Updated: Tue, 30 Sep 2025 04:02 PM (IST)
लखनऊ में चुनावी रंजिश के चलते एक महिला ने ग्राम प्रधान पर झूठा एससी/एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कराया जिस पर उसे डेढ़ साल की सजा हुई है। न्यायालय ने राहत राशि वापस लेने का आदेश दिया और पंचायती राज व्यवस्था में बढ़ती दुश्मनी पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है और झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने वालों को राहत नहीं मिलनी चाहिए।
विधि संवाददाता, लखनऊ। चुनावी रंजिश के चलते ग्राम प्रधान पर मारपीट व एससी/ एसटी एक्ट का फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वाली गुड्डी को एससी/एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने डेढ वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है।
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आदेश की एक प्रति जिलाधिकारी लखनऊ को इस निर्देश के साथ भेजी गई है कि गुड्डी को कोई राहत धनराशि दी है, तो उसे तत्काल वापस लिया जाए। सरकारी वकील अरविंद मिश्रा ने न्यायालय को बताया कि दोषी महिला के देवर और ग्राम प्रधान महिला के पति मथुरा प्रसाद, विनोद अवस्थी व अनूप अवस्थी के बीच प्रधानी के चुनाव को लेकर विवाद चल रहा था।
इस दुश्मनी के चलते दोषी महिला ने अपने देवर के कहने पर 15 नवंबर 2024 को थाने में विपक्षियों के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज कराया था। दोषी महिला ने आरोप लगाया था कि जब वह अपने देवर राजू के साथ ग्राम जगदीशपुर से दवा लेकर लौट रही थी तो रास्ते में विपक्षियों ने उसे और उसके देवर को जबरन रोककर गालियां दीं और मारा-पीटा।
हालांकि, जांच में पता चला कि घटना के समय आरोपित अनूप अवस्थी फैजुल्लागंज में था और बाकी दोनों मथुरा प्रसाद के घर पर थे। एसीपी अमोल मुरकुट ने मामले की जांच की और पाया कि कोई घटना घटित नहीं हुई थी। इसके बाद विवेचक ने मामले में अंतिम रिपोर्ट लगा दी और आरोपित गुड्डी के खिलाफ झूठा मुकदमा लिखाने का परिवाद न्यायालय में दाखिल किया।
न्यायालय ने कहा एक-दूसरे के बन रहे दुश्मन
न्यायालय ने कहा कि 73वें संविधान संशोधन के द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को अपने देश में लागू किया गया। वह ग्रामीण विकास को नए आयाम दे रही है। इसके अलावा ग्रामीण समाज में वैमनस्यता भी बढ़ा रही है। गांव के लोग एक दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे है।
वहीं, एससी-एसटी एक्ट को लेकर कोर्ट ने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय ने भी इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि यह एक्ट अनुसूचित जाति जनजाति के सदस्यों को अत्याचार के विरुद्ध उपचार के लिए बनाया गया था, उसको हथियार बनाकर अनेक व्यक्तियों द्वारा निर्दोष लोगों को फसाया जा रहा है, जिससे वास्तव में जो जरूरतमंद है उनको न्याय पाने में कठिनाई हो रही है।
न्यायालय ने आदेश की प्रति जिलाधिकारी और पुलिस आयुक्त को भेजने का आदेश देते हुए कहा कि विधायिका का यह बिल्कुल आशय नहीं था कि करदाताओं के बहुमूल्य धन को झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने वालों को राहत के रूप में दिया जाए।
जिलाधिकारी राहत राशि चार्जशीट आने के बाद ही दें, क्योंकि रिपोर्ट दर्ज होने के स्तर पर राहत राशि देने से फर्जी रिपोर्ट दर्ज कराने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है।
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