया था। परंतु सत्ता की चाह से अंधे हो चुके वहां के नेताओं ने इस पर ध्यान नहीं दिया। भारत को नेपाल को चीन के प्रभाव से बचाकर उसकी रक्षा करनी होगी।

    युवा पीढ़ी का पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आकर्षित होने के प्रश्न पर पीठाधीश्वर शंकराचार्य ने कहा कि दिग्भ्रमित माता पिता की संतान भी भ्रमित ही होगी। जब तक माता पिता अपनी संतानों का लालन पालन आध्यात्म व धर्म के तहत नहीं करेंगे तब तक युवा पीढ़ी पाश्चात्य सभ्यता व अधर्म की ओर आकर्षित होगी।

    आधुनिक व मध्ययुगीन इतिहासकारों द्वारा की गई प्राचीन भारत की गलत व्याख्या के सवाल पर श्री सरस्वती महाराज ने वेदों तथा ऋषि मुनियों की रचनाओं के प्रचार प्रसार तथा स्कूली शिक्षा में वैदिक व नीति शास्त्र की शिक्षा को अनिवार्य करने की आवश्यकता बताई। भारत सहित पूरे विश्व का पर्यावरण असंतुलित होने का कारण पूछे जाने पर शंकराचार्य ने श्रृष्टि का निर्माण क्षिति ,जल, पावक, गगन, समीर से बताया तथा ये पांचों अलग अलग गुणों से एक दूसरे से बंधे हैं।

    उन्होंने कहा कि ईश्वर द्वारा सर्वहित के लिए ही श्रृष्टि की संरचना की है। जब मानव सर्वहित के उद्देश्य से भटक कर कार्य करते हैं तभी पर्यावरण असंतुलित होता है। वह क्षेत्र,वन्य जीवों का घटना । कृषि में पशुधन के प्रयोग की बजाय मशीनरी का प्रयोग करना , गाय के शुद्ध दुग्ध की बजाय रसायन युक्त ताकतवर्धक पेय पदार्थों का प्रयोग करना, जैसे कारण पर्यावरण तथा भारत की युवा पीढ़ी को खराब कर रहे हैं। धर्म व पंथ में भेद के प्रश्न पर बताया कि हिंदू धर्म है जबकि लोककल्याणकारी हित साधने का मार्ग पंथ है।

    सृष्टि व जीव हित के विरुद्ध किए जाने वाले कार्य का मार्ग पंथ नहीं हो सकता है। प्रारब्ध व कर्म का भेद बताते हुए कहा कि किए गए सतकर्मों का कुछ भाग परमपिता परमेश्वर द्वारा भाग्य या प्रारब्ध के रूप में जीव को प्रदान किया जाता है।