UP News : उत्तर प्रदेश राजभवन की वेबसाइट अपडेट नहीं, अभी भी दर्ज हैं पुराने कुलपतियों के नाम
UP RajBhawan Website तकनीकी लापरवाही विश्वविद्यालयों की सार्वजनिक छवि को प्रभावित करती है। कई बार शोधार्थी शैक्षणिक प्रतिनिधि और यहां तक कि अन्य राज्य और केंद्र सरकार के विभाग भी इन जानकारियों पर भरोसा करते हैं। कई कुलपतियों के नाम अब भी पूर्व पदाधिकारियों के रूप में साइट पर दर्ज हैं।

राज्य ब्यूरो, जागरण, लखनऊ : डिजिटल इंडिया के दौर में जहां हर जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध होनी चाहिए, वहीं उत्तर प्रदेश राजभवन की आधिकारिक वेबसाइट पर कई विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के नाम अब तक अपडेट नहीं किए गए हैं। यह स्थिति न सिर्फ तकनीकी लापरवाही को दर्शाती है, बल्कि विश्वविद्यालय से जुड़ी जानकारी हासिल करने वाले छात्रों, अभिभावकों, शोधार्थियों और अधिकारियों को भ्रमित भी करती है।
राजभवन से ही प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति होती है और उनकी जानकारी वेबसाइट पर सार्वजनिक की जाती है। बावजूद इसके, कई कुलपतियों के नाम अब भी पूर्व पदाधिकारियों के रूप में साइट पर दर्ज हैं।
उदाहरण के तौर पर, ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ (केएमसी) के पूर्व कुलपति प्रो. एनबी सिंह को जनवरी 2025 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय, अलीगढ़ का कुलपति नियुक्त किया गया था। अब तक वह केएमसी भाषा विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में वेबसाइट पर दर्ज हैं।
इसी प्रकार, मां शाकम्भरी विश्वविद्यालय, सहारनपुर में प्रो. वाई विमला वर्तमान कुलपति हैं, लेकिन वेबसाइट पर अभी तक प्रो. एचएस सिंह का नाम ही है। लखनऊ विश्वविद्यालय में भी प्रो. मनुका खन्ना कुलपति बन चुकी हैं, पर वेबसाइट पर आज भी प्रो. आलोक राय का नाम मौजूद है।
जानकारों का मानना है कि यह तकनीकी लापरवाही विश्वविद्यालयों की सार्वजनिक छवि को प्रभावित करती है। कई बार शोधार्थी, शैक्षणिक प्रतिनिधि और यहां तक कि अन्य राज्य और केंद्र सरकार के विभाग भी इन जानकारियों पर भरोसा करते हैं।
ऐसे में पुराने और गलत नामों से न केवल भ्रम होता है, बल्कि संचार और आधिकारिक पत्राचार में भी दिक्कत आती है। विशेषज्ञों का कहना है कि राजभवन की वेबसाइट जैसी संवेदनशील और आधिकारिक साइट पर जानकारी अद्यतन न होना एक गंभीर चूक है।
यह न केवल डिजिटल इंडिया अभियान की भावना के विपरीत है, बल्कि इससे यह सवाल भी उठता है कि इतनी महत्वपूर्ण जानकारी की निगरानी कौन कर रहा है? अब देखना यह है कि इस डिजिटल चूक को जल्द सुधारा जाएगा या फिर वेबसाइट पर पुराने कुलपतियों की सूची यूं ही बनी रहेगी।
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