Lucknow: चार से पांच हजार साल पहले की है हवाई तकनीक, शास्त्र में आठ तरह के विमानों का है जिक्र
स्कूल आफ मैनेजमेंट साइंसेज में वैदिक विज्ञान केंद्र के महानिदेशक डा. भरत राज सिंह ने महर्षि भारद्वाज के विमान शास्त्र पर किए अध्ययन के आधार पर बताया कि आज विमान टेक्नालाजी जिसका उल्लेख विमानशास्त्र में है वह भारत में चार से पांच हजार साल पुरानी है।

लखनऊ, [विवेक राव]। हमारे शास्त्रों में ऐसा विज्ञान पहले से लिखा हुआ है, जिसे आज आधुनिक विज्ञान छू तक नहीं पाया है। विज्ञान के चमत्कार शास्त्रों में भी देखा जा रहा है। महर्षि भारद्वाज ने जिस विमान शास्त्र की रचना की थी, उस महान वैज्ञानिक ने उसमें ऐसी जानकारी दी है, जिसे सुनकर आप चौक जाएंगे।लखनऊ के स्कूल आफ मैनेजमेंट साइंस में वैदिक विज्ञान केंद्र के महानिदेशक डा. भरत राज सिंह ने अपने शोध और अध्ययन के आधार पर बताया कि विमान शास्त्र में ऐसे ऐसे तरीके बताए गए हैं, जिसके आधार पर विमान को तैयार किया जा सकता है।
महर्षि भारद्वाज को भारतीय विमानशास्त्र का जनक माना जाता है, उन्होंने यंत्र सर्वस्व नामक ग्रंथ लिखा था। जिसमें एक भाग विमान शास्त्र का है। इसमें सभी प्रकार के विमान बनाने और उसके यंत्र बनाने के साथ उसके चलाने की विधि भी दी गई है।
चार से पांच हजार साल पहले विकसित हुई थी तकनीकी
डा. भरत बताते हैं कि आज विमान टेक्नोलाजी बहुत विकसित हुई है। भारत में यही टेक्नालाजी जिसका उल्लेख विमानशास्त्र में है, चार से पांच हजार साल पहले रह चुकी है। इसके प्रमाण अधिक संख्या में मिल रहे हैं। आज नासा जैसी स्पेस एजेंसी भारत के पौराणिक ग्रंथों की खोज में जुटी है। अंतरराष्ट्रीय शोध कर्ताओं ने प्राचीन पांडुलिपियों की खोज की है। जो ग्रंथ मिला है उसमें विमान शास्त्र ने कई नई जानकारी दी है।
500 प्रकार के थे विमान
विमान शास्त्र ग्रंथ के आठ अध्यायों में विमान बनाने के विषय में बताया गया है। इसमें 100 खंड है। सभी में विमान बनाने की तकनीकी को बताया गया है। इसमें महर्षि भारद्वाज ने 500 प्रकार के विमान बनाने के विधि का उल्लेख किया है, यानी 500 सिद्धांत से विमान बनाया जा सकता है। चौकाने वाली बात यह है कि ये 500 प्रकार के विमान 32 तरीके से बनाए जा सकते हैं। उन्होंने अपने ग्रंथ में विमान की परिभाषा दी है कि पक्षियों के समान वेग होने के कारण ही इसे विमान कहते हैं।
विमान शास्त्र में आठ तरह से चलने वाले विमानों का उल्लेख -
- शक्त्युद्गम: बिजली से चलने वाला विमान।
- भूत वाह: अग्नि से ,जल से और वायु से चलने वाला विमान।
- धुमयान: गैस से चलने वाला विमान।
- शीकोद्गम: तेल से या पारे से चलने वाला विमान।
- अंश वाह: सूर्य की किरणों से चलने वाला विमान।
- तारा मुख: चुंबक से चलने वाला विमान।
- मणि वाह: चंद्रकांत ,सूर्यकांत मनियो से चलने वाला।
- मरुत्सखा: केवल वायु से चलने वाला विमान।
विमान की 56 तरीके की रचना
- रुकमा विमान: नोकीले आकार के और सोने के रंग के थे।
- सुंदर विमान: रॉकेट की आकार वाले और रजत उक्त थे।
- त्रिपुर विमान: तीन मंजिला वाले।
- शकुन विमान: पक्षी के जैसे आकार वाले।
इस टेक्नोलाजी पर बढ़ सकता है आधुनिक विज्ञान
डा. भरत राज सिंह ने बताया कि खोजकर्ताओं ने इस प्रकार के बहुत सारे सबूत और प्रमाण खोजे हैं, आज हम जिस टेक्नोलाजी को खोज रहे हैं, वह हजारों साल पहले भारत में मौजूद थे। विमान ग्रंथ में विमान चालकों के प्रशिक्षण, उड़ान मार्ग, उपकरण, चालक, यात्रियों के परिधान, भोजन के विषय में बताया गया है। धातु को साफ करने की प्रक्रिया बताई गई है। विमान में प्रयोग करने वाले तेल तापमान इन सभी विषयों पर लिखा गया है। विमान के विद्युत और सौर ऊर्जा से चलने के भी प्रमाण मिलते हैं।
सात तरह से उड़ते थे विमान
ग्रंथ में सात प्रकार के इंजन का उल्लेख है। विमान सीधे, ऊंची उड़ान भरने, उतरने, आगे पीछे तिरछा चलने में सक्षम थे। आज के विमान की तरह उसमें भी 32 तरह के यंत्र बनाने लगाने का उल्लेख मिलता है।
डा. भरत ने बनाई थी हवा से चलने वाली बाइक
वैदिक ग्रंथों में उल्लेख तकनीकी को आधार बनाते हुए डा. भरत राज सिंह ने 10 साल पहले हवा से चलने वाली बाइक भी बनाई है। जिसमें किसी इंधन की जरूरत नहीं होती है। इस बाइक के लिए उन्हें अवार्ड भी मिला था। उनके इस माडल पर एक गुजराती उद्यमी ने बाइक तैयार करने की इच्छा भी जताई है। डा. भरत का कहना है कि हमारे वैदिक ग्रंथों में जो विज्ञान है उसे पश्चिम के वैज्ञानिक आधार बना रहे हैं। आधुनिक विज्ञान जो भी नया कर रहा है, उसके आधार में पहले से ही हैं
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