PMFBY Scam: जंगल, नदी, पहाड़ पर फसल बीमा कर 40 करोड़ का महाघोटाला, 112 दिन बाद कंपनी प्रबंधक सहित तीन गिरफ्तार
महोबा में फसल बीमा योजना के तहत वन विभाग, नदियों और पहाड़ों की जमीन पर फर्जी बीमा कराकर 40 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया। इस मामले में बीमा कंपनी इफक ...और पढ़ें

पुलिस की हिरासत में प्रबंधक निखिल बाएं से पांचवां जैकेट में सहित अन्य आरोपित। पुलिस
जागरण संवाददाता, महोबा। यूपी के महोबा में वन विभाग, नदियों, पहाड़ों सहित चकमार्ग की जमीन पर फर्जी तरीके से प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत 40 करोड़ का चूना लगाने के मामले में गिरफ्तारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। बुधवार को 112 दिनों तक फरार रहने के बाद बीमा कंपनी इफको टोकियो का जिला प्रबंधक निखिल चतुर्वेदी पुत्र माताचरण निवासी ऐदलपुर पोस्ट पर्वतपुर जनपद जालौन जिले के थाना चरखारी पुलिस के हत्थे चढ़ा। इसके साथ ही तीन अन्य आरोपित अरविंद यादव पुत्र राजासिंह निवासी ग्राम कोटरा महोबकंठ महोबा, श्यामलाल सेन पुत्र रामरतन सेन निवासी मुहल्ला रोशनपुरा चरखारी महोबा, बृजगोपाल अरजरिया पुत्र भगवानदास निवासी ग्राम छतरवारा महोबकंठ भी पकड़े गए।
थानाध्यक्ष चरखारी प्रवीण कुमार सिंह ने बताया कि आरोपितों को ग्राम गोरखा के पास से पकड़ा गया। आरोपितों ने कूटरचित दस्तावेजों के जरिए अन्य लोगों के साथ मिलकर बीमा कराया था। सभी को न्यायालय के समक्ष पेश करने के बाद जेल भेजा गया। अब तक इस मामले में महिला समेत पुलिस 23 आरोपितों को जेल भेज चुकी है। वहीं इस मामले में उपनदेशक कृषि रामसजीवन का कहना है कि अभी जांच चल रही है। जिले में हुए फसल बीमा घोटाले में शहर कोतवाली, चरखारी, कुलपहाड़, अजनर व थाना पनवाड़ी में कुल छह मुकदमे दर्ज किए गए है।
27 अगस्त को बीमा कंपनी इफको टोकयो के जिला प्रबंधक निखिल सहित 26 नामजद व अन्य अज्ञात पर मुकदमा शहर कोतवाली में दर्ज हुआ था। तब से प्रबंधक फरार चल रहा था। मामले में कृषि विभाग के बीमा पटल सहायक अतुलेंद्र विक्रम को भी निलंबित किया जा चुका है। 24 सितंबर को जिला सत्र न्यायालय ने पांच आरोपितों की जमानत भी खारिज कर दी थी।
इस तरह किया गया फर्जीवाड़ा
फसल बीमा में फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों ने कंपनी से सांठगांठ कर ऐसे गांवों को चुना, जहां चकबंदी प्रक्रिया चल रही है। बीमा करने के लिए पोर्टल (प्रधानमंत्री फसल बीमा पोर्टल) पर भू-स्वामी व बटाईदार अपना बीमा करा सकता है। चकबंदी प्रक्रिया वाले गांवों का डाटा प्रदर्शित नहीं होता, जिससे कोई भी 10 रुपये के स्टांप पर बटाईनामा बनवाकर जमीन पर बीमा करा सकता है। इसमें वह जो जानकारी भर देता है वह सही मानी जाती है। खाली स्टांप भी इसमें लगाया जा सकता है। उसी के कागजातों के आधार पर बीमा होता है।
इसकी जांच बीमा कंपनी ही करती है। इसके बाद व्यक्ति टोल फ्री नंबर पर फोन कर नुकसान की जानकारी देता है। इसकी जांच भी बीमा कंपनी करती है और क्लेम पास कर भुगतान दे देती है। जाहिर है कहीं न कहीं बीमा कंपनी के लोग भी इसमें शामिल है। किसी भी मामले का सत्यापन नहीं किया गया। यदि सत्यापन कराया जाता तो शायद फर्जी भुगतान होने से बच जाता।

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