UP Politics: सपा के ‘पीडीए’ पर वार को भाजपा का ‘पीडीआर’, पिछड़ा-दलित पर फोकस के साथ राष्ट्रवाद की भी बिछ रही बिसात
लखनऊ में 2027 के चुनावों के लिए सपा और भाजपा में रणनीति बन रही है। सपा पीडीए (पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक) को बढ़ा रही है तो भाजपा पीडीआर (पिछड़ा दलित राष्ट्रवाद) पर जोर दे रही है। भाजपा सपा पर परिवारवाद का आरोप लगा रही है। संगठन और गठबंधन में जातीय समीकरणों को साधा जा रहा है।

दिलीप शर्मा, लखनऊ। राज्य में वर्ष 2027 में होने वाली सत्ता की महाभारत के लिए रणनीतियों की व्यूह रचना तेज हो गई है। लोकसभा चुनाव में पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) की अपनी सफल रणनीति पर सपा को अब भी पूरा भरोसा है और उसकी तरफ से इसे ही विस्तार देने कोशिश की जा रही है।
दूसरी तरफ भाजपा भी सपा की इस रणनीति के जोखिम को खूब समझ रही है और अब इसके जवाब में पिछड़ा, दलित और राष्ट्रवाद (पीडीआर) की रणनीति को धार देना शुरू कर दिया है। संगठन से लेकर सरकार तक पिछड़े और अनुसूचित जाति के चेहरों को तवज्जो देकर पकड़ मजबूत करने की कोशिश है तो दूसरी तरफ राष्ट्रवाद की अलख के सहारे मतदाताओं की गोलबंदी का प्रयास भी हो रहा है। स्वतंत्रता दिवस पर स्कूलों और मतदान केंद्रों पर तिरंगा फहराने की मुहिम के साथ इसकी शुरुआत भी हो चुकी है।
भाजपा की व्यूह रचना में खुद की मजबूती के साथ सपा के पीडीए को परिवारवाद बताने की रणनीति भी शामिल है। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, पीडीए को परिवार डवलपमेंट अथारिटी बताकर इसकी शुरूआत कर चुके हैं। राजनीतिक भाषणों में अब इस परिभाषा का शोर और बढ़ेगा।
वर्ष 2017 में सत्ता गंवाने और फिर वर्ष 2022 में इसे वापस पाने में नाकाम रही सपा ने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पीडीए का नारा बुलंद किया था। इसके बाद 37 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि उन परिणामों के केंद्र में आरक्षण और संविधान पर खतरे का विपक्षी नेरेटिव भी था, परंतु सपा पीडीए को ही बड़ी वजह मानती है। उसे दोबारा सत्ता पाने को यही सबसे बड़ा हथियार लग रहा है और सपा मुखिया अखिलेश यादव हर मुद्दे और घटना को पीडीए से जोड़कर, इसका प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में हैं। हाल ही में स्कूलों के विलय के मुद्दे पर पीडीए पाठशाला के सहारे माहौल बनाने की कोशिश हुई।
इसके जवाब में भाजपा ने पहले ‘ए फार अखिलेश’ वाले सपा के अक्षर ज्ञान पर प्रश्न उठाए, फिर स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा यात्रा में मतदान केंद्रों-विद्यालयों पर तिरंगे फहराए गए। जातीय समीकरणों से इतर राष्ट्रवाद का संदेश दिया गया। विधानमंडल के मानसून सत्र में विकसित भारत-विकसित उत्तर प्रदेश विजन-2047 पर बहस के दौरान भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सपा पर केवल सत्ता पाने की कोशिश और परिवारवाद का आरोप लगाया। साथ में सरकार की उपलब्धियां गिनाकर सबका साथ-सबका विकास का संदेश देने की कोशिश की।
मानसून सत्र में ही सपा विधायक पूजा पाल (वर्तमान में सपा से निष्कासित) ने ‘जाने-अनजाने’ में भाजपा की पिछड़ा-दलित रणनीति को बल दे दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खुलकर तारीफ की। बाद में यहां तक कह दिया कि सपा, पीडीए का दर्द नहीं समझती। अब मुख्यमंत्री ने पूजा पाल से मुलाकात कर भविष्य की रणनीति के संकेत दे दिए हैं। पाल-बघेल समाज के चेहरे के तौर उनको आने वाले दिनों सरकार में जगह मिलने के भी कयास लग रहे हैं। भाजपा ने हाल ही अवंतीबाई लोधी की जयंती जयंती पर बड़े आयोजन के सहारे लोधी समाज में पकड़ बनाए रखने का प्रयास किया है। भाजपा की कोशिश है कि बसपा से दूर हो रहे अनुसूचित जाति के मतदाताओं को जोड़ा जाए ओर ओबीसी वर्ग को समझाया जाए कि उनके लिए सपा नहीं, भाजपा ही सही विकल्प है। इसके लिए ओबीसी और दलित वर्ग के नेताओं-कार्यकर्ताओं को आगे रखा जा रहा है। आने वाले दिनों में प्रस्तावित, मंत्रिमंडल विस्तार में भी इस रणनीति का असर दिखेगा।
संगठन से गठबंधन तक साधे समीकरण
भाजपा संगठन से लेकर गठबंधन तक जातीय समीकरणों को साध रही है। संगठन में बूथ, मंडल से लेकर जिला स्तर तक रणनीति के हिसाब से पिछड़ा व अनुसूचित जाति को प्रतिनिधित्व दिया गया है। पार्टी के नये प्रदेश अध्यक्ष के चयन में भी इसी रणनीति के तहत चेहरा चुने जाने की भी अटकलें हैं। दूसरी तरफ गठबंधन में निषाद, सुभासपा और अपना दल की मौजूदगी से भाजपा की इस रणनीति को बल मिल रहा है।
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