Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'मूसा बाग'- एक अनदेखा लखनऊ, 'दरो-दीवारें बयां करतीं हैं तेरी दिलेरी की दास्तां'

    By Anurag GuptaEdited By:
    Updated: Wed, 11 Mar 2020 08:40 PM (IST)

    लखनऊ के मूसा बाग और उसकी एतिहासिक धरोहर से रूबरू करता दैनिक जागरण का विशेष कॉलम मूसा बाग अनदेखा लखनऊ।

    'मूसा बाग'- एक अनदेखा लखनऊ, 'दरो-दीवारें बयां करतीं हैं तेरी दिलेरी की दास्तां'

    लखनऊ, [पवन तिवारी]। बाहर उजाड़ा...अंदर वीराना। शहर से दूर तन्हाई में खड़ी एक इमारत की ओर चलते हैं। मूसाबाग पैलेस। वीरानगी और उजाड़ होना भर ही इसकी कहानी नहीं है। बड़ा गौरवशाली इतिहास है। इस महल के पीछे ही एक मजार भी है। लोगों की आस्था के साथ इस मजार के साथ कुछ दिलचस्प बातें भी जुड़ीं हैं। आइए पढ़ते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    माना कि सिर पर तेरे छत मयस्सर नहीं, पर दरो-दीवारें बयां करतीं हैं तेरी दिलेरी की दास्तां। इस बेजोड़ इमारत की बुलंदी वक्त के थपेड़ों ने नहीं छीनीं। वे तो न्योछावर हुईं। मर मिटीं। जंग-ए-आजादी में। जख्म आज भी हैं। यह अलग बात है कि अब हरे नहीं हैैं, सूख चुके हैैं। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत के दौरान गोला-बारूद से इस महल के वजूद पर हमला हुआ, पर आन-बान-शान मिटी नहीं।

     

    कब बना 

    साल 1803 से 1804 के बीच। इसका निर्माण आजमुद्दौला ने नवाब सआदत अली खां के लिए करवाया था। अपनी तामीर के महज 53 साल बाद इस महल के इम्तिहान की घड़ी आ गई । आजादी की पहली लड़ाई के दौरान महल की इमारत गोला-बारूद से ध्वस्त कर दी गई। दरअसल, इस महल को गोला-बारूद के गोदाम के तौर पर इस्तेमाल किया गया। 

    कैसे पड़ा नाम

    इतिहासकार पद्मश्री योगेश प्रवीण बताते हैैं कि मूसाबाग के नामकरण के पीछे कई किंवदंतियां प्रचलित हैैं, लेकिन वे सही नहीं हैैं। कोई कहता है कि इसका नाम हजरत मूसा के नाम पर पड़ा को कहता है कि किसी के घोड़े की टाप के नीचे आकर चूहा (मूषक) मर गया था, इसीलिए नाम मूसाबाग पड़ गया। असल बात है यह है कि इसका नाम मोंज्योर (महोदय या मिस्टर) के नाम पर पड़ा। दरअसल, इसका निर्माण फ्रेंंच आर्किटेक्ट क्लाउड मार्टिन की ओर से बनवाए गए लामार्ट कॉलेज की बिल्डिंग कांस्टेंशिया और छतर मंजिल की वास्तुकला से प्रभावित होकर कराया गया। 

    तहखाना और खजाना

    इस महल की खूबी इसके अंदर बना तहखाना है। कहते हैैं कि तहखाने के अंदर किसी जमाने में खजाने का भंडार था। यही नहीं, उस जमाने में गर्मी के मौसम में इस तहखाने का इस्तेमाल ठंडक हासिल करने के लिए किया जाता था।

    खूबसूरती बेमिसाल

    पद्मश्री योगेश प्रवीण बताते हैैं कि किसी जमाने में इस महल की चहारदीवारी भी थी। यह कमाल की थी। इसका मुख्य द्वार तो देखते ही बनता था। फाटक के दोनों सिरों पर दो सितारों के आकार में झरोखे कटे थे। ये सितारे ही चार चांद लगाते थे। महल के चारों ओर खूबसूरत बाग-बगीचे थे। नवाब अपने विदेशी मेहमानों का दिल बहलाने के लिए यहां लेकर आते थे।

    सिगरेट वाले बाबा की मजार

    धूम्रपान सेहत के लिए खतरनाक है। शायद यही संदेश देने के लिए लोग इस मजार पर अगरबत्ती, धूप के अलावा सिगरेट भी चढ़ाते हैैं। कैप्टन बाबा या सिगरेट वाले बाबा की यह मजार मूसा बाग महल से ठीक पीछे हैै। आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेज कैप्टन वेल्स मार दिए गए। यह मजार कैप्टन वेल्स की है। आज भी लोग वहां मन्नतें मांगने आते हैैं।

    कैसे पहुंचें?

    चारबाग से चौक। यहां कोनेश्वर महादेव से बालागंज चौराहा। बालागंज चौराहे से करीब डेढ़ किमी है हरीनगर। हरीनगर चौराहे से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मूसाबाग का किला।