शिक्षा या राजनीति.. क्यों मचा है स्कूलों पर सियासी संग्राम, अखिलेश की 'PDA' पाठशाला; CM योगी क्या बोले?
UP School Merger उत्तर प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों के विलय के निर्णय पर राजनीति गरमाई हुई है। सपा इसे गरीबों को शिक्षा से दूर करने का षड्यंत्र बता रही है और पीडीए पाठशालाएं लगाकर विरोध जता रही है जहां ए फॉर अखिलेश का ज्ञान दिया जा रहा है। भाजपा इस रणनीति को समझ रही है और तीखा पलटवार कर रही है।

अजय जायसवाल, राज्य ब्यूरो। इन दिनों उत्तर प्रदेश में ‘प’ से पाठशालाओं को लेकर ‘र’ से राजनीति का ककहरा ही गूंज रहा है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने हाल ही में शैक्षिक जीवन के पहले पड़ाव वाले परिषदीय विद्यालयों के विलय का निर्णय क्या लिया, शिक्षा की इस मासूम जमीन पर खांटी सियासत की बिसात बिछ गई है।
सपा, बसपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी तक विरोधी दल ने इसे गरीबों को शिक्षा से दूर करने का षड्यंत्र बताने में देर नहीं की। अब विरोध तो सभी जता रहे हैं, लेकिन पाठशाला पर राजनीति की परीक्षा से चुनावी फायदे की गुंजाइश का सर्वाधिक अंदाजा सपा को ही है। तभी, वह भारतीय जनता पार्टी सरकार के विरोध की अपनी रणनीति पर सबसे आगे दिख रही है।
स्कूलों का मर्ज होना पीडीएम विरुद्व कैसे?
सपा प्रमुख अखिलेश यादव खुद कमान संभाल आए दिन किसी तथ्य, आंकड़े या दावे के सहारे विलय के निर्णय को पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) विरुद्ध बताने में जुटे हैं। उनकी कोशिश पीडीए के नारे को अगले विधानसभा चुनाव और उससे पहले होने वाले पंचायत चुनाव तक और विस्तारित एवं व्यापक करने की दिख रही है। यही कारण है कि बंद हो रहे स्कूलों वाले गांवों में सपाई पीडीए पाठशालाएं लगा रहे हैं।
ऐसी पाठशालाओं में मासूम मन का अक्षरों से साक्षात्कार के नाम पर सपाई ‘ए’ फॉर अखिलेश, ‘डी’ फॉर डिंपल और ‘एम’ फॉर मुलायम का अक्षर ज्ञान कराकर पार्टी के भविष्य की नींव मजबूत करने की कोशिश में हैं।
योगी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार, सपा की इस रणनीति को बखूबी समझ रही है। इसीलिए राजनीतिक तौर पर किसी तरह के नुकसान से बचने के लिए सपा के विरोध की आक्रामकता बढ़ने के साथ विलय के निर्णय को लेकर स्पष्टीकरण का सिलसिला भी तेज हुआ है।
स्कूल किस आधार पर मर्ज किए जाएंगे?
पहले जहां केवल कम छात्रों पर ही विलय की बात कही जा रही थी, वहीं बाद में सरकार ने स्पष्ट किया कि 50 से कम छात्रों वाले स्कूलों का ही विलय होगा। फिर भी विरोध न थमने पर एक किलोमीटर से ज्यादा दूरी वाले विद्यालयों का विलय न करने की सफाई पेश की गई।
इसके बाद भी सपा के जारी हमलों पर भाजपा संग एनडीए के सहयोगी तीखा पलटवार कर ‘ए’ फॉर अखिलेश के अक्षर ज्ञान को लेकर उनके इरादों पर प्रश्न खड़ा कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं अपने अंदाज में सपाई अक्षर ज्ञान पर करारा वार किया। सुभासपा प्रमुख व पंचायती राज मंत्री ओमप्रकाश राजभर तीखे अंदाज में कहते हैं कि सपा के लिए ए से ‘अराजकता’, बी से ‘भ्रष्टाचार’, सी से ‘चोर’ और डी से ‘दलाली’ होता है। उन्होंने सपा सरकार में एम से ‘मुलायम रुख’, वाई से ‘यादववाद’ और जेड से ‘जीरो बदलाव’ के तहत काम होने का आरोप लगा तमाम सवाल उठाए हैं।
स्कूलों पर क्यों हो रही है रार?
राज्य के चुनावों में शिक्षा और शिक्षक सदैव ही बड़ा मुद्दा रहे हैं। प्रदेश के 1.32 लाख विद्यालयों में लगभग 1.92 करोड़ छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं। इनमें लगभग 4.34 लाख शिक्षक, 1.4 लाख शिक्षामित्र और 25 हजार अनुदेशक हैं।
मानकों के मुताबिक, प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक-छात्र अनुपात 30 से 35 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए। महकमा शिक्षकों की पर्याप्त संख्या बताता है, लेकिन शिक्षक बनने की राह देख रहे 59 हजार पद रिक्त बताते हैं।
क्या हजारों स्कूल बंद करने की तैयारी में सरकार?
सरकार बगैर नई भर्तियों के विद्यालयों में शिक्षकों के साथ ही अन्य सुविधाओं के बेहतर होने का दावा कर रही है। बंद हो रहे स्कूलों में भी बाल वाटिकाओं के संचालन की बात कही जा रही है, लेकिन साक्षरता की पहली सीढ़ी के सफर में जिन विद्यालयों में बचपन बहुत कुछ सीखता है, उन्हें लेकर राजनीति थमने का नाम नहीं ले रही है।
इसकी वजह भी है। एक दशक पहले अखिलेश सरकार के दौरान वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 71 सीटों पर जीत दर्ज की तो वर्ष 2019 के चुनाव में 62 सीटें जीतने में कामयाब रही।
वहीं, वर्ष 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने बहुमत की सरकार बनाई। सपा वर्ष 2017 में सत्ता गंवाने के साथ 47 विधानसभा सीटों पर सिमट गई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन के बावजूद पांच सीटों से आगे नहीं बढ़ सकी। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सपा सरकार तो नहीं बना सकी लेकिन उसकी सीटें जरूर 111 हो गईं।
पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में सपा की पीडीए रणनीति और संविधान संग आरक्षण पर खतरे के दांव ने बड़ा असर दिखाया और उसे रिकॉर्ड 37 सीटें हासिल हुईं। इसके बाद से ही सपा के हौसले बुलंद हैं और पीडीए फार्मूले के जरिए अगले विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने की उम्मीद लगाए है।
चूंकि बंद हो रहे ज्यादातर स्कूल उन ग्रामीण क्षेत्रों में हैं जहां पहले पंचायत चुनाव होने हैं इसलिए सपा को विलय के विरोध से बड़ा राजनीतिक फायदा दिख रहा है।
भले ही पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल से नहीं होते, लेकिन जिस तरह से स्कूलों के विलय को लेकर राजनीतिक माहौल बनता दिख रहा है उससे आने वाले दिनों में वार-पलटवार का दौर और आक्रामक होने की आशंका है, क्योंकि सभी ‘च’ से चुनाव में इसके सहारे अपने लिए ‘स’ से सत्ता जो चाहते हैं।
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