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    बाघ के खौफ में Lucknow के ये 15 इलाके, लोग बोले- डरावनी हो गईं हैं एक लाख से ज्‍यादा ज‍िंदग‍ियां

    Updated: Sat, 04 Jan 2025 02:28 PM (IST)

    Lucknow News एक महीने से बाघ की गुर्राहट 15 गांवों में सुनाई दे रही है। इससे लोगों को हर समय डर लगा रहता है कि कहीं बाघ न आ जाए। एक लाख से अधिक लोगों को जिंदगी पटरी से उतरती दिख रही है। एक-एक दिन बीतने के साथ ही उनके सामने रोजी रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है।

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    लखनऊ के 15 इलाकों में बाघ का आतंक।

    अजय श्रीवास्तव, लखनऊ। बाघ आया है, यह सुनते ही शुक्रवार दोपहर काकोरी के उलरापुर में भगदड़ मच गई। कोई गोद में बच्चा लेकर भागा तो किसी ने मवेशि‍यों को अंदर कर दिया। दरअसल रहमान खेड़ा में बाघ होने की सूचना पर वन विभाग टीम की अचानक सक्रियता बढ़ी तो उसका असर पड़ोस के उलरापुर तक दिखा। दरवाजे बंद हो गए, लेकिन जब लोगों की आवाजाही धीरे-धीरे दिखी तो लोग बाहर निकले।

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    एक महीने से बाघ की गुर्राहट 15 गांवों में सुनाई दे रही है। इससे लोगों को हर समय डर लगा रहता है कि कहीं बाघ न आ जाए। एक लाख से अधिक लोगों को जिंदगी पटरी से उतरती दिख रही है। एक-एक दिन बीतने के साथ ही उनके सामने रोजी रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है।

    गांवों का क‍िया दौरा

    दैनिक जागरण की टीम ने शुक्रवार को बाघ की दहशत से प्रभावित गांवों का दौरा क‍िया तो वहां दिन में ही अघोषित कर्फ्यू जैसा नजारा दिखा, जबकि सूरज ढलने के साथ ही नजारा घोषित कर्फ्यू जैसा हो रहा था। अलाव और घर का चूल्हा जलाने के लिए उलरापुर के उसी जंगल से लकड़ी बटोर कर घर पहुंचीं रामावती के चेहरे पर गुस्से के भाव थे। उन्‍होंने कहा क‍ि बहुत डर लग रहा है। बच्चे घरों में कैद रहते हैं और पेट की खातिर लकड़ी बटोरने जाना पड़ता है।

    वन व‍िभाग नहीं कर रहा कोई भी प्रयास

    शाम पांच बजे के बाद कोई भी बाहर नहीं दिखता है। उलरापुर में पशुओं का दाना लेकर जा रहीं राजेश्वरी कहती हैं कि बाघ को पकड़ने के कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं। घर के पास तक बाघ आ चुका है। बाघ के डर से काम धंधा बंद हो गया है तो खुद की तरह मवेशियों को बचाने की अधिक चिंता सताने लगी है। इसी गांव में मंदिर के पास रहने वाले गजराज यादव ने तो कई बार बाघ को देखा, लेकिन वन विभाग से नाराज दिखे।

    यह भी पढ़ें: लखनऊ के काकोरी में बाघ का आतंक, अब सांड का क‍िया शि‍कार; दबोचने के ल‍िए रखी जा रही नजर

    उन्‍होंने कहा क‍ि कुछ दिन पहले बाघ बैठा था, फोन पर वन विभाग को सूचना दी, लेकिन कोई देखने भी नहीं आया। वन विभाग ने चार मोबाइल नंबर जारी किए हैं, लेकिन वन दारोगा का ही नंबर उठता है। वन विभाग की टीम एक दो बार आई है, जबकि सबसे अधिक बाघ दुलारपुर में ही आया है। एक माह से बाघ की दहशत में जी रहे लोगों की जिंदगी भी डरावनी सी हो गई है। कोई आहट मिलते ही लोग सतर्क हो जा रहे हैं।

    रोजगार के लिए दिन में ही निकलते हैं और अंधेरा होने से पहले ही घरों में दुबक जाते हैं। ऐसा नजारा उलरापुर का ही नहीं बल्कि उन 15 गांवों का है, जहां पर किसी न किसी दिन बाघ आने की सूचना मिलती है। रहमान खेड़ा से सटा होने से और जंगल के बीच बसे उलरापुर में हर दिन बाघ के गुर्राने की आवाज सुनी जाती है और फिर दरवाजे बंद हो जाते हैं।

    डर के बीच आता हूं दुकान पर

    श्वेतांक पेट्रोल पंप के बगल में
दुकान लगाने वाले हबीबपुर निवासी राम कुमार यादव कहते हैं कि पहले आठ बजे तक दुकान खुलती थी, अब तो शाम होते ही दुकान बंद कर देनी पड़ती है। डर-डर के ही घर पहुंचते हैं।

    15 किलोमीटर में बनाया घेरा

    बाघ ने करीब 15 किलोमीटर में घेरा बना कर रखा है और वह हर दिन जगह बदलता है, लेकिन रात में रहमान खेड़ा में उसकी मौजूदगी दिखती है। मीठेनगर नई बस्ती धनेवा, मोहम्मदनगर, रहमतनगर, हसनापुर, दुगौली, गुरदीन खेड़ा, कटौली, सहिलामऊ, कसमंडी, मंदौली, उलरापुर, हलुवापुर, बुधड़िया, कुसमौरा, हबीबनगर व आसपास के गांवों में बाघ ने अपने पगचिह्न से खुद के होने का अहसास करा रखा है।

    रील बनाने की सनक चढ़ी

    मन में डर है लेकिन उस जगह से रील बनाने की सनक भी है, जहां पर बाघ होने की जानकारी मिल रही है। सड़क मार्ग से कई गांव जुड़े होने के कारण अक्सर लोग रील बनने के लिए आ जाते हैं। अगर उन्हें रोका जाता है तो विवाद हो जाता है।

    पेट्रोल पंप पर शाम से सन्नाटा

    काकोरी के पेट्रोल पंप तो शाम बाद बंद से हो जाते हैं। कर्मचारी सईद कहते हैं कि वह लोग कमरे में रहते हैं, लेकिन रात में पेट्रोल देने की हिम्मत नहीं होती है। पेट्रोल पंप पर मौजूद श्रीराम कहते
हैं कि अब तो चार बजे तक घर पहुंच जाते हैं।

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