UPPCL: यूपी में बिजली कंपनियों के निजीकरण में बड़ा बदलाव, कंसल्टेंट चयन की शर्तों को बनाया गया आसान
उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण की प्रक्रिया में बड़े बदलाव किए गए हैं। कंसल्टेंट चयन के लिए टेंडर प्रक्रिया में कई शर्तों को आसान बनाया गया है। न्यूनतम वार्षिक टर्नओवर को 500 करोड़ रुपये से घटाकर 200 करोड़ रुपये कर दिया गया है। कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट के नियम को भी शिथिल कर दिया गया है। उपभोक्ता परिषद ने सीएम से मामले की जांच की मांग की है।

राज्य ब्यूरो, लखनऊ। बिजली कंपनियों के निजीकरण के लिए कंसल्टेंट चयन के लिए चल रही टेंडर प्रक्रिया में तकनीकी बिड खुलने की तिथि को दूसरी बार आगे बढ़ाया गया है। तकनीकी बिड को अब 18 फरवरी के बजाय तीन मार्च को खोला जाएगा।
कंसल्टेंट चयन के टेंडर की शर्तों को आसान बनाते हुए प्रक्रिया में हिस्सा ले रही कंपनियों के सालाना न्यूनतम टर्नओवर को 500 करोड़ रुपये से घटाकर 200 करोड़ रुपये किया गया है। कान्फ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट (हितों के टकराव) के नियम को भी शिथिल कर दिया गया है।
टेंडर की कई शर्तों में बदलाव कर दिया गया
दक्षिणांचल व पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के कार्यक्षेत्र वाले 42 जिलों की बिजली पीपीपी माडल पर निजी क्षेत्र को दिए जाने के लिए कंसल्टेंट चयन की टेंडर प्रक्रिया चल रही है। मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली एनर्जी टास्क फोर्स ने टेंडर की कई शर्तों में बदलाव कर दिया है।
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सीएम से उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग
उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट को खत्म करना जनविरोधी निर्णय है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की है कि पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए। हितों में टकराव की शर्त को हटाना, केंद्रीय सतर्कता आयोग के दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन है।
उन्होंने बताया है कि कंसल्टेंट कंपनियों ने कंसल्टेंट के लिए सेवा शर्तों में बदलाव की मांग की थी। जिसके आधार पर एनर्जी टास्क फोर्स ने कई सेवा शर्तों को शिथिल कर दिया है। न्यूनतम वार्षिक टर्नओवर जो 500 करोड़ रुपये था उसे घटाकर 200 करोड़ रुपये कर दिया है। कॉन्फ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट के सबसे महत्वपूर्ण पैरामीटर को शिथिल किया गया है। अब इस शर्त का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
उन्होंने कहा है कि उपभोक्ता परिषद इस मामले की शिकायत केंद्रीय सतर्कता आयोग से भी करेगा। विद्युत नियामक आयोग में भी इस मुद्दे को उठाया जाएगा। वर्मा ने कहा कि पहले मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी में कड़ी शर्तों की बात कही गई थी, लेकिन अब सब उन शर्तों को शिथिल कर दिया गया है।
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