UP Election: सिर्फ PDA वोट के भरोसे नहीं समाजवादी पार्टी, अखिलेश यादव की रणनीति में हुआ बड़ा बदलाव
समाजवादी पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए वादों की झड़ी लगा दी है। अखिलेश यादव ने युवा महिला किसान जैसे वर्गों को साधने की रणनीति बनाई है। शहरों के लिए अलग घोषणापत्र और जातियों को सम्मान देने के वादे किए जा रहे हैं। सपा का लक्ष्य 2027 में 2012 जैसे परिणाम हासिल करना है लेकिन जनता का विश्वास जीतना एक बड़ी चुनौती होगी।

दिलीप शर्मा, लखनऊ। सत्ता की महाप्रतियोगिता में चुनावी दौड़ की सीटी बजने का समय तो अभी दूर है, परंतु रेस के मैदान में राजनीतिक दल उतर आए हैं। साइकिल ने तो जीत की मंजिल पाने के लिए वादों के ट्रैक पर आगे बढ़ना भी शुरू कर दिया है।
पार्टी मुखिया अखिलेश यादव वादों का एक-एक पैडल मार रणनीति की रफ्तार बढ़ा रहे हैं। युवा, महिला, किसान, शिक्षक, नौकरीपेशा जैसे बड़े वर्गों पर तो नजर है ही, छोटी-बड़ी जातियों को भी उनकी पहचान और महापुरुषाें को सम्मान, जैसे वादों से साधना शुरू कर दिया गया है।
बढ़ती जाएगी साइकिल के वादों की गति
अलग-अलग घोषणापत्र जैसे वादों से सीधे शहरों को भी अपने एजेंडे के केंद्र में खड़ा किया जा रहा है। इनमें भी पहले उन जिलों पर जोर है, जहां साइकिल कभी तेज नहीं चली। जैसे-जैसे समय गुजरेगा, साइकिल के वादों की गति भी बढ़ती जाएगी।
वर्ष 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में पराजय का सामना करने वाली सपा वर्ष 2027 में 2012 के चुनावों जैसा परिणाम हासिल करने का सपना बुन रही है।
भाजपा की रणनीति को चुनौती देने का भी लक्ष्य
पिछले लोकसभा चुनाव में संविधान-आरक्षण पर खतरे का नैरेटिव और पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) के नारे ने बढ़त दिलाई थी, तब सपा ने प्रत्याशियों और पदाधिकारियों के चयन में जातीय समीकरण भी साधे थे।
अगले विस चुनावाें के लिए पार्टी ने इस रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए वादों का सिलसिला भी छेड़ दिया है। इसके पीछे भाजपा की लाभार्थियों की रणनीति को चुनौती देने का भी लक्ष्य है। सपा ने आठ मार्च को स्त्री सम्मान-समृद्धि योजना की घोषणा संग इसकी शुरुआत की।
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों में पिछले चुनावों में महिला वोट अहम रहा था और सपा इस पर अभी से पकड़ बनाना चाहती है।
वहीं जातियों से जुड़े वादे भी हो रहे हैं। गोमती रिवर फ्रंट पर महाराजा सुहेलदेव, निषादराज, भगवान विश्वकर्मा, महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं लगाने, नाविकों को नई नाव देने का वादा, इसी कोशिश का हिस्सा है।
छोटे दलों को साध रही सपा
पूर्व सांसद शिवदयाल चौरसिया का स्मारक बनवाने की बात भी प्रतीकों की राजनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश है। पूर्व में छोटे दलों के साथ से भाजपा निषाद, राजभर, कुर्मी आदि वर्गों का समर्थन पाती रही है। इसकी काट को सपा भी इन वर्गों को साध रही है।
वहीं, आगरा, मथुरा, नोएडा, गाजियाबाद जैसे शहरों के लिए अलग घोषणा पत्र का नया दांव भी चला गया है। पार्टी का मानना है कि इससे संबंधित जिलों में बढ़त मिल सकती है। साथ में हर मुद्दे पर आगे निकलने की भी कोशिश है।
आउटसोर्सिंग खत्म कर पक्की नौकरी और पूरा आरक्षण देने का वादा तो है ही, खाद संकट, पाठशाला बंदी जैसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं, वो भी पीडीए के नारे के साथ। चुनाव नजदीक आते-आते पार्टी संगठन, वादों का प्रचार कर जनता के बीच आकांक्षा जगाने की कोशिश करेगा।
हालांकि, वादों की भरमार के बीच सपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन घोषणाओं पर जनता विश्वास हासिल करने की होगी, क्योंकि विरोधी इन वादों के पूरा न होने, सपा के अविश्वसनीय होने से लेकर बजट-संसाधन जैसे सवाल जरूर खड़े करेंगे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।