देश-विदेश तक फैली है लखनवी रेवड़ी की महक, आपने चखा क्या ?
लखनऊ का जायका, चारबाग है रेवड़ी का हब। ट्रेन रुकते ही रेवड़ी-रेवड़ी, खुशबूदार, जायकेदार रेवड़ी, लखनऊ की मशहूर रेवड़ी की गूंज।
लखनऊ, कुसुम भारती। 'लखनऊ की खुटिया और बाराबंकी की बिटिया लाजवाब होती हैं' यह कहावत मैंने अपने बचपन में सुनी है, जिसका मतलब यह है कि बाराबंकी की बेटियां उतनी ही लाजवाब यानी गुणी और संस्कारी होती थीं, जितनी कि लखनऊ की रेवड़ी। बरसों पहले इस कहावत के चलते ही लखनऊ के लोग अपने यहां बाराबंकी की बेटी को ब्याह कर लाते थे। दूसरी वजह यह भी थी कि विवाह संबंध होने से दोनों शहरों में एक रिश्ता कायम हो जाता था और लोग यहां की खुशबूदार रेवड़ी जिसे तब ज्यादातर लोग खुटिया कहते थे, मिठाई के तौर पर साथ लाते व ले जाते थे। धीरे-धीरे लखनऊ की रेवड़ी आसपास ही नहीं, दूर-दूर तक मशहूर हो गई। चारबाग रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रुकते ही 'रेवड़ी-रेवड़ी, खुशबूदार, जायकेदार रेवड़ी, लखनऊ की मशहूर रेवड़ी' की गूंज सुनाई देने लगती है।
लखनवी रेवड़ी की खासियत बताते हुए इतिहासकार, डॉ. योगेश प्रवीन बचपन की यादों को ताजा करते हुए कुछ यूं जिक्र करते हैं। वहीं चीनी, गुड़ व तिल से बनी रेवड़ी सर्द मौसम का मजा भी दोगुना करती है। तो, चलिए इस बार लखनवी जायकों में यहां की रेवड़ी पर चर्चा करते हैं।
खुशबू खींच लाती है शौकीनों को
चारबाग स्थित गुरुनानक मार्केट की गलियों में घुसते ही केवड़े और गुलाब की खुशबू यह बताने के लिए काफी है कि यहां रेवड़ी तैयार हो रही है। कोई चाशनी को थपथपाते, तो कोई उसको खींचते दिखता है। तो, वहीं कुछ ठूंठ जैसे पतले-पतले डंडे के आकार को गट्टे की तरह काटते हुए दिखते हैं। यह नजारा यहां लगभग हर दुकान में देखने को मिलता है।
ऐसे तैयार होती है रेवड़ी
चारबाग स्थित गुरुनानक मार्केट में करीब 70 साल पुरानी रेवड़ी विक्रेता अरविंद कुमार त्रिपाठी बताते हैं, रेवड़ी बनाने के लिए पहले चीनी की चाशनी तैयार की जाती है, फिर उसको अरारोट पाउडर पर डालकर ठंडा करने के बाद करीब आधा-पौन घंटा खींचा जाता है। फिर उसके पतले व लंबे डंडे बनाने के बाद गट्टे काटकर इनको कड़ाही में गर्म करके तिल मिलाकर तैयार किया जाता है। इसमें केवड़ा, गुलाब व लौंग-इलायची का एसेंस ऊपर से डाला जाता है। ठंडा होने के बाद इनकी पैकिंग होती है। गुड़ की रेवड़ी भी इसी तरह तैयार होती है, पर इसमें केवल लौंग-इलायची का एसेंस डाला जाता है। होलसेल रेट में चीनी की रेवड़ी 80 से 90 रुपये किलो व गुड़ की 100 रुपये किलो में बिकती है।
घंटों की मेहनत से होती है तैयार
एक अन्य विक्रेता संजय कहते हैं, रेवड़ी बनाना बड़ी मेहनत का काम है। इसे बनाने में कई घंटे लगते हैं। लखनऊ की रेवड़ी खासतौर से इसी क्षेत्र में बनती है। रिटेल दुकानदार भी यहीं से खरीदकर ले जाते हैं।
सर्दियों में गुड़ की रेवड़ी की मांग
नबीउल्लाह रोड, मूंगफली मंडी स्थित एक दुकानदार गुड्डू कहते हैं, खाने के बाद जायका बदलने के लिए ज्यादातर लोग इसे खाना पसंद करते हैं। खास बात यह भी है कि इसे महीनों रखकर खाया जा सकता है। गर्मी में चीनी वाली और सर्दियों में गुड़ वाली रेवड़ी की मांग रहती है। अब तो कुछ लोग रेवड़ी में खोया भी भरने लगे हैं।
सेहत के लिए भी लाजवाब
रेवड़ी की खासियत ही यही है कि हमारे जमाने में मिठाइयों की जगह खुटिया देकर हमें बहलाया जाता था। आलमबाग निवासी 80 वर्षीय शांति देवी शर्मा कहती हैं, केवड़े और गुलाब की खुशबू में लिपटी रेवड़ी न केवल खाने में स्वादिष्ट, बल्कि सेहत के लिए भी अच्छी होती है। सर्दियों में खासतौर से गुड़ की रेवड़ी खाते हैं। तिल दिमाग को दुरुस्त रखता है और गुड़ शरीर को ऊर्जा देता है।
रेवड़ी लिए बिना घर नहीं लौटता
लखनऊ घूमने आए मुंबई निवासी मेहंदी हसन कहते हैं, परिवार और दोस्तों की खास फरमाइश पर लखनऊ की रेवड़ी ले जाता हूं। लखनऊ में कई दोस्त हैं, जिनके लिए मैं मुंबई से अफलातून लेकर आता हूं।
ये हैं खास अड्डे
चारबाग स्थित गुरुनानक मार्केट, राजा बाजार व मौलवीगंज में रेवड़ी के कारखाने हैं। इसके अलावा अमीनाबाद, फतेहगंज, गणेशगंज, चौक, चौपटिया, निशातगंज बाजार, मूंगफली मंडी, शहर के लगभग सभी रेलवे स्टेशनों व बस अड्डों सहित मॉल में भी खूबसूरत पैकिंग के साथ रेवड़ी मिलती है।
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