वक्त से हार गया 'विजय सुपर', कभी बैलगाड़ी के दौर में स्कूटर पर दौड़ा था देश
एक साल में 35 हजार से ज्यादा स्कूटर का उत्पादन करती थी यह कंपनी। 1983 में क्रिकेट की विश्व विजेता टीम के हर खिलाड़ी को गिफ्ट में मिले थे स्कूटर।
लखनऊ, जेएनएन। बैलगाड़ी के दौर में देश को दोपहिया वाहनों पर दौड़ाने वाला स्कूटर का ब्रांड देसी वक्त के आगे हार गया। बदलाव में ढिलाई और ढुलमुल नीतियों ने कभी रुपहले पर्दे के नायकों और क्रिकेटरों की पहली पसंद रहे 'शान की सवारी' विजय सुपर और डीलक्स जैसे ब्रांड को भी बाजार में टिकने नहीं दिया। प्रयोग की आंधी लेकर भारत पहुंची तमाम अंतरराष्ट्रीय कंपनियां दिग्गज कंपनी के सारे ब्रांड निगल गईं।
स्कूटर इंडिया का रोचक और स्वर्णिम सफर देश की आन-बान और शान माना जाता था। इसलिए क्योंकि बैलगाड़ी वाले देश में यह इकलौती देसी ऑटोमोबाइल कंपनी जो थी। अस्सी के दशक में इसका रसूख देखते ही बनता था। हर जुबां पर इसके ब्रांड छाए थे। एक समय ऐसा भी आया, जब एक साल में कंपनी ने 35 हजार से ज्यादा विजय डीलक्स और विजय सुपर स्कूटर तैयार कर डाले। विजय डीलक्स का तो बाजार पर एकछत्र राज था। देसी ब्रांड की साख का अंदाजा इसी से लगा सकते हैैं कि 1983 में जब कपिल देव की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने पहली बार विश्व कप जीता तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने सभी खिलाडिय़ों को एक-एक विजय डीलक्स स्कूटर भेंट किया। खिलाडिय़ों के बीच यह ब्रांड खासे लोकप्रिय थे।
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विजय सुपर पर होती थी पर्दे पर हीरो की इंट्री
आमजन ही नहीं, फिल्मी पर्दे पर भी स्कूटर इंडिया के ब्रांड का दबदबा था। फिल्मों के अतीत में झांकेंगे तो विजय डीलक्स और विजय सुपर पर सवार हीरो की ग्लैमरस इंट्री ताजा हो जाएगी। ये स्कूटर नायकों की पहली पसंद माने जाते थे। आलम यह था कि स्कूटर की एक अन्य बड़ी कंपनी विजय सुपर व डीलक्स के सामने लंबे वक्त तक टिक नहीं पाई। बीएचईएल के ऑटोमैटिक गियर बॉक्स बनाकर बड़ा मुनाफा कमाया। समय गुजरता गया मगर वक्त केसाथ नाम पर धूल जमती चली गई।
लडख़ड़ाने नहीं देता था लंब्रेटा
देश ही नहीं, स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड कंपनी के लम्ब्रेटा, विजय डीलक्स, सुपर स्कूटर ने दुनिया भर में कामयाबी के झंडे गाड़े। लम्ब्रेटा की खासियत थी कि ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर भी अपने सवार को लडख़ड़ाने नहीं देता था।
ऐसे मिला पहली देसी स्कूटर
स्कूटर इंडिया के जरिये पहला देसी दोपहिया का किस्सा भी दिलचस्प है। 1972 में नवाबों के शहर लखनऊ पहुंची थी कंपनी। इससे पहले लोग इसे इन्नोसेंटी के नाम से जानते थे। यह पहले इटली के खूबसूरत शहर मिलान के नजदीक लैम्ब्रो नदी के पास लैम्ब्रेट में थी। फर्डिनेंडो इन्नोसेंटी के प्रयासों से 1922 में यह वजूद में आई। उन्होंने ही नाम दिया गया इन्नोसेंटी। मेरा प्रॉडक्ट लम्ब्रेटा दुनियाभर में मशहूर हुआ था।
