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    पूरी तरह कामयाब नहीं गांव की बिजली योजनाएं, सौभाग्य और ग्राम ज्योति योजना के क्रियान्वयन पर CAG ने उठाए सवाल

    Updated: Thu, 25 Dec 2025 11:54 AM (IST)

    उत्तर प्रदेश में गांव की बिजली योजनाएं पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई हैं। सीएजी ने सौभाग्य और ग्राम ज्योति योजना के क्रियान्वयन पर सवाल उठाए हैं। इन योज ...और पढ़ें

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    राज्य ब्यूरो, लखनऊ। गांव की बिजली व्यवस्था को बेहतर बनाने के साथ ही हर घर बिजली पहुंचाने के मकसद से केंद्र सरकार ने जिस दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना(डीडीयूजीजेवाई) और प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना(सौभाग्य) को शुरू किया था उसके क्रियान्वयन से लेकर वित्तीय प्रबंधन में तमाम खामियां मिलीं हैं।

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    भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक(सीएजी) की रिपोर्ट में इस पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि 29 से 49 माह देर तक जहां काम हुए वहीं तय लक्ष्य के मुताबिक एटीएंडसी(तकनीकी एवं वाणिज्यिक) हानियों में भी कमी नहीं आई।

    बुधवार को सीएजी की डीडीयूजीजेवाई और सौभाग्य पर विधानमंडल में रिपोर्ट पेश की गई। रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के सहयोग से दिसंबर 2014 में प्रारंभ की गई ग्राम ज्योति योजना के तहत गांवों में बिजली का इंफ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करने के साथ ही प्रभावी विद्युत वितरण, ट्रांसफार्मरों, फीडरों एवं उपभोक्ताओं की मानीटरिंग का लक्ष्य था।

    अक्टूबर 2017 में सौभाग्य योजना के जरिए सुदूर गांवों तक सोलर पैनल पहुंचाकर गरीब परिवारों को जोड़ने का लक्ष्य तय किया गया, लेकिन रिपोर्ट बताती है कि विभाग की उपलब्धियां कमतर रहीं। लेखा परीक्षक ने 16 जिलों के 224 गांवों में 2208 लाभार्थियों पर सर्वेक्षण किया।

    रिपोर्ट में साफ किया गया कि योजनाओं के नियोजन एवं वित्तीय प्रबंधन में कमी रही। सौभाग्य योजना में आफ ग्रिड संयोजनों को शामिल करने के आदेश के बावजूद डीपीआर में इस प्रविधान को नहीं रखा गया। परियोजनाओं में 29 से 49 माह तक की देरी की गई।

    मीटर युक्त उपभोग के आधार पर अग्रिम राजस्व सब्सिडी में असमर्थता के कारण वितरण कंपनियां दो हजार करोड़ रुपये के ऋणों को अनुदान में नहीं बदल सकीं। जीएसटी एवं राज्य करों के त्रुटिपूर्ण दावे किए गए। प्रदेश सरकार से समय पर राज्य करों का दावा न करने की वजह से पश्चिमांचल डिस्काम अपने हिस्से का 4.21 करोड़ रुपये नहीं ले सका।

    ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (आरईसी) के ऋण पर 7.19 करोड़ रुपये ब्याज का अधिक भुगतान किया गया। अनावश्यक मदों के क्रियान्वयन से खर्च बढ़ा। डीपीआर तैयार करने में लगी फर्मों को 3.33 करोड़ रुपये अधिक भुगतान किया गया।

    कृषि एवं गैर कृषि फीडरों को अलग करने का उद्देश्य भी पूरा नहीं हुआ। तीन वितरण कंपनियों वाले सात जिलों की रिपोर्ट बताती है कि यहां 72 प्रतिशत कृषि उपभोक्ता अब भी गैर कृषि फीडरों से जुड़े हैं। विद्युत सुरक्षा निरीक्षण शुल्क और जंपरिंग के मद में टर्नकी संविदाकारों (टीकेसीज) को 9.16 करोड़ रुपये अधिक भुगतान किया गया जिसमें से बाद में 5.79 करोड़ रुपये की ही वसूली हो सकी।

    जांच के दौरान कनेक्शन में दोहरापन पाया गया। इसके लिए 26.65 करोड़ रुपये का अधिक भुगतान किया गया। हालांकि, जांच के दौरान ज्यादातर लाभार्थियों ने पहले से बिजली आपूर्ति सुधरने की जरूर बात कही लेकिन कुछ ने वोल्टेज में उतार-चढ़ाव व एलईडी लैंप न मिलने की बात भी कही।