उधर, आजादी के बाद भारत में निजी वाहनों का चलन बढऩे लगा। हालांकि, आम लोगों के पास इतना पैसा नहीं था कि वह छोटी कार भी आसानी से खरीद सकें। उनकी यह हसरत लम्ब्रेटा स्कूटर ने पूरी की। 50 के दशक में मुंबई स्थित एपीआइ (ऑटो प्रोडक्ट्स इंडिया) ने लम्ब्रेटा को यहां असेंबल करना शुरू किया। देखते ही देखते भारत में लम्ब्रेटा स्कूटर इंडिया मध्यवर्ग के घर-घर की पहचान बन गया। यही वजह रही कि सत्तर के दशक में जब इटली में घरेलू सहायकों (कर्मचारियों) ने आंदोलन शुरू किया और आर्थिक तंगी का दौर शुरू हुआ तो भारतीयों ने स्कूटर इंडिया के प्रति खास दिलचस्पी दिखाई। 1971 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से स्कूटर इंडिया लखनऊ में नया नाम देकर बसाने की सिफारिश की। साल भर बाद यानी 1972 में भारत ने इटली से प्लांट व मशीनरी, डाक्यूमेंट और ट्रेडमार्क खरीद लिए गए। इसी के साथ उदय हुआ देसी ब्रांड स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड।
इंदिरा ने किया था प्लांट का उद्घाटन
शहर से करीब 16 किलोमीटर दूर कानपुर रोड के पास 147.49 एकड़ जमीन पर आठ अप्रैल 1973 को स्कूटर इंडिया की नीव पड़ी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिलान्यास किया। यहां खासतौर पर तिपहिया विक्रम लैम्ब्रो बनाना मकसद था, लेकिन शुरुआत स्कूटर से हुई। साल भर बाद ही यूनिट ने काम करना शुरू कर दिया। जल्द ही विजय डीलक्स और एक्सपोर्ट के लिए लम्ब्रेटा नाम से ही कॉमर्शियल उत्पादन शुरू हो गया। उत्पादन के साथ ही वह स्वर्णिम दौर शुरू हुआ जिसने देश भर में टू व्हीलर के क्षेत्र में स्कूटर इंडिया को नई पहचान दी।
टू व्हीलर से थ्री व्हीलर का सफर
स्कूटर्स इंडिया के सेवानिवृत्त कर्मचारी ओपी सिंह कहते हैं कि साल 1995 के दौरान टू व्हीलर के गिरते क्रेज व बाइक का बढ़ता ट्रेंड स्कूटर्स इंडिया के लिए चुनौती बन गया। कंपनी व वर्कर्स की सहमति से थ्री व्हीलर वाहन की शुरुआत पर मुहर लगी। अपग्रेडेशन के तहत कंपनी को कई थ्री-व्हीलर प्रोजेक्ट मिले। यही कारण रहा कि टू व्हीलर के बाद थ्री व्हीलर में भी स्कूटर्स इंडिया अन्य कंपनियों को मात देती रही।
लचर प्रबंधन ने गिराई बिक्री
कंपनी में 43 वर्षों तक सेवा देने वाले स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड इंप्लाइज यूनियन के भूतपूर्व महामंत्री व मौजूदा अध्यक्ष केके पांडेय ने स्कूटर्स इंडिया के बीमार होने और अब उसे बंद करने के पीछे की वजह खुद प्रबंधतंत्र को ठहराया है। स्कूटर्स इंडिया ऑफिसर्स एसोसिएशन के महामंत्री नवनीत शुक्ल कहते हैैं कि हम देश को बैलगाड़ी से स्कूटर पर लाए थे। दो दिन पूर्व केंद्र सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ हैवी इंडस्ट्री एंड पब्लिक इंटरप्राइज के डिपार्टमेंट ऑफ हैवी इंडस्ट्री की ओर से जारी आदेश देश की पहचान मिटाने जैसा है...